विभिन्न आयाम स्थापित कर रहा नमामि गंगे कार्यक्रम
गंगा को अविरल बनाने को लेकर केंद्र सरकार द्वारा जो प्रयास किए जा रहे हैं, उससे इन उम्मीदों को पूर्ण बल मिला है कि दुनिया की सबसे पवित्र नदी गंगा शहरों के बीच से गुजरने के दौरान भी उतनी ही निर्मल होगी, जितना कि वह अपने उद्गम स्थल से उतरने के दौरान है, इस दिशा में जिस तरह काम किया जा रहा है, उसने इस अभियान को न केवल दुनिया के लिए एक प्रेरक अभियान बना दिया है, बल्कि दूसरे कई ऐसे आयाम भी स्थापित किए हैं, जिससे न केवल लोग गंगा से संबंधित मुद्दों के प्रति जागरूक हुए हैं, बल्कि नदी के किनारे रहने वाले लोगों के लिए आजिविका के विकल्प भी खुल रहे हैं।
गंगा भारतीय परंपरा में एक महत्वपूर्ण नदी है, जो पवित्र होने के साथ ही प्राचीन नदी भी है। गंगा भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 23 प्रतिशत हिस्से में प्रवाहित होती है और 43 प्रतिशत आबादी की जरूरतों को पूरा करती है, इसीलिए 2014 में नमामि गंगे मिशन को नदी और इसके तट पर शहरीकरण के कारण बिगड़ते स्वास्थ्य को देखते हुए ही शुरू भी किया गया था और यह कार्यक्रम नदी की निर्मलता और अविरलता को बहाल करने के लिए एक जनादेश और सकारात्मक दृष्टिकोण के रूप में दुनिया के सामने एक बड़े उदाहरण के रूप में उभरा है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य न केवल गंगा नदी की प्राचीन महिमा को पुनर्स्थापित करना है, बल्कि स्थानीय आबादी को इससे जुड़ी पारंपरिक जानकारियों से जोड़ने में सहायता करने के साथ ही स्थानीय समुदायों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाना भी है।
इसमें कोई शक नहीं कि केंद्र सरकार इस दिशा में भरपूर प्रयास कर रही है। उसी का परिणाम भी है कि नमामि गंगे कार्यक्रम विश्व के प्रमुख कार्यक्रमों में शुमार हो चुका है। इससे जाहिर होता है कि मौजूदा सरकार ने पिछली सरकारों की तरह महज गंगा सफाई की घोषणाएं नहीं कीं, बल्कि उस दिशा में धरातल पर भी काम किया है, इसीलिए मौजूदा नमामि गंगे कार्यक्रम पिछली सरकारों द्वारा किए गए प्रयासों से अलग और खास कार्यक्रम बना हुआ है। इस कार्यक्रम के खास होने की एक वजह यह भी है कि इसका नेतृत्व राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) कर रहा है, जो एक संस्थागत निकाय है, जिसे गंगा नदी (कायाकल्प, संरक्षण और प्रबंधन) प्राधिकरण आदेश, 2016 के अनुसार उचित वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार दिए गए हैं। निश्चित ही, एक एकल संस्थागत संरचना निर्णय लेने को आसान बनाती है। दूसरा, नमामि गंगे कार्यक्रम में राज्यों को भी शामिल किया गया है, जबकि राजीव गांधी के नेतृत्व वाले कांग्रेस सरकार के दौरान चलाए गए कार्यक्रम ऐसा नहीं कर पाए थे।
मौजूदा केंद्र सरकार ने पिछले 10 वर्षों के दौरान लगभग 5658 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) की शोधन क्षमता निर्माण और लगभग 5206 किलोमीटर सीवर नेटवर्क बिछाने के लिए 183 सीवरेज बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को मंजूरी दी है, जिसके तहत लगभग 2175 एमएलडी की शोधन क्षमता के निर्माण और लगभग 4336 किलोमीटर सीवर नेटवर्क बिछाते हुए 105 परियोजनाएं पूरी की हैं, इसके अलावा, हाइब्रिड एन्यूटी मोड (एचएएम) और वन सिटी वन ऑपरेटर (ओसीओपी) जैसे नवाचारों को भी अपनाया है, जिसकी पूरी दुनिया ने सराहना की है। वहीं, इस कार्यक्रम के तहत जैव विविधता के फलने-फूलने के लिए अच्छा वातावरण भी तैयार किया गया है, जिसे नदी के साफ-सुथरे हिस्सों में गंगा में डॉल्फ़िन की बढ़ती संख्या के साथ देखा भी जा सकता है।
नमामि गंगे कार्यक्रम डेन्यूब और थेम्स सहित दुनिया में अन्य नदी बहाली कार्यक्रमों की तुलना में केवल 6-7 वर्षों में ही स्वच्छ गंगा मिशन में सकारात्मक परिणाम हासिल करने में सफल रहा है। यह कार्यक्रम केवल नदियों की बहाली तक ही सीमित नहीं है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए इस अभियान को एक स्थायी मॉडल के रूप में स्थापित करना भी है। केंद्र सरकार ने अर्थ गंगा की अवधारणा को स्थानीय समुदायों, गंगा और उसकी सहायक नदियों से जोड़ने की दिशा में शुरू की गई गतिविधियों के माध्यम से भी एक नया आयाम स्थापित किया है, जिससे स्थानीय समुदायों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने की दिशा में भी महत्पूर्ण प्रगति देखने को मिली है। लिहाजा, पिछले कुछ समय में अर्थ गंगा अभियान के तहत नदी के किनारे रहने वाले लोगों के साथ आत्मीय संपर्क के लिए पाइप-एंड-पंप दृष्टिकोण में एक आदर्श बदलाव आ पाया है। गंगा के किनारे प्राकृतिक और बाजरे की खेती को बढ़ावा दिया जाने लगा है। साथ ही, जलीय प्रजातियों की संख्या बढ़ाने के लिए मत्स्य पालन और नदी पशुपालन पर जोर दिया जा रहा है, जिसकी वजह से स्थानीय लोगों की आजीविका में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है।
यह भी कहा जा सकता है कि इस बदलाव की वजह से जलज जैसे आजीविका मॉडल को नई दिशा देने में मदद मिल रही है, जिसके माध्यम से स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों को पर्यटक गाइड प्रदान करने, छोटी नदी का परिभ्रमण, स्थानीय उत्पादों को बेचने, डॉल्फ़िन को बचाने आदि जैसी नवीन गतिविधियों को बढ़ावा देने के प्रति प्रेरणा मिल रही है, ऐसा इसीलिए, क्योंकि यह न केवल नदी और लोगों के बीच जुड़ाव को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि इसमें शामिल स्थानीय समुदायों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने में भी मदद कर रहा है।
अगर, नमामि गंगे कार्यक्रम पिछली सरकारों के द्वारा किए गए प्रयासों से अलग और सफल है तो इसके पीछे सरकार का वह दृष्टिकोण भी है, जिसमें निर्मल गंगा (अप्रदूषित नदी) के साथ ही चार अन्य स्तंभ- अविरल गंगा (अप्रतिबंधित प्रवाह), जन गंगा (लोगों की भागीदारी), ज्ञान गंगा (ज्ञान और अनुसंधान आधारित हस्तक्षेप) और अर्थ गंगा (अर्थव्यवस्था के संबंल के माध्यम से जन-नदी संपर्क) का शामिल होना भी है।
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