महागठबंधन की मुश्किल डगर
बीजेपी के खिलाफ लोकसभा चुनावों के लिए तैयार हो रहे महागठबंधन में दरार के संकेत हैं। असल में, महागठबंधन की तैयारियों के लिए आगामी 22 नवंबर को होने वाली बैठक को टाल दिया गया है। बताया जा रहा है कि यह बैठक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू की पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद ऐसा किया गया है। हालांकि यह बताया जा रहा है कि आगामी 19 जनवरी को अब यह बैठक होगी। इसका मतलब यह है कि महागठबंधन को लेकर कुछ-न-कुछ खींचतान चल रही होगी, तभी जाकर इस मीटिंग को टाल दिया गया होगा, भले ही, महागठबंधन की तैयारियों में लगी पार्टियां खींचतान न
समझें, लेकिन इसके राजनीतिक मायने बिल्कुल समझ में आने वाले हैं, क्योंकि 22 दलों के गठबंधन को आगे ले जा पाना आसान नहीं होगा। जब चुनावी मैदान में उतरने से पहले ही खींचतान शुरू हो गई है तो निश्चित ही यह मानना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि यह महागठबंधन सरकार को कैसे चला पाएगा।
यह महागठबंधन बनता भी है तो इसमें इतनी खामियां हैं, जिन्हें शायद ही देश का जागरूक मतदाता हजम कर पाए। सबसे पहली बात यह है कि महागठबंधन के पास अपना कोई चेहरा नहीं है और स्वयं को चेहरा बनाने की होड़ में सभी हैं, ऐसे में क्या इस महागठबंधन का कोई भविष्य होगा। ऐसी भी उम्मीद बहुत कम दिख रही है कि किसी एक चेहरे को लेकर कोई सहमति बनने वाली है। अगर, ऐसा नहीं होता है तो महागठबंधन निश्चित ही मैदान में उतरने से पहले ही फुस्स हो जाएगा। यहां बता दें कि लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता को सुदृढ़ करने के लिए गैर-बीजेपी पार्टियां राजधानी दिल्ली में आगामी 22 नवंबर को बैठक करने वाले थे, लेकिन यह बैठक टलने की खबर सामने आ
रही है। बताया जा रहा है कि अब यह बैठक आगामी 19 जनवरी को होगी। इस बैठक में विपक्षी दल आगामी 2019 में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को रोकने की रणनीति पर चर्चा करने वाले थे, जिससे कोशिश यह की जा रही थी कि जनता में एकता का संदेश जाए, लेकिन यह संदेश फिलहाल, जाता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है। अभी कई राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। कोशिश यह थी कि इन्हीं चुनावों में विपक्षी एकता का संदेश दिया जाए, लेकिन बैठक टलने से महागठबंधन की तैयारियों में जुट रही पार्टियों के लिए यह किसी झटके से कम नहीं है।
लोकतंत्र बचाओ, देश बचाओ का लक्ष्य लेकर गैर बीजेपी दल टीएमसी, टीडीपी,एनसी,डीएमके, जेडी-एस, सीपीआई,सीपीएम, आप,एसपी, आरजेडी और आरएलडी एकसाथ चुनावी मैदान में उतरने की रणनीति बना रहे हैं। ये दल मानते हैं कि बीजेपी ही उनकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी है। जब जोरशोर की तैयारियों के बीच बैठक टल गई है तो इससे इनकी रणनीति तो प्रभावित होगी ही, बल्कि बीजेपी की ताकत को और हवा भी मिलेगी। दीगार बात है कि लगभग एक साल पहले विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की पहल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने की थी। ममता बनर्जी ने बीजेपी के सभी विरोधियों को उसके खिलाफ लड़ने के लिए एक मंच तैयार करने की कोशिश की, जिस मुहिम को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने आगे बढ़ाने का काम किया, लेकिन जिस प्रकार मीटिंग को टालना पड़ा है, उसमें महागठबंधन के बीच खींचतान ही प्रमुख कारण हो सकता है, क्योंकि हर कोई स्वयं को चेहरा बनाना चाहता है। जिसका नुकसान महागठबंधन को तो होगा ही, बल्कि चुनावी महफिल भी गड़बड़ाएगी। ऐसे में, आगामी चुनावों की तस्वीर को देखना बेहद दिलचस्प होगा। बीजेपी के खिलाफ अगर महागठबंधन को उतरना है तो वह मुकाबले को तभी पेंचीदा बना सकता है, जब उसके पास कोई एक चेहरा होगा, जिसके दम पर महागठबंधन चुनाव मैदान में उतरे। देश का मतदाता भी यही चाहता है। यह नया दौर है, इसीलिए मतदाता भी इसी अनुरूप सोचता और समझता है कि कौन उन्हें क्या गुल खिलाने वाला है।
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