इंदिरा गांधी और उनका साहसिक नेतृत्व



   आज इंदिरा गांधी की 1०1वीं जयंती है। आज ही के दिन यानि 19 नवंबर 1917 को देश की इस दिग्गज शख्सियत का जन्म हुआ था। इंदिरा गांधी ताकतवर प्रधानमंत्री के रूप में जानी जाती हैं। भले ही, उन्हें राजनीति विरासत में मिली थी, लेकिन उन्होंने भारतीय राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाई। उनमें कठोर निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता थी। इतिहास के पन्नों में इसके कई उदाहरण देखने को मिलते हैं। चाहे वह देश में आपातकाल लागू कर स्वयं की महत्वाकांक्षा पूरी करने की बात हो या फिर पोखरण में परमाणु परीक्षण कर भारत की ताकत का दुनिया को अहसास कराने की बात हो। वहीं, ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद स्वयं की जान को खतरे की आशंका के बाद भी सिख सुरक्षाकर्मियों की अपनी सुरक्षा से नहीं हटाने का फैसला हो। इसके अलावा भी कई ऐसे घटनाक्रम व फैसले हैं, जिसके जरिए इंदिरा की शक्तिशाली छवि सामने आती है। 


 भले ही, दूसरे बड़े मुद्दों को उतना याद नहीं किया जाता है, जितना आपातकाल के दौर को याद किया जाता है। क्योंकि, देश में आपातकाल लागू होने से काफी नुकसान हुआ। यह भी एक कठोर निर्णय था। कोर्ट से इतर जाकर इस तरह का फैसला लेना, उनकी महत्वाकांक्षा को तो दर्शाता ही है, बल्कि उनके कठोर निर्णय लेने की क्षमता को भी दर्शाता है। देश में लगभग 19 महीने तक आपातकाल लागू रहा। शायद, वह इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को मान लेती और कोर्ट से बढ़कर स्वयं को न समझती तो शायद देश को आपातकाल नहीं झेलना पड़ता। 
 आपातकाल के इतर इंदिरा गांधी द्बारा देश हित में लिए गए उन तमाम फैसलों को भुलाया नहीं जा सकता है। उन्होंने देश को हर तरह से शक्तिशाली बनाने के लिए प्रयास किए। और पाकिस्तान जैसे चालाक व शातिर पड़ोसियों को इस बात का अहसास भी कराया कि वह भारत की सीमाओं की तरफ आंख उठाकर न देख्ो। इंदिरा ने पाकिस्तान को ऐसा जख्म दिया, शायद ही जिसे वह कभी भूल पाएगा। यह जख्म था, 1971 में पाकिस्तान के दो टुकड़े करना। दूसरा टुकड़ा बांग्लादेश के रूप में सामने आया। जब पाकिस्तान के सैन्य शासन ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर जुल्म की इंतहा कर दी थी तो करीब एक करोड़ शरणार्थी भागकर भारत चले आए थ्ो। इंदिरा गांधी ने तब पाकिस्तान को अपनी ताकत का अहसास कराया था। भारत और पाकिस्तान का युद्ध हुआ, जिसमें पाकिस्तान की शर्मनाक हार हुई। वहीं, पाक के 9० हजार सैनिकों को भारत ने युद्धबंदी बना लिया था। जिस तरह देश शातिर पड़ोसियों से घिरा हुआ है, उसमें ऐसे ही शक्तिशाली रुख अपनाने की जरूरत थी। आज दुनिया के सामने पाकिस्तान की जो तस्वीर है, वह हर तरह से पिछड़े हुए देश की है, जबकि भारत के साथ-साथ बांग्लादेश ने भी आर्थिक और सैन्य मोर्चे पर काफी तरक्की कर ली है। आज अगर, हमारे सीमाएं बची हैं तो उसमें इंदिरा गांधी के साहस को याद किया जाना चाहिए। 
 1984 की बात है, जब पाकिस्तान 17 अप्रैल को सियाचीन पर कब्जा करने की योजना बना रहा था तो भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत को अंजाम दिया था। नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों को अंजाम देने में सफल नहीं हो पाया। देश को परमाणु संपन्न बनाने की बात हो तो इंदिरा गांधी ने तमाम विरोध की परिस्थितियों में इसका भी साहस दिखाया। 18, मई 1974 को भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण करके दुनिया को अंचभित कर दिया था। भारत ने इस ऑपरेशन को स्माइलिंग बुद्धा नाम दिया था। इससे दुनिया के अन्य देशों को पता चल गया कि भारत किसी के भी नापाक इरादों को नेस्तनाबूंद करने में पूरी तरह सक्षम है। देश की आर्थिक बर्बादी को रोकने संबंधी इंदिरा गांधी का एक साहसिक फैसला शायद बहुत कम लोगों को याद हो। उन्होंने प्रिवी पर्स यानि राजभत्ते को खत्म करने का साहस भी दिखाया। असल में, देश की आजादी के बाद भारत में अपनी रियासतों का विलय करने वाले राज परिवारों को एक निश्चित रकम देने की शुरूआत की गई थी। इस राशि को राजभत्ता या प्रिवी पर्स कहा जाता था। इंदिरा गांधी ने साल 1971 में संविधान में संशोधन करके राजभत्ते की इस प्रथा को पूरी तरह खत्म कर दिया था। उन्होंने इसे सरकारी फंड की बर्बादी बताया था। 
 बैंकों का राष्ट्रीकरण करने का फैसला भी इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने ही किया। 19 जुलाई, 1969 को इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने एक अध्यादेश पारित किया। यह अध्यादेश देश के 14 निजी बैंकों के राष्ट्रीयकरण के लिए था। इन 14 बैंकों में देश का करीब 7० फीसदी पैसा जमा था। अध्यादेश पारित होने के बाद इन बैंकों का मालिकाना हक सरकार के पास चला गया। सरकार ने यह फैसला आर्थिक समानता को बढ़ावा देने के लिए किया था। 
  उधर,1984 में जब पंजाबियों के लिए अलग देश खालिस्तान बनाए जाने की मांग ने जोर पकड़ा तो इंदिरा गांधी के निर्देश पर ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया। असल में, कहानी यह थी कि जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके सैनिक भारत का बंटवारा करवाना चाहते थ्ो। इन लोगों की मांग थी कि पंजाबियों के लिए अलग देश खालिस्तान बनाया जाए। भिंडरावाले के साथी गोल्डन टेंपल में छिपे हुए थ्ो। उन आंतकियों को मार गिराने के लिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया था। इस ऑपरेशन में भिंडरावाले और उसके साथियों को मार गिराया गया। इस ऑपरेशन के दौरान बहुत से आम लोग भी मारे गए थ्ो। 
 बाद में, इसी ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने के मकसद से इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी। खुफिया एजेंसियों ने आशंका प्रकट की थी कि इंदिरा गांधी पर जानलेवा हमला हो सकता है। उन्होंने सिफारिश की थी कि सभी सिख सुरक्षाकर्मियों को इंदिरा गांधी के निवास स्थान से हटा लिया जाए, लेकिन जब यह फाइल इंदिरा गांधी के पास पहुंची तो उन्होंने गुस्से में उस पर तीन शब्द लिख्ो-आरंट वी सेकुलर ? - क्या हम धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं? हालांकि उसके बाद यह तय किया गया कि एक साथ दो सिख सुरक्षाकर्मियों को उनके नजदीक नहीं लगाया जाएगा, लेकिन 31 अक्टूबर के दिन सतवंत सिंह ने बहाना किया कि उनका पेट खराब है, लिहाजा, उसे शौचालय के नजदीक तैनात किया जाए। इस प्रकार बेअंत सिंह और सतवंत एक साथ तैनात हुए और उन्होंने इंदिरा गांधी से ऑपरेशन ब्लूस्टार का बदला ले लिया। अगर, वह चाहती तो सिख सुरक्षाकर्मियों को हटाने का निर्देश दे सकती थी, लेकिन उन्होंने इसके लिए मना करके भी साहस का परिचय दिया। नतीजन उन्हें हत्या का शिकार होना पड़ा। भारत विभिन्नताओं से भरा हुआ देश है। उस दौर में तमाम समस्याएं भी मुंह बाएं खड़ी थी। सीमाओं पर शातिर पड़ोसी पाकिस्तान और चीन नजर गड़ाए थ्ो। ऐसे में, इंदिरा गांधी की ही तरह देश को शक्तिशाली नेतृत्व की जरूरत थी। उन्होंने देश को भी स्वयं की तरह जुझारू बनाया। अमुमन विरासत में सत्ता मिलने के बाद ऐसा नहीं देखा जाता है, लेकिन इंदिरा गांधी ने विरासत में मिली राजनीति के बाद भी अपने अलग मायने सेट किए। उन्होंने सत्ता के शिखर पर रहने के बाद जिस तरह साहस भरे निर्णय लिए, वह उनकी पहचान को अलग करने के लिए काफी तो थ्ो ही, बल्कि देश को मजबूती प्रदान करने वाले भी रहे। यही वजह है कि देश के इतिहास में उन्हें सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री के तौर पर याद किया जाता है। 



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