उदार व्यक्तित्व में 'अटल’ रहे वाजपेयी
भारतीय राजनीति में जब भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की बात होती है, तो निश्चित तौर पर उनकी उदारवादी छवि और पारदर्शी सोच की जरूर बात होती है। यही वजह भी रही कि वह जितना स्वीकार्य पार्टी के अंदर रहे, विपक्षी भी उनका उतना ही सम्मान करते रहे हैं। यह कितनी अलग और विलक्षण बात है कि एक कट्टर विचारधारा वाली पार्टी का चेहरा और आरएसएस की लॉबी से आने के बाद भी वाजपेयी ने भारतीय राजनीति में उदारवादी छवि का जो उदाहरण पेश किया, वह बेमिसाल है। ठीक भारत देश के व्यक्तित्व के अनुरूप ही, जिसमें सभी को अंगीकार करने की क्षमता भी रही और सबको साथ ले कर चलने की सोच भी। उनकी इसी विलक्षण प्रतिभा ने उन्हें भारतीय राजनीति में एक अलग पहचान दी। तभी तो 23 पार्टियों को एक साथ लेकर पांच साल तक उन्होंने सरकार चलाई।
इस दौर में राजनीति का जो स्वरूप विकसित हो रहा है, ऐसे में देश को वाजपेयी जैसी प्रतिभाएं मुश्किल से ही मिलती हैं। अमुमन, भारतीय राजनीति में ऐसे कम ही उदाहरण मिलेंगे, जिस काट पर वाजपेयी ने राजनीति की। चाहे वह राजनीति को अलग दिशा देने की बात हो या फिर विकास की ऐसी धारा प्रवाहित करने की बात, जो महात्मा गांधी की सोच को जीवंत करती दिखाई देती रही। वाजेपयी की इसी सोच का नतीजा है कि भारत के गांव आज चाहे सड़क मार्ग से हों या संचार माध्यमों से, शहरों से कनेक्ट हैं। दिन ढ़लते ही अंध्ोरे की काल कोठरी बन जाने वाले गांव आज शाम होते ही बिजली की जगमगाहट में तैरने लगते हैं। दूर से निगाह पड़ते ही लगता है, वो सुदूर शायद वहां भी कोई छोटा शहर बसा हुआ है। गांवों को जोड़ने वाली जिन पंगडंडियों को नापने में कई घंटे बीत जाते थ्ो, आज कोई कार ठिठक कर वहां पहुंच जाती है। और ग्रामीण, जिन राहों को नापने में घंटों समय खर्च किया करते थ्ो, आज वह समय मिनटों में आकर सिमट पड़ा है। यानि विकास का ऐसा प्रवाह, जो अंतिम सीढ़ी तक पहुंचे न कि ऊपर-ऊपर में ही सिमट कर रह जाए। गांव ही भारत की आत्मा हैं, वाजपेयी ने क्षीण व जर्जर पड़ी आत्माओं को पोषण देने का बड़ा काम किया।
दूसरा, आईने में झांका जाए तो इस दौर में राजनीति का चेहरा बड़ा ही बदशक्ल नजर आता है। सत्ता की चाहत के लिए अपने चरित्र की तिलांजलि देने तक में कोई गुरेज नहीं होता है। विभिन्न धर्म व सम्प्राय से परिपूर्ण देश में, उन्हें एक धागे से पिरोए रखने की बात तो दूर, जब धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर ही राजनीति होने लगे, उन्हीं के नाम पर सत्ता के शिखर में पहुंचने के सपने देखे जाने लगे तो निश्चित तौर पर वाजपेयी जैसा नेता जेहन में उतर में आता है। उन्होंने न केवल अपने विशाल व्यक्तित्व के माध्यम से देश की राजनीतिक जड़ों को मजबूत किया, बल्कि दुनिया में भारतीय संस्कृति, सभ्यता, साहित्य और भाषा को भी स्थापित करने का काम किया। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में उनके द्बारा हिन्दी में दिया गया भाषण आज भी याद किया जाता है। आज के दौर में भले ही वाजपेयी की तरह विरोधियों में स्वीकार्यता वाली छवि को कोई दूसरा दोहरा न पाए, लेकिन उस खांचे में सभी को ढलना पड़ेगा, जिस काट पर वाजपेयी ने राजनीति की। यानि विकास और राजनीतिक सोच का ऐसा प्रवाह, जो हर तरफ समान रूप से बहे। सबके विकास की बात करे। सबको साथ लेकर चलने की सोच रख्ो।
वाजपेयी तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने। 23 पार्टियों को साथ लेकर पांच साल तक सरकार चलाने से पहले वह 13 दिन और 13 माह तक भी देश के पीएम रहे, लेकिन उन्होंने सत्ता के लिए उस तरह के समझौते नहीं किये, जो आज के दौर में देखे जाते हैं। इसी का नतीजा भी था कि उन्होंने 13 दिन के अलावा 13 माह के शर्ट टर्म तक सरकार चलाई। शायद, वह अपने शर्तों व सिद्धांतों के अनुरूप काम नहीं करते तो वह छोटे अंतराल तक चली सरकार को आगे भी खींच सकते थ्ो।
उदार छवि रखने वाले वाजपेयी ने पोखरण परीक्षण के जरिए दुनिया को अपनी ताकत का अहसास भी कराया। जो भारतीय संप्रभुता का शंखनाद तो था ही बल्कि तमाम दबावों में भी अटल रहने की उनकी काबिलियत को भी दर्शाता है। जब शिखर वार्ता के जरिए पाक के साथ कश्मीर मसले पर कोई नतीजा नहीं निकला तो उन्होंने करगिल युद्ध के जरिए पाक को धूल चटाकर, अपनी वीर रस की कविता की पक्तियों, हार नहीं मानूंगा...रार नहीं ठानूंगा...को चरितार्थ किया।
ऐसा नहीं की वाजपेयी पर मनगढ़त आरोप नहीं लगे। उन्हें संघ का मुखौटा तक कहा गया, लेकिन उनके राजनीतिक सफर से ऐसा कतई नहीं लगता है कि उन्होंने पीएम के तौर संघ के मुखौटे के तौर पर काम किया। आरएसएस की लॉबी से आने के बाद भी उन्होंने अपनी एक अलग दिशा बनाई, और सभी दलों में उनकी स्वीकार्यता बनी रही। यह उनकी विलक्षण प्रतिभा ही थी कि देश की राजनीति में पहली बार लगभग दो दर्जन दलों को साथ लेकर पांच साल तक उन्होंने सरकार का कुशल नेतृत्व किया। जब सभी राजनीतिक पार्टियों की अपनी अलग विचारधारा है, उनकी अलग राजनीतिक जमीन है। फिर भी ऐसी विचारधारा और राजनीतिक जमीन का गठजोड़ करना उनके अद्भूत राजनीतिक कौशल को दर्शाता है।
जब रविवार को पूरे देश ने जश्न के साथ उनका 92वां जन्मदिवस बड़े ही धूमधाम से मनाया, हर तरफ उन्हें उनके जन्म दिवस पर बधाईयां दी गईं, तब वह खामोश थ्ो। वह इसी तरह करीब एक दशक से खामोश हैं। यह बड़ा ही अजीब संयोग है, जिस अद्भूत वाणी व भाषण कला से वह हर किसी को अपनी तरफ खींचते थ्ो, आज वही वाणी उनसे गुम है,उनसे दूर है। देश का ऐसा राजनेता आज मौन है, जो शब्दों का ऐसा जादूगर रहा। उनके भाषणों के बीच कविता का संयोजन उनकी अलग प्रतिभा को बरबस ही दर्शाता था। उनकी वीर रस की कविताएं लोगों में देशभक्ति का जोश भर देती हैं। शायद ही कोई ऐसा शख्स हो, जो आज भी उनकी वाणी से उनकी कविताओं को सुनने की लालसा न रखता हो। जिस जमाने में टीवी का उतना प्रचलन नहीं था, लोग उनके भाषणों को रेडियो पर बड़े ही चाव से सुनते थ्ो। उनकी आवाज गलियों व ख्ोतों में रेडियो पर गूंजती थीं। ऐसे में उनका मौन रहना अवश्य कष्ट देता है।
बहुत बढ़िया
ReplyDeletepapola ji veri good.
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