Guru Dutt : "India's Orson Welles ...
आज ०9 जुलाई है। यह दिन इसीलिए महत्वपूर्ण है,क्योंकि आज ही के दिन भारतीय फिल्म जगत केप्रसिद्ध अभिनेता, निर्देशक और फिल्म निर्माता 'गुरुदत्त’ का 'जन्म दिवस’ है। गुरुदत्त का जन्म ०9 जुलाई 1925 को बंगलौर में हुआ। उनके पिता का नाम शिवशंकर राव पादुकोण्ो व माता का वसंती पादुकोण्ो था। गुरुदत्त के माता-पिता कोंकण के चित्रपुर सारस्वत ब्राह्मण थ्ो। उनके पिता शुरूआत के दिनों में एक विद्यालय में हेडमास्टर थ्ो, लेकिन बाद में उन्होंने बैंक की नौकरी शुरू की, जबकि माता गृहणी थीं, जो बाद में एक स्कूल में शिक्षिका बन गईं। वह लघु कथाएं भी लिखती थीं और बंगाली उपन्यासों का कन्नड़ भाषा में अनुवाद भी किया करती थी।
गुरुदत्त का वास्तविक नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण्ो था। हिन्दी सिनेमा जगत में गुरुदत्त का विशिष्ठ स्थान है। उन्होंने कई हिट फिल्में दी। 195० और 196० के दशक में वह काफी लोकप्रिय थ्ो। प्यासा, कागज के फूल, साहिब बीबी और गुलाम और चौदहवीं का चांद जैसी फिल्में उन्होंने बनाईं। 'प्यासा’ और 'कागज के फूल’ जैसी फिल्मों को 'टाइम मैगजीन’ की 1०० सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की सूची में भी जगह मिली। उन्हें कभी-कभी 'भारत का ऑर्सन वेल्स’ भी कहा जाता है। उनकी अदाकारी का लोहा इसी से माना जा सकता है कि 2०1० में सीएनएन के 25 सर्वश्रेष्ठ एशियाई अभिनेताओं की सूची में भी उनका नाम शामिल रहा। उन्होंने काव्यात्मक और कलात्मक फिल्मों के व्यावसायिक चलन को विकसित किया, जिसे भारत के बाहर भी काफी सराहा गया।
गुरुदत्त के करियर की शुरूआत और जीवन के अंतिम क्षणों का दौर काफी दु:खद व संघर्षपूणã रहा। उन्होंने फिल्म जगत में पैर रखने से पहले कलकत्ता स्थित लीवर ब्रदर्स फैक्ट्ररी में 'टेलीफोन ऑपरेटर’ की भी नौकरी की। जब उनका मन वहां ज्यादा नहीं लगा तो वह वहां से इस्तीफा देकर 1944 में अपने माता-पिता के पास बंबई वापस लौट आए। यहीं से उनकी फिल्मी करियर की शुरूआत हुई।
गुरुदत्त से जुड़ी एक महत्वपूर्ण बात यह है कि जब वह 16 साल के थ्ो तो उन्होंने 1941 में पूरे पांच साल के लिए 75 रुपए वार्षिक छात्रवृत्ति के लिए अल्मोड़ा जाकर नृत्य, नाटक और संगीत की शिक्षा लेनी शुरू की, लेकिन 1944 में द्बितीय विश्वयुद्ध के कारण उदय शंकर इंडिया कल्चर सेंटर बंद हो गया, जिसकी वजह से उन्हें वापस अपने घट लौट आना पड़ा। बाद में उन्हें उनके चाचा ने प्रभात फिल्म कंपनी में तीन साल के अनुबंध के तहत फिल्मों में काम करने के लिए भ्ोज दिया। वहीं, पर जाने-माने फिल्म निर्माता वी शांताराम ने कला मंदिर के नाम से अपना स्टूडियो खोल रखा था। यहीं पर गुरुदत्त की मुलाकात फिल्म अभिनेता 'रहमान’ और 'देवआनंद’ साहब से हुई। बाद ये सब गहरे मित्र बन गए। गुरुदत्त को सबसे पहले 1944 में चांद नामक फिल्म में श्रीकृष्ण की छोटी-सी भूमिका मिली।
इसके अगले वर्ष 1945 में उन्हें अभिनय के साथ ही फिल्म निर्देशक विश्राम बेडेकर के सहायक के रूप में वह काम देखने लगे। 1946 में उन्होंने एक निर्देशक पीएल संतोषी की फिल्म हम एक हैं कि लिए नृत्य निर्देशन का काम किया। उन्होंने संघर्ष के दौर में ही आत्मकथात्मक श्ौली में प्यासा फिल्म की पटकथा लिखी। मूलरूप से यह पटकथा कश्मकश के नाम से लिखी गई थी, जिसका हिंदी अर्थ संघर्ष होता है। गुरुदत्त को प्रभात फिल्म कंपनी ने बतौर कोरियाग्रॉफर के रूप में काम पर रखा था, लेकन उन पर जल्द ही एक अभिनेता के रूप में काम करने का दबाव डाला गया। इसके अलावा एक सहायक निर्देश के रूप में भी उनसे काम लिया गया। प्रभात में काम करते हुए उन्होंने देव आनंद और रहमान से अच्छे संबंध बना लिए थ्ो, जो उनके फिल्मी करियर में काफी मददगार साबित हुए।
उतार-चढ़ाव वाले फिल्मी करियर की तरह ही गुरुदत्त के जीवन का अंतिम सफर भी दु:खद रहा। 1० अक्टूबर 1964 की सुबह गुरुदत्त पढेर रोड़ बॉम्बे में अपने बेड पर मृत अवस्था में पाए गए थ्ो। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने काफी ज्यादा शराब पीने के बाद नींद की गोलियां खा ली थीं, जो उनकी मौत का कारण बना। इससे पूर्व भी उन्होंने दो बार आत्महत्या का प्रयास किया, जिसमें वह बच गए थ्ो, लेकिन तीसरे प्रयास ने उनकी जान ले ली।
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