आपसी सामंजस्य से ही होगा दिल्ली का विकास


 दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग ने गुरुवार को अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया। केजरीवाल सरकार के साथ टकराव के लिए जाने जाने वाले जंग के इस्तीफे से हर कोई आश्चर्य चकित रह गया, क्योंकि उनके इस्तीफे का न तो कोई कारण स्पष्ट हो पाया है और न ही हाल-फिलहाल में इस तरह की कोई कयासबाजी सामने आई है, जिसकी वजह से वह अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा देने को बाध्य होते। सबसे बड़ी बात यह है कि जिस प्रकार जंग के इस्तीफे का असली कारण स्पष्ट नहीं हो पाया है, उसी प्रकार नए लेफ्टिनेंट गवर्नर को लेकर भी सरकार की तरफ से कोई नाम स्पष्ट नहीं किया गया है, लेकिन जिस तरह की कयासबाजी लगाई जा रही है, उससे इतना तो स्पष्ट है कि दिल्ली में भविष्य में भी जंग देखने को मिल सकती है, यानि सरकार और लेफ्टिनेंट गवर्नर के बीच कामकाज को लेकर टकराव की स्थिति बनी रह सकती है। खासकर, जिन नामों की चर्चा हो रही है, उससे तो इस तरह का अनुमान लगाना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा। 
 इस बात पर कोई शक नहीं है कि जंग और केजरीवाल के बीच कामकाज को लेकर काफी टकराव देखने को मिला, क्योंकि केजरीवाल एक चुनी हुई सरकार का दंभ भरते रहे और गवर्नर अपने संवैधानिक अधिकारों की दुहाई देते रहे, लेकिन जिस तरह से केजरीवाल ने जंग पर केन्द्र के ईशारे पर काम करने का आरोप मढ़ा, उससे एक ऐसा माहौल बन रहा था, जिसमें केजरीवाल स्वयं को काम करने के मामले में अपंग दर्शा रहे थ्ो। यानि वह काम तो करना चाहते हैं, लेकिन केन्द्र सरकार जंग के कंध्ो पर बंदूक रखकर उन्हें काम नहीं करने दे रही है, लेकिन यहां यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वाकई ऐसा कुछ रहा, जिसमें गवर्नर केन्द्र के ईशारे पर काम कर रहे थ्ो और केजरीवाल सरकार के हर निर्णय पर टांग अड़ा रहे थ्ो। केजरीवाल ने हाल ही में एक बयान दिया था कि जंग मोदी और शाह के पिछलग्गू हैं। जंग मुस्लिम हैं और वह कितनी ही चम्चागिरी क्यों न कर लें उन्हें मोदी उप-राष्ट्रपति नहीं बनाएंगे, लेकिन जिस गुपचुप तरीके से जंग ने इस्तीफे का ऐलान किया, क्या उससे यह साबित नहीं होता है कि अगर, उन्हें केन्द्र का साथ मिल रहा था तो उन्हें इस्तीफा देने की जरूरत क्यों पड़ी? बकौल केजरीवाल, जिस बेहतर माहौल में वह केन्द्र सरकार के साथ काम कर रहे थ्ो तो क्या वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकते थ्ो? इसमें एक बात यह भी सामने आ रही है कि जब जंग ने इसी साल जून में तीन वर्ष पूरे किये तो केन्द्र सरकार उनकी जगह किसी और को लाने पर विचार कर रही थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और जंग अपने पद पर बने रहे। 
  ऐसे में उन कारणों का पता लगना भी निहायत ही जरूरी लगता है, जिसके चलते उन्होंने इस्तीफा दिया। क्या वाकई केन्द्र से ऐसा दवाब था, या फिर दिल्ली और केन्द्र के बीच पिसने के दवाब से ऊब चुके जंग ने इस्तीफा देना ही बेहतर समझा, क्योंकि दिल्ली के इतिहास में शायद ही ऐसा पहली बार देखने को मिला, जब दिल्ली की सरकार लेफ्टिनेंट गवर्नर पर इतनी हमलावर रही। गवर्नर के नाम पर ही दिल्ली की राजनीति आगे बढ़ती रही। अभी जो संशय बना है, वह समय के साथ छंट तो जायेगा, लेकिन भविष्य में गवर्नर और सरकार को अपने अधिकारों के अनुरूप सामंजस्य बना के चलना ही होगा, तभी दिल्ली का विकास बेहतर तरीके से हो पायेगा।

 

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