आर्थिक महाशक्तियों का टकराव


   अमेरिका ने चीन से आयात होने वाले 2०० अरब डॉलर के सामान शुल्क की दर 1० फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी कर दी है, जो आज से ही लागू होने वाली है। अमेरिका के इस कदम से दुनिया के दो आर्थिक महाशक्तियों के बीच टकराव बुरे दौर पर पहुंच गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि चीन ने अमेरिका के साथ व्यापार समझौता खत्म किया है और चेतावनी दी है कि अमेरिका तब तक नहीं रुकेगा, जब तक कि उसके कर्मचारियों को ठगा जाना और उनकी नौकरियों को चुराए जाने पर रोक नहीं लग जाएगी। वहीं, चीन की चेतावनी है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अगर, 2०० अरब डॉलर के सामान के आयात पर शुल्क बढ़ाते हैं तो वह जवाबी कार्रवाई कर सकता है। चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने अमेरिका के कदम पर ख्ोद व्यक्त करते हुए कहा कि अगर, ऐसा होता है तो वह जवाबी कदम उठाएगा। मंत्रालय ने कहा कि चीन इस पर गहरा ख्ोद व्यक्त करता है और अमेरिका के शुल्क बढ़ाने संबंधी कदम उठाने के बाद वह जवाबी कार्रवाई करेगा। 


   यहां बता दें कि इस स’ाह की शुरूआत में व्हाइट हाउस ने चीन के 2०० अरब डॉलर के उत्पादों पर अमेरिकी शुल्क 1० से 25 फीसदी करने की घोषणा की थी, हालांकि अमेरिका और चीन के बीच यह विवाद इसी कड़ी से शुरू नहीं हुआ है, बल्कि दुनिया के दोनों आर्थिक महाशक्तियों के बीच पिछले साल जून से ही ट्रेड वार चल रहा है। उस वक्त अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के 5० अरब डॉलर के उत्पादों पर 25 फीसदी शुल्क लगाने का निर्णय लिया था। इस बढ़ाए जाने वाले शुल्क के पीछे टंàप का तर्क था कि अमेरिका-चीन व्यापार घाटे की भरपाई करने के लिए यह कदम उठाया गया है। इसके बाद से ही दोनों देश नया व्यापार समझौता करने की कोशिश करते रहे हैं, लेकिन इसमें कोई सफलता नहीं मिली है। देखने वाली बात है कि इसमें आगे क्या होता है, क्योंकि चीन के उप-प्रधानमंत्री लियू ही अमेरिका दौरे पर हैं। कुल मिलाकर यह स्थिति अमेरिका और चीन के साथ-साथ पूरी दुनिया के लिए ठीक नहीं है। जब दुनिया की दो आर्थिक महाशक्तियों के बीच आर्थिक टकराव होता है तो निश्चित ही इसका असर दुनिया के अन्य देशों में भी दिखाई देता है। एक मैसेज उन देशों को जाता है, जिससे वे भी अपने व्यापार समझौते में परिवर्तन की संभावनाएं तलाशने लगते हैं। इसका सबसे ज्यादा असर किसी पर पड़ता है तो वह आम व मध्यवर्गीय लोग होते हैं। 
 अक्सर, देखा जाता है कि चीन के उत्पाद घरेलू उत्पादों से कुछ सस्ते होते हैं और इसका अधिकांशत: प्रयोग आम आदमी के साथ-साथ मध्यम वर्ग ही करता है। अगर, चीन के उत्पादों पर अमेरिका शुल्क बढ़ाता है तो निश्चित ही चीन भी उत्पादों की कीमत बढ़ाने के बारे में सोचेगा। जिसका असर सीध्ो तौर पर आम व मध्यम वर्गीय लोगों की जेब पर पड़ेगा। इस टकराव ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है। इसका असर बाहरी तौर पर दुनिया भर के श्ोयर बाजारों में गिरावट के रूप में भी देखी गई है। यह स्थिति लंबी भी चल सकती है, क्योंकि जानकार यह मान रहे हैं कि यह आर्थिक शीतयुद्ध है, जो आगामी दो दशकों तक चल सकता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसका दुनिया भर के आर्थिक परिवेश पर क्या असर पड़ेगा ? 
 चीन और अमेरिका दुनिया में एक-दूसरे के सबसे बड़े ट्रेडिंग पार्टनर हैं और इन दोनों के बीच कारोबार प्रभावित होने का मतलब इसका असर दुनिया भर में पड़ेगा। यहां दिक्कत यह है कि अमेरिका अपने निर्णय पर अडिग दिख रहा है, क्योंकि उसका दावा है कि चीन के साथ उसका व्यापार घाटा लगभग 375 बिलियन डॉलर का है और ट्रंप प्रशासन किसी भी कीमत पर इस घाटे का पाटने के लिए तैयार है, लिहाजा वह शुल्क बढ़ोतरी के फैसले पर कोई पुनर्विचार नहीं करेगा। अमेरिकी सरकार ने चीन के जिन 13०० उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाया है, उसे वह आम करते हुए देश में आम आदमी की प्रतिक्रिया लेने जा रहा है, इस प्रतिक्रिया के बाद अमेरिकी सरकार उन उत्पादों की सूची जारी कर देगा, जिस पर 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ वसूला जाएगा। अमेरिकी सरकार द्बारा अधिक टैरिफ के लिए प्रस्तावित इन 13०० उत्पादों में उसका सर्वाधिक कारोबार चीन के साथ होता है। 
 अमेरिका की तरह ही भारत और चीन के बीच कारोबार में एक बड़ा घाटा है। लिहाजा, यह भारत सरकार के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। असल में, हम चीन से जितने उत्पाद और सेवाएं खरीदते हैं, उससे कम उत्पाद और सेवाएं वह चीन के बाजार में बेचते हैं। हालांकि, मोदी सरकार काफी समय से कोशिश कर रही है कि चीन से व्यापार घाटे को पाटा जा सके, लेकिन ऐसा अभी तक संभव नहीं हो पाया है। चीनी उत्पादों का आम लोगों के बीच भारी विरोध के बाद भी कोई नया व्यापारिक समझौता दोनों देशों के बीच नहीं हो पाया है। जहां तक घाटे का सवाल है, उत्पाद क्ष्ोत्र में चीन से भारत का व्यापार घाटा लगभग 51 बिलियन डॉलर है, वहीं सेवा क्ष्ोत्र में यह घाटा 27० मिलियन डॉलर के आसपास है। वित्त वर्ष 2०17-18 की बात करें तो अप्रैल से जनवरी के दौरान भारत ने चीन को 1०.3 बिलियन डॉलर का निर्यात किया, जबकि इस दौरान चीन ने भारत को लगभग 63.2 बिलियन डॉलर का आयात किया। लिहाजा, भारत को इस दौरान लगभग 52.9 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा उठाना पड़ा।
 इन सब परिस्थितियों के बीच यहां इस बात की जरूरत निश्चित ही महसूस होती है कि एक स्वस्थ व्यापार समझौता हो, जिसमें उत्पादों के आयात-निर्यात के दौरान किसी भी देश को घाटा भी न हो और आम लोगों की जरूरतें भी आसानी से पूरी हो जाएं। 


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