मतदाताओं ने दर्शाई गणतंत्र की ताकत



    लोकसभा चुनाव का पहले चरण का मतदान शांतिपूर्वक संपन्न हो गया। मतदान के प्रति लोगों में जो क्रेज देखने को मिला, उसने एक बार फिर गणतंत्र की जीत का मार्ग प्रशस्त कर दिया। लोग बिना डर व भय के मतदान करने के लिए घरों से बाहर निकले। सबसे बड़ी बात तो यह है कि छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के हमले के बाद वहां जिस प्रकार लोग मतदान के लिए बाहर निकले, उसने गणतंत्र की ताकत को खुले तौर पर दर्शाया। यहां वह स्थिति तब देखने को मिली, जब तीन दिन पहले ही वहां नक्सली हमले में भाजपा विधायक समेत चार जवान शहीद हो गए थ्ो। 


 भाजपा विधायक मंडावी की विधवा ओजस्वी मंडावी भी परिवार के साथ मतदान करने के लिए गई। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोगों के मन में लोकतंत्र के प्रति कितनी आस्था है। हालांकि, अभी छह चरणों का मतदान और होना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि आगे के चरणों में जो भी मतदान होगा, वह भी शांतिपूर्वक रूप से ही संपन्न होगा। पहले चरण में जिन क्ष्ोत्रों में चुनाव हुए, उनमें कई संवेदनशील इलाके भी थे, इसमें पश्चिमी उत्तर-प्रदेश व छत्तीसगढ़ को सबसे बड़े उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है। यह अर्द्ध सैनिक बलों, पुलिस व प्रशासन की कार्यकुशलता ही है कि सभी चुनाव आयोग की मंशा के अनुरूप अपने काम को पूरी तरह संपादित करते हैं। कौन-सी पार्टी सरकार बनाएगी, यह विषय अलग है। यह लोगों के विवेक पर निर्भर करता है कि वह किस पार्टी और प्रत्याशी को अपना मत देता है। लोकतंत्र में यही तो एक आम आदमी की सबसे ताकत होती है। 
 इन सबके बीच अगर, लोग इस पर्व में बढ़-चढ़कर शामिल होते हैं तो यह लोकतंत्र की कामयाबी को और सुदृढ़ करता है। लोकतंत्र में अगर आम जन जागरूक नहीं होता तो निश्चित ही देश की राजनीतिक पार्टियां इस सिस्टम को पूरी तरह कंगाल कर देतीं। इस विश्ोषता को लोग जानते हैं, इसीलिए भी देश के अंदर समय-समय पर सरकारें बनती और बिगड़ती रहती हैं। लोगों को यह लगता है कि कोई सरकार काम नहीं कर रही है तो उसे बदल दिया जाता है। सत्ता में पार्टियां आती-जाती रहेंगी, लेकिन लोकतंत्र का यह पर्व हमेशा जीवित रहना चाहिए। 
 इस बार लोकसभा चुनाव के आगाज के दौरान जिस प्रकार पहले चरण में बंपर मतदान हुआ है, उससे आगे होने वाले चरणों के लिए भी एक प्रकार से सकारात्मक संकेत दिया है। छत्तीसगढ़ की बात ही देख्ों तो जहां भाजपा विधायक की हत्या की गई थी, वहां श्याम गिरी में 78 फीसदी वोटिंग दर्ज की गई है। कुल मिलाकर इस बार तो इतिहास बन गया है, क्योंकि वहां जिस प्रकार नक्सलियों ने हमला किया था, उससे लग रहा था कि मतदान के औसत में गिरावट आ सकती है, लेकिन लोगों ने बंपर वोटिंग की। नक्सलियों के गढ़ माने जाने वाले अबूझामांड इलाके में आजादी के बाद पहली बार लोगों ने नक्सलगढ़ में अपने मताधिकार का प्रयोग किया, हालांकि दंतेवाड़ा में चुनाव बहिष्कार के नक्सली फरमान का अंदानी ईलाके में थोड़ा-बहुत असर देखने को मिला। वहीं, बस्तर, बीजापुर और नारायणपुर जिले के कई मतदान केंद्रों पर लाखों रुपए के इनामी आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली मतदान के लिए पहुंचे। मजे की बात यह है कि जो लोग कभी मतदान को लेकर लोगों को धमकाते थ्ो, बकायदा इस बार उन्होंने लोकतंत्र के इस पर्व में भाग लिया। 
 वहीं, जम्मू-कश्मीर की बारामूला और जम्मू लोकसभा सीटों पर भी मतदान हुआ। यहां भी आश्चर्य जनक स्थिति देखने को मिली। असल में, कुपवाड़ा और घाटी के अन्य सुदूरवर्ती गांवों में अपना घर बार छोड़कर जम्मू के जागती शिविर में रह रहे 15 हजार लोगों ने भी मतदान किया। यही स्थिति देश के अन्य राज्यों में भी देखने को मिली। चाहे उत्तर-प्रदेश की बात या फिर बिहार, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल व त्रिपुरा आदि की, सभी राज्यों में लोग मतदान के लिए घरों से बाहर निकले। यहां बता दें कि पहले चरण में 2० राज्यों की 91 सीटों के लिए मतदान हुआ है। पहले चरण में बंपर वोटिंग से ऐसा संकेत दिखता है कि आगामी चरणों और भी अधिक संख्या में लोग मतदान के लिए घरों से बाहर निकलेंगे और इस लोकतंत्र के पर्व को सफल बनाएंगे। 


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