आत्मविश्वास जरूरी, पर चुनौती कम नहीं
'कांग्रेस वर्किंग कमिटी’(सीडब्ल्यूसी)की बैठक में 'राहुल गांधी’ सहित दूसरे नेता '2०19 के चुनावों’ को लेकर बड़े ही आत्मविश्वास में नजर आए। 'पी. चिदांबरम’ ने जिस तरह 3०० सीटों का फार्मुला पेश किया, वह इस बात को इंगित करने के लिए काफी है कि शून्य पर पहुंच चुकी पार्टी में अभी शिखर पर जाने का जज्बा बरकरार है। एक पार्टी के तौर पर 'कांग्रेस’ के लिए यह अच्छी बात है। कम-से-कम इससे कार्यकर्ताओं में चुनावों को लेकर उत्साह तो देखने को मिलेगा, लेकिन कुछ हकीकतों को इससे जोड़ दिया जाए तो यह कांग्रेस के लिए कोई हल्की चुनौती नहीं है।
वर्तमान में जो परिस्थितियां चल रही हैं, उससे कहीं भी यह नहीं लगता है कि कांग्रेस 3०० के जादुई आकड़े को छू पाएगी। चाहे वह कांग्रेस और गठबंधन को मिलाकर ही क्यों न हो। कांग्रेस भले ही अपने व्यूह में साफ हो, लेकिन गठबंधन मोर्चे पर अभी टकराव की भी उम्मीद है, क्योंकि गठबंधन का चेहरा तय नहीं होने की वजह से खींचतान न हो, इससे बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है। 'बसपा’ की तरफ से पहले ही इस बात के संकेत मिले हुए हैं कि 'मायावती’ को 'महागठबंधन’ का चेहरा बनाया जाए और दूसरी तरफ, कांग्रेस ने वर्किंग कमेटी की बैठक में जिस तरह से 'राहुल गांधी’ को चेहरा बनाने की वकालत की, वह रणनीतिक तौर पर काफी मायने रखता है। राहुल को न केवल कांग्रेस का चेहरा बनाने की बात तय हुई, बल्कि महागठबंधन के तौर पर उन्हें नेता चुनने को लेकर एकमत होकर निर्णय लिया गया। इस मसले पर दूसरी पार्टियों का क्या रिएक्शन होगा, यह आने वाले दिनों पता चलेगा, लेकिन इतना तो तय है कि कांग्रेस ने वर्किंग कमिटी की बैठक के दौरान जिस तरह अपने संदेश को साफ किया, उससे पार्टी स्तर पर तो चीजें साफ होती ही हैं, बल्कि 'महागठबंधन’ को क्या शक्ल मिलेगी, यह भी तय हो जाएगा।
कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है। आजादी के बाद अधिकांश समय तक देश में कांग्रेस ने ही राज किया। कुछ बड़े अपवादों के चलते पार्टी की समय-समय पर छिछालेदार होती रही,लेकिन 2०14 लोकसभा चुनाव में जिस प्रकार पार्टी अपने चुनावी प्रदर्शन के निचले स्तर पर आई, वह कांग्रेस के प्रति लोगों के गुस्से को जाहिर करने वाला था, क्योंकि 'डॉ. मनमोहन सिंह’ के दौर में जिस प्रकार बड़े-बड़े घोटाले सामने आए, वह ऐसी तस्वीर थी, जिस तरह से कोई चील-कौव्वे किसी मरे हुए जानवर को नोंच खाते हैं। नेताओं ने भी इस तरह देश को नोंच खाने की कोशिश की है। पर 'लोकतंत्र की खूबी’ जब तक रहेगी, इस तरह की मानसिकता लंबे समय तक नहीं चल सकती है। युवा भारत आज जागरूक है। उसे पता है कि असली विकास कैसा होना चाहिए।
अगर, उसमें कोई खरा उतरता है तो वह उसके हित में भी ठीक है और देश के हित में भी ठीक है। यह विकास को पटल पर लाने की प्रतियोगिता का दौर है। 'भ्रष्टाचार’ ने देश की जड़ों को खोखला किया है, जिसकी वजह से देश में 'अमीरी-गरीबी’ के बीच अंतर कम होने के बजाय बढ़ा है। इस अंतर को कम करने के लिए सरकारी तंत्र को सुधारना और 'भ्रष्टाचार मुक्त बनाना’ बहुत जरूरी है। अगर, किसी पार्टी और 'राजनेता’ में ऐसी 'राजनीतिक इच्छाशक्ति’ है तो निश्चित ही उसके परिणाम भी सकारात्मक आएंगे।
2०19 को चुनाव अब नजदीक है। ऐसे में, चुनौती दोनों बड़ी पार्टियों के लिए है, लेकिन देश की जनता अपना अच्छा बुरा समझती है। ऐसे में, वह उचित फैसला लेगी। इस दौर में राजनीतिक पार्टियों के लिए भी यह सबक होगा कि जनता अब आंख मूंदकर नहीं बल्कि आंख खोलकर मतदान करने के लिए पूरी तरह जागरूक है, इसीलिए कोई पार्टी यह न सोचे कि बरगलाकर कोई चुनाव जीत सकता है।
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