फिल्मों के जरिए की 'भारतीयता’ की 'खोज’
अगर, मन में देशभक्ति का जुनून हो तो वह किसी भी रूप में दिखाई जा सकती है, क्योंकि ऐसे ही लोगों की वजह से हमारी मातृभूमि, हमारी संस्कृति और हमारी धरोहर की रक्षा होती है। फिल्में भी देशभक्ति के प्रति जुनून पैदा करने का बड़ा माध्यम होती हैं, लेकिन पहले कहें या फिर इस दौर में, ऐसी फिल्में बहुत कम देखने को मिलती हैं। कुछ चुनिंदा 'देशभक्ति का जुनून’ पैदा करने वाली 'फिल्में’ आईं भी तो ऐसी अधिकतर फिल्में बनाने का काम 'मनोज कुमार’ जैसी 'शख्सियत’ ने किया। वह अपनी देशभक्ति की फिल्मों के कारण काफी मशहूर हुए। उन्होंने जिस अंदाज में देशभक्ति के जज्बे को करीब से छुआ, शायद ही, उसका कोई सानी होगा।
आज यानि '24 जुलाई’ को उनका जन्मदिवस है। ऐसी देशभक्ति से परिपूर्ण फिल्में देने वाले मनोज कुमार को याद करना हमारे लिए बड़े गौरव की बात है। 'मनोज कुमार’ का जन्म 24 जुलाई 1937 को 'पाकिस्तान’ के 'अबोटाबाद’ में हुआ था। उनका असली नाम हरिकिशन गिरि गोस्वामी है। देश के बंटवारे के बाद उनका परिवार 'राजस्थान’ के 'हनुमानगढ़’ जिले में बस गया था। मनोज कुमार भारतीय हिन्दी सिनेमा जगत के प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता और निर्देशक हैं। उन्होंने अपनी फिल्मों के माध्यम से लोगों में देशभक्ति की भावना का गहराई से अहसास कराया था। <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>
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उन्होंने 'शहीद’, 'उपकार’, 'पूरब’ और 'पश्चिम और क्रांति’ जैसी देशभक्ति से परिपूर्ण 'फिल्में’ दीं। इसी वजह से उन्हें 'भारत कुमार’ के नाम से भी जाना जाता है। मनोज कुमार 'शहीद-ए-आजम’ 'भगत सिंह’ से बेहद प्रभावित थ्ो। उनके इसी प्रभाव के चलते उन्होंने 'शहीद’ जैसी 'कालजई’ फिल्म बनाई, जिसमें उन्होंने अमर सपूत के किरदार को जीवंत करने की प्रेरणा दी। मनोज कुमार ने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से स्नातक किया, उसके बाद ही उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में अपना पैर रखा। मनोज कुमार ने 1०० से अधिक फिल्मों में अभिनेता, निर्देशक, लेखक और निर्माता के तौर पर काम किया है। उन्हें 1972 में बनी 'बेईमान’ फिल्म के लिए 1993 में 'फिल्मफेयर’ सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। मध्यप्रदेश सरकार ने उन्हें 2००8 में 'किशोर कुमार सम्मान’ से भी सम्मानित किया। उन्हें 'दादासाहेब फाल्के पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया जा चुका है। 1992 में 'भारत सरकार’ द्बारा मनोज कुमार को 'पद्मश्री सम्मान’ से भी सम्मानित किया जा चुका है।
मनोज कुमार ने 'अपनी फिल्मों’ में 'भारतीयता’ की 'खोज’ की। उन्होंने सच में बताया भी और दिखाया भी कि 'देशप्रेम’ और 'देशभक्ति’ होती क्या है। कोई भी उनकी फिल्म ऐसी नहीं है, जिसे देखते हुए आंखों से आंसू नहीं बहते हों। सच में, उन्होंने दूसरे कलाकारों के इतर मुनाफे से ज्यादा अपना नाम कमाया। जहां 'दिलीप कुमार’ अपनी फिल्मों में एक उदास, दु:खी और हमेशा असफल, अवसाद से भरे प्रेमी की भूमिकाएं निभाने के चलते 'टàेजिडी किंग’ कहलाए, वहीं मनोज कुमार की फिल्में अपने बेहतर कथावस्तु के चलते काफी हिट हुईं, जिन्हें आज भी याद किया जाता है। मनोज कुमार एक ऐसी शख्सियत थ्ो, टॉप होने के बाद भी उन्होंने अपने फिल्मों में रोमांस करने के बजाय देशभक्ति की फिल्में करना ज्यादा जरूरी समझा, क्योंकि वह ऐसा दौर था, जब युवाओं में देशभक्ति का जुनून बहुत जरूरी था।
उनको भारत कुमार के नाम भी जाना जाता है, इसकी वजह यह भी रही कि पांच फिल्मों में उनका नाम भारत रहा। उसके बाद से ही वह भारत कुमार के नाम से लोकप्रिय हुए। 'शहीद’ मनोज कुमार की सर्वश्रेष्ठ फिल्म मानी जाती है। इस फिल्में में उन्होंने 'शहीद भगत सिंह’ का किरदार निभाया, जो बेहतरीन रहा। फिल्म 'शहीद’ के दो साल बाद उन्होंने बतौर निर्देशक अपनी पहली फिल्म 'उपकार’ को बनाया, जिसमें उन्होंने भारत नाम के किसान युवक को किरदार निभाया, जिसे बाद में परिस्थितिवश गांव की पगडंडियां छोड़कर मैदान-ए-जंग का सिपाही बनाना पड़ता है। यह फिल्में काफी सराही गई। इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ कथा और सर्वश्रेष्ठ संवाद की श्रेणी में 'फिल्मफेयर’ पुरस्कार मिला था। फिल्म को द्बितीय सर्वश्रेष्ठ 'फीचर फिल्म’ का 'राष्ट्रीय पुरस्कार’ तथा 'सर्वश्रेष्ठ संवाद’ का 'बीएफजेए अवॉर्ड’ से भी सम्मानित किया जा चुका है।
मनोज कुमार ने फैशन के जरिए फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा था। उनकी पहली फिल्म कांच की गुड़िया 196० में प्रदर्शित हुई, उसके बाद दो और फिल्में 'पिया मिलन की आस’ और 'रेशमी रुमाल’ आईं, लेकिन ये फिल्में बहुत ज्यादा हिट नहीं हो पाईं। 1962 में आईं 'हरियाली और रास्ता’ हिट हो गईं। उन्होंने 'वो कौन थी’, 'हिमालय की गोद में’, 'गुमनाम’, 'दो बदन’, 'पत्थर के सनम’, 'यादगार’, 'शोर’, 'सन्यासी’, 'दस नबंरी’ और 'क्र्लक’ जैसी फिल्मों में भी काम किया। 'मैदान-ए-जंग’ उनकी आखिरी फिल्में थीं, जो 1995 में आई थी। उन्हें फिल्म 'बेईमान’ के लिए जहां सर्वश्रेष्ठ अभिनेता वहीं 'रोटा कपड़ा और मकान’ के लिए 'सर्वश्रेष्ठ फिल्म फेयर’ के 'अवॉर्ड’ से नवाजा गया था। फिल्म 'उपकार’ गाना यह गाना कौन भूल सकता है- 'मेरे देश की धरती सोना उगले...’, 'उगले हीरे-मोती’...। यह गीत हमारी मातृभूमि की अहमियत को हमें बताता है। इसीलिए तो यह गीत हर किसी जुबान पर आसानी से सुना जा सकता है।
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