राजस्थान की सत्ता तक पहुंचने में Mewar की भूमिका होगी अहम
#(Rajasthan Assembly Election-2023)# आगामी महीनों के अंदर राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसके लिए राजनीतिक पार्टियों ने बिसात बिछानी शुरू कर दी है। बीजेपी और कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी भी यहां पैर जमाने की हर संभव कोशिश कर रही है, लेकिन यहां मुख्य फाइट बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही रहेगी। कांग्रेस पर जहां सरकार को रिपीट करने का दबाव है, वहीं बीजेपी कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर सरकार बनाने की हर संभव कोशिशों में जुटी है। इसी के मद्देनजर जहां कांग्रेस ने योजनाओं का पिटारा खोल दिया है, वहीं बीजेपी कांग्रेस सरकार की कमियों को उजागर करने के लिए परिवर्तन रैलियों का सहारा ले रही है, लिहाजा राजस्थान के चुनाव परिणामों को देखना बेहद ही दिलचस्प होगा, लेकिन इतना तय है कि अगर किसी को भी राजस्थान की सत्ता को फतह करना है तो मेवाड़ पर विजय पाना अति आवश्यक होगा।
कांग्रेस और बीजेपी इस बात को भली-भांति जानती हैं, इसीलिए दोनों ही पार्टियों का मेवाड़ पर विशेष फोकस देखने को मिला रहा है। सियासी दलों की इस सक्रियता की एकमात्र वजह है, चुनावों में मेवाड़ की महत्वपूर्ण भूमिका। राजस्थान की सियासत में कहा भी जाता है, जिसने मेवाड़ जीत लिया उसने राजस्थान जीत लिया। इस बात को सियासी दल भली-भांति जानते हैं, लिहाजा चुनावों से पहले ही गृह मंत्री अमित शाह से लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी मेवाड़ में जनसभा कर चुके हैं, वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम जा चुके हैं। अब राहुल गांधी द्वारा भारत जोड़ो यात्रा का अलग चरण मेवाड़ से शुरू किए जाने की योजना है।
मेवाड़ की तरफ सियासी दलों की रुचि के पीछे पिछले चुनावों का शानदार इतिहास भी है, जो इस ओर ईशारा करता है कि राजस्थान जीतना है तो हर हाल में मेवाड़ को फतह करना ही होगा। 2023 में परिसीमन से पहले यहां की 25 विधानसभा सीटों में बीजेपी ने 18 सीटें जीतीं थीं, जबकि कांग्रेस मात्र पांच सीटें ही हासिल कर पाई थी। अगर, 2008 की बात करें तो कांग्रेस राजस्थान की सत्ता जीतने में सफल हुई थी। इस चुनाव में कांग्रेस ने 19 सीटें जीतीं थीं, जबकि बीजेपी महज सात सीटें पर सिमट गई थी, लिहाजा, 2008 में राज्य में कांग्रेस सरकार बनाने में सफल हुई थी। वहीं, 2013 में बीजेपी फिर से सत्ता में लौटने में सफल हुई। यहां की 28 सीटों में से बीजेपी के पाले में 25 और कांग्रेस के पाले में महज दो सीटें आईं। लिहाजा, बीजेपी राजस्थान में सरकार बनाने में सफल रही। साल 2018 के नतीजे जरूर अलग रहे, तब बीजेपी ने 15 और कांग्रेस ने मेवाड़ की 10 सीटें जीतीं थीं। इन आकड़ों को देखकर यह बात निश्चित हो जाती है कि राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में मेवाड़ की 28 सीटों की भूमिका अहम रहने वाली है, चाहे वह भावनात्मक महत्व हो या फिर यहां के लोगों की सत्ता में बदलाव देखने की प्रवृत्ति।
सत्ता में
विशेष भूमिका की दृष्टि से देखें तो भी मेवाड़ का प्रभुत्व बहुत अधिक रहा है, क्योंकि मेवाड़ ने राजस्थान को चार मुख्यमंत्री दिए हैं, जिनमें उदयपुर सीट से जीते मोहन लाल सुखाडि़या सबसे ज्यादा 16 साल तक
मुख्यमंत्री के पद पर आसीन रहे। इसके बाद बांसवाड़ा सीट से जीते हरदेव जोशी 6 साल
के लिए मुख्यमंत्री रहे। मेवाड़ से तीसरे मुख्यमंत्री रहे मांडलगढ़ सीट से जीते
शिवचरण माथुर 5 साल के लिए मुख्यमंत्री रहे। कुंभलगढ़ सीट से विजेता रहे हीरालाल
देवपुरा 16 दिनों के लिए मुख्यमंत्री के पद पर विराजमान रहे। मेवाड़ के नेताओं की
मत्रिमंडल में भी विशेष भूमिका रही है, उन्हें मत्रिमंडल
में जगह मिलती रही है। कांग्रेस सरकार में मेवाड़ के रामलाल जाट, उदयलाल आंजना और महेंद्रजीत सिंह मालवीय को मंत्री पद मिला, वहीं इससे पहले गिरिजा व्यास और रघुबीर सिंह मीणा भी मंत्री रह चुके हैं।
बीजेपी सरकार में गुलाबचंद कटारिया गृहमंत्री रहे, जबकि नंद
लाल मीणा को आदिवासी विकास मंत्री बनाया गया था, इसीलिए इस
चुनाव में मेवाड़ भूमिका को सियासी पार्टियां तब्बजो न दें, ऐसा बिल्कुल भी नहीं हो सकता है।
दरअसल, मेवाड़ क्षेत्र
वीरता और भक्ति का भी गढ़ रहा है, जिस पर सभी को गर्व है और
राजनीतिक पार्टियां इसको भली-भांति जानती हैं। उदयपुर संभाग में उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा और सलूम्बर ज़िले आते
हैं। इस साल संभागों में हुए बदलाव से पहले उदयपुर संभाग में
बांसवाड़ा, डुंगरपुर, प्रतापगढ़ जिले भी
आते थे, लेकिन ये अलग होकर बांसवाड़ा संभाग बन गया है। इस
बदलाव को लेकर भी यहां काफी चर्चा है, इसमें आदिवसी सीटों
वाले वांगड इलाके को बांसवाड़ा संभाग बना दिया गया है, ये
संभाग हाल ही बनाए गए हैं, हालांकि इसकी मांग बहुत पहले से
हो रही थी। चुनाव से पहले बनाए गए इन संभागों से गहलोत ने सियासी बढ़त लेने का
भरपूर कोशिश की है, क्योंकि प्राशसनिक विकेंद्रीकरण से
स्थानीय स्तर पर नौकरशाही ठीक ढंग से काम करती है, जिससे आमजन
को अपनी समस्याओं का हल कराने में आसानी
होती है।
अगर, जाति फैक्टर की बात करें तो मेवाड़
में जातीय समीकरण भी बहुत अधिक मायने रखता है। वह इसीलिए, क्योंकि यह ईलाका दो हिस्सों में बंटा है, जिसमें
आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र और अन्य में अलग-अलग जातियों की मिलीजुली संख्या शामिल
है, जिनमें मुख्यरूप से ब्राहमण, राजपूत,
माहेश्वरी, गुर्जर, जाट
और अनुसूचित जातियां हैं। जाट और गुर्जर यहां ओबीसी में आते हैं। उदयपुर सिटी ब्राह्मण और जैन
बाहुल्य सीट है, जबकि चित्तौड़गढ़ और बल्लभनगर में
राजपूत बहुल सीट होने के कारण बीजेपी का वर्चस्व है। वहीं, भीलवाड़ा के मांडल में गुर्जरों की आबादी अधिक है, लेकिन यहां के लिए कहा जाता है कि जीत के लिए गुर्जर और ब्राह्मण
दोनों की ज़रूरत पड़ती है। कुंभलगढ़ में राजपूत और माहेश्वरी
उम्मीदवार ही जीतते रहे हैं, जबकि नाथद्वार में अधिकतर ब्राह्मण
और जैन प्रत्याशियों की जीत हुई है। बांसवाड़ा और डुंगरपुर की
आदिवासी बेल्ट में आदिवासी वोट ही जीत-हार तय करते हैं, हालांकि बाक़ी सीटों पर अलग-अलग समीकरण
सियासी उलटफेर तय करते हैं।
इस पूरी
परिस्थिति में फ़िलहाल
राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस हरसंभव तरीक़े से जनता का समर्थन पाना चाहते हैं, जिसके तहत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार
ने इस साल 100 यूनिट मुफ़्त बिजली, महिलाओं को मोबाइल फ़ोन, राशन पैकेट और 500 रुपए में सिलेंडर देने जैसी
योजनाओं की घोषणा की है। वहीं, बीजेपी ने अपनी दूसरी ‘परिवर्तन यात्रा’ की शुरुआत बांसवाड़ा से की, जो मेवाड़ की लगभग सभी सीटों से होकर निकली। कुल मिलाकर, वोटरों
को अपने पाले में लाने की जोर-अजमाइश चरम पर है, लिहाजा यह देखना बेहद ही दिलचस्प
होगा कि अंतत: राजस्थान की राजनीति में खास जगह रखने वाले मेवाड़ क्षेत्र में
कौन-सी पार्टी सियासी समीकरणों को साधने में सफल हो पाती है।
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