..तो क्या सपा में फिर मचेगा पारिवारिक घमासान ?


सपा में पारिवारिक घमासान फिर मच सकता है। भई, पार्टी के अंदर कितना ही सब कुछ ठीक होने का दंभ भरा जाए, लेकिन हालात तो सब कुछ ठीक होने की तरफ इशारा तो नहीं कर रहे हैं। अब चुनाव का समय नजदीक आ रहा है और एक बार फिर खींचतान के संकेत सामने आने लगे हैं। देखने वाली बात यह होगी कि क्या सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव सब कुछ ठीक कर देंगे? 
 चाचा-भतीजे के बीच फिर सामने आने वाली संभावित कलह को दूर कर देंगे? अगर, टिकट बंटवारे को लेकर घमासान सामने आ भी गया तो क्या इससे सूबे की सत्ता को फिर हासिल करने का जो सपना सपा देख रही है, उसे वह साकार कर पाएगी? राजनीतिक सूत्रों को सच मानें तो टिकट बंटवारे में मोर्चेबंदी सपा की गले की फांस बन सकती है। चाचा शिवपाल चाहते हैं कि अपने चहेतों को टिकट दिला दें, लेकिन भतीजे अखिलेश यादव भी चाहते हैं कि कम-से-कम टिकट बंटवारे में उनके भरोसेबंदों का भी ख्याल रखा जाए। 
अगर, ऐसा नहीं होता तो क्या सीएम अखिलेश यादव अपने भरोसबंद विधायकों से मुलाकात करते। कुछ तो गड़बड़ जरूर है। मुलाकात के बहाने ही सीएम ने टिकट बंटवारे में उनकी भी सुनी जाने का संकेत तो दे ही दिया है। भई, प्रदेश अध्यक्ष चाचा शिवपाल हैं तो जाहिर सी बात है टिकट बंटवारे में ज्यादा तो उन्हीं की चलेगी। बशर्ते, वह सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव से सलाह-मशविरा कर लें, लेकिन इतना तो बनता है कि प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते वह अपने चहेते चेहरों को टिकट देने की कोशिश करेंगे ही। सीएम के नाते सरकार चलाने की पावर अखिलेश के पास है तो प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते पार्टी को अपने डंडे पर हांकने का अधिकार शिवपाल यादव के पास है, तो जब अखिलेश सरकार को अपने डंडे पर हांक सकते हैं तो शिवपाल पार्टी को क्यों नहीं हांकेंगे? हाल-फिलहाल में हुई कलह के बाद तो पहली बार शिवपाल को मौका मिला है, टिकट बंटवारे में मुखिया होने के नाते। सामने वह भले ही सबकुछ ठीक होने की बात करें, लेकिन मन में कुछ तो बात होगी ही। इस बीच अखिलेश को भी स्थिति का भान हो गया होगा, इसीलिए उन्होंने अपने भरोसेबंद 7० विधायकों से मुलाकात की। इस मुलाकात को अखिलेश की समानांतर तौर पर टिकट वितरण की तैयारी के तौर पर देखा भी जा रहा है, यानी अखिलेश भी टिकट बंटवारे में अपनी निगाहें बनाए रखना चाहते हैं। जब चुनाव में उनके चहेते होंगे, तभी तो वह लंबी रेस का घोड़ा साबित होंगे। अगर, ऐसा नहीं होता है तो उनके सब करे-धरे पर पानी फिर जाएगा। 
ऐसे में वह स्वयं द्बारा बिछाई गई बिसात को कैसे छोड़ सकते हैं? क्या ऐसे में अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि जब अहं का टकराव हो तो घमासान होगा नहीं? फिलहाल, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि यह घमासान सामने आता है या फिर इसको अंदरखाने ही हल कर लिया जाता है।

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