4०० साल पहले पड़ी थी विवाद की नींव | ayodhya ram janam bhumi
देश की सर्वोच्च अदालत के आदेश के बाद अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक से संबंधित विवाद का अंत हो गया है। और वहां पर राम मंदिर बनने का रास्ता साफ हो गया है। अपने फैसले में जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने विवाद को खत्म किया है, वह अपने-आप में ऐतिहासिक है। अयोध्या जमीन विवाद देश का सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा भी रहा है और देश के उन मामलों में से भी एक रहा है, जो सबसे लंबे समय तक चला। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विवाद तो खत्म हुआ ही, बल्कि एक बड़े राजनीतिक मुद्दे का भी अंत हो गया। अगर, अयोध्या प्रकरण के ऐतिहासिक तथ्य की बात करें तो अधिकांश लोग यह मानते हैं कि 6 दिसंबर 1992 से इस विवाद की शुरूआत हुई, लेकिन ऐसा नहीं है, बल्कि इस विवाद की नींव 4०० साल पहले पड़ गई थी। अब जब विवाद खत्म हो ही गया है तो इससे जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों को जानना भी जरूरी हो जाता है।
असल में, विवाद तब शुरू हुआ था, जब 4०० साल पहले यहां मस्जिद का निर्माण हुआ। 1528 में मुगल बादशाह बाबर ने विवादित जगह पर मस्जिद का निर्माण कराया था, इसी को लेकर हिंदुओं का दावा था कि यह जगह भगवान राम की जन्मभूमि है और यहां पहले एक मंदिर था। इस प्रकरण को लेकर विवाद बढ़ता गया और इसका परिणाम यह हुआ कि यहां समय-समय पर दंगे होते रहे। 1853 में इस जगह के आसपास पहली बार दंगे हुए। कुछ वर्षों बाद 1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी थी और मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत भी दे दी गई थी।
लेकिन 23 दिसंबर 1949 में यह विवाद तब और अधिक पुख्ता हो गया, जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाईं गईं। हिंदुओं ने तब कहा कि भगवान राम प्रकट हुए हैं, जबकि इसके विपरीत मुसलमानों ने चुपचाप किसी रात वहां मूर्तियां रखने का आरोप लगाया। उस वक्त की सूबे की सरकार ने मूर्तियां हटाने का आदेश दिया था, लेकिन वहां के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट केके नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाओं के भड़कने के डर से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई, जिसके बाद सरकार ने इसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगवा दिया। 195० में फैजाबाद सिविल कोर्ट में दो अर्जियां दाखिल की गईं, जिसमें एक में राम लला की पूजा की इजाजत और दूसरे में विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति रखे रहने की इजाजत मांगी गई। 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने तीसरी अर्जी दाखिल की थी। आगे चलकर 1961 में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड भी आगे आया और उसने कोर्ट में अर्जी दाखिल कर विवादित जगह के पजेशन और मूर्तियों को हटाने की मांग कर डाली। वहीं, विवादित ढांचे की जगह मंदिर बनाने के लिए 1984 में विश्व हिदू परिषद् ने एक कमिटी भी गठित कर दी थी।
इसके दो साल बाद 1 फरवरी 1986 को यूसी पांडे की याचिका पर फैजाबाद के जिला जज केएम. पांडे ने हिदुओं को पूजा करने की इजाजत देते हुए ढांचे पर से ताला हटाने का आदेश दिया था, तब से यह प्रक्रिया 1992 तक चलती रही, लेकिन 6 दिसंबर 1992 को बीजेपी, वीएचपी और शिवसेना समेत दूसरे हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को गिरा दिया, जिससे विवाद और भी गहरा गया। इस घटना के बाद देश भर में हिदू-मुसलमानों के बीच दंगे भड़क गए थे, जिन दंगों में 2 हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना के तार 2००2 के गोधरा कांड से भी जुड़े, जब हिंदू कार्यकर्ताओं को ले जा रही टेàन में आग लगा दी गई थी, जिसमें 58 लोगों की मौत हो गई थी, इसके बाद भी दंगे भड़के, जिसमें भी लगभग 2 हजार लोगों की मौत हुई थी। विवादित मसले पर तब और नया मोड़ आया, जब साल 2०1० में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच 3 बराबर-बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया, लेकिन इसके अगले ही साल 2०11 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। इस विवाद को खत्म करने की पहल करते हुए 2०17 में सुप्रीम कोर्ट ने आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आह्वान किया। 8 मार्च 2०19 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले में मध्यस्थता के लिए पैनल भी भेजा। पैनल को 8 सप्ताह के अंदर कार्यवाही खत्म करने को कहा गया था।
1 अगस्त 2०19 को ही मध्यस्थता पैनल ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी थी। उसके अगले ही दिन यानि 2 अगस्त 2०19 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पैनल मामले में समाधान निकालने में विफल रहा, जिसके बाद 6 अगस्त 2०19 से सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई शुरू हुई और 16 अक्टूबर 2०19 को अयोध्या मामले की सुनवाई पूरी हुई थी और सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसके तहत शनिवार यानि 9 नवंबर को फैसला सुनाया गया। फैसले के बाद विवादित जमीन पर राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ हो गया और मजिस्द के लिए मुसलमानों को पांच एकड़ जमीन देने के आदेश सूबे की सरकार को दिए गए। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को समाज के सभी वर्गों ने जिस तरह सहर्ष स्वीकार किया, उसने भारत की एकता और अखंडता का भी परिचय दिया है, जो दुनिया के लिए एक मिसाल भी है।
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