अलग रूप में याद किया जाएगा 2024 का लोकसभा चुनाव !
आजादी के बाद देश में जब भी चुनाव हुए, हर चुनाव में अलग-अलग मुद्दे चुनावी फिजा में छाए रहे, लेकिन भविष्य में जब भी चुनावों को रेखांकित किया जाएगा, लोकसभा चुनाव 2024 (Loksabha Chunaav-2024) को अलग रूप में याद किया जाएगा, क्योंकि इस चुनाव को संविधान की सुरक्षा के मुद्दे ने काफी दिलचस्प बना दिया है। अक्सर, जनता से जुड़े मुद्दों से भरे रहने वाले चुनाव में इस बार पक्ष और विपक्ष का पूरा राजनीतिक समीकरण ही संविधान की सुरक्षा के मुद्दे के इर्द-गिर्द घूम रहा है। इसी कड़ी में दक्षिण गोवा (South Goa) से कांग्रेस (Congress) के लोकसभा प्रत्याशी विरीएटो फर्नांडीज (Viriato Fernandez) के 1961 में पुर्तगाली शासन ((Portuguese rule)) से मुक्त होने के बाद गोवा पर भारतीय संविधान थोपे जाने वाले बयान ने इस मुद्दे को और भी हवा दे दी है। उनके इस बयान का गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कड़ा प्रतिकार करते हुए कांग्रेस को संविधान विरोधी करार दिया और कहा कि कांग्रेस की गलतियों की वजह से ही गोवा को पुर्तगाली शासन से आजादी मिलने में 14 साल की देरी हुई। कुल मिलाकर चुनावी फिजा में जिस तरह यह मुद्दा घुलता जा रहा है, उससे नहीं लगता है कि चुनाव के बाद भी, और भविष्य में भी इस मुद्दे पर बहस खत्म होगी।
भारत का संविधान दुनिया के सर्वोत्तम संविधानों में गिना जाता है, जिसकी मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती है। व्यवस्था को सुचारू संचालित करने के लिए हर प्रथा या प्रणाली का अपना-अपना संविधान होता है, क्योंकि संविधान किसी भी व्यवस्था की तरक्की को रोकता नहीं है, बल्कि तरक्की का मार्ग प्रशस्त करता है, इसीलिए संविधान को ही सवालों के दायरे में खड़ा करना निश्चित ही चिंताजनक है। जिस संविधान की व्यवस्था के अंतर्गत हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली ने सात दशक से अधिक का सफर सफलतापूर्वक तय कर लिया और तमाम राजनीतिक उतार-चढ़ाव और राजनीतिक विरोधाभास के बाद भी देश में लोकतंत्र की जड़े मजबूत होती चली गईं हैं, इसीलिए इस व्यवस्था पर हमें इसीलिए भी गर्व होना चाहिए, क्योंकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा और मजबूत लोकतंत्र है। यह संविधान ही है, जिसकी छत्रछाया में हमारा लोकतंत्र प्रगाढ़ हुआ है। जहां तक विरीएटो फर्नांडीज के बयान का सवाल है, वह इसीलिए चौंकाता है, क्योंकि जब गोवा में भारतीय संविधान लागू है, तभी आज गोवा देश के सबसे तेजी से आगे बढ़ते राज्यों में शुमार है।
मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के नेतृत्व में आज गोवा जिस तरह अपनी छवि बदल रहा है, वह एक मिसाल है, क्योंकि केंद्र की अधिकांश महत्वपूर्ण योजनाएं आज गोवा में 100 फीसदी लागू हुईं हैं और उनका परिणाम भी 100 फीसदी रहा है और यह तब संभव हो पा रहा है, जब गोवा में संवैधानिक व्यवस्था लागू है। भले ही, 1987 में गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला, लेकिन आज मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के नेतृत्व में गोवा जिस मुकाम पर है, वह अन्य राज्यों के लिए एक मॉडल स्थापित कर रहा है। प्रमोद सावंत की सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की आत्मनिर्भर भारत की घोषणा के तहत गोवा में सेचुरेशन ऑफ द स्कीम को 100 फीसदी लागू करने में सफल हुई है। स्वयं मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत (Pramod Savant) इस बात को सुनिश्चित करवा रहे हैं। केंद्र की योजनाएं 100 फीसदी धरातल पर उतरे, बकायदा इसके लिए मिशन मोड शुरू किया गया है, जिसके तहत जो 10 फोकस टारगेट- हाउसिंग फॉर ऑल, इलेक्ट्रीसिटी फॉर ऑल, फाइनेंशियल सिक्योरिटी फॉर ऑल, हेल्थ फॉर ऑल, इक्यूवमेंट फॉर दिव्यांग, किसान क्रेडिट कार्ड फॉर ऑल रखे गए हैं, उन्हें एचिव करने के प्रति सरकार द्वारा पूर्ण प्रतिबद्धता दिखाई जा रही है।
हर घर नल से जल देने से लेकर 100 प्रतिशत इलेक्ट्रीसिटी देने वाला पहला राज्य भी गोवा बना, वहीं ऑल रोड कनेक्ट-टू-विलेजेज वाला पहला राज्य भी गोवा बना। राज्य में उज्ज्वला स्कीम भी 100 प्रतिशत लागू हुई है, अब राज्य को कैरोसीन फ्री स्टेट कहा जा सकता है। ओपन डिफिकेशन फ्री स्टेट यानि हर घर को शौचालय देने वाला पहला राज्य भी गोवा ही बना। कुल मिलाकर, केंद्र सरकार की जो 13 फलैगशिप योजनाएं हैं, उनमें लगभग 70 प्रतिशत योजनाएं ऐसी हैं, जिनमें गोवा ने 100 फीसदी स्कोर किया है।
ऐसे में, संविधान को थोपने की बात करने का अर्थ विकास के मानकों को भी झूठलाने वाला है। अगर, गोवा (Goa) आज तेजी से आगे बढ़ रहा है तो मुख्यमंत्री प्रमोद सांवत की संवैधानिक व्यवस्था को आगे बढ़ाते हुए केंद्र की योजनाओं को आम आदमी तक पहुंचाने की सोच है। हर प्रगतिशील समाज को आगे बढ़ाने का सबसे अच्छा विकल्प भी यही है, जहां तक सवाल चुनाव कैंपेन के दौरान राजनीतिक पार्टियों द्वारा लोकतंत्र और संविधान को लेकर उठाए जा रहे सवालों का है, वह चिंताजनक इसीलिए है, क्योंकि जब भारत का संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्था दुनिया के लिए मिसाल हो तो उसी व्यवस्था के अंतर्गत लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले किसी राजनेता द्वारा ऐसा बयान देकर जनता के बीच बेवजह यह हवा भी नहीं फैलानी चाहिए कि संविधान विकास में बाधक हो सकता है और सत्तारुढ़ सरकार से संविधान और लोकतंत्र को खतरा है।
निश्चित ही, बदलाव समय की जरूरत होती है, लेकिन कोई भी सत्तारूढ़ सरकार संविधान और लोकतंत्र के लिए खतरा हो, ऐसा मानना किसी भी परिपेक्ष्य में उचित नहीं कहा जा सकता है। संविधान लोकतंत्र की आत्मा है, अगर, आत्मा ही नहीं होगी तो लोकतंत्र रूपी उसके शरीर का भी कोई अस्तित्व नहीं रहेगा, अगर लोकतंत्र का अस्तित्व ही नहीं रहेगा तो पार्टियों का भी अस्तित्व नहीं रहेगा, इसीलिए चुनाव के इस महापर्व में संविधान और लोकतंत्र पर सवाल उठाने के बजाय ऐसे मुद्दे उठाए जाने चाहिए, जो जनता की समस्याओं से जुड़े हों, क्योंकि जनता के हित ही मजबूत लोकतंत्र और संवैधानिक व्यवस्था के मूल से जुड़े हुए हैं।
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