आरक्षण का झुनझुना
आम चुनाव नजदीक हैं। और फरवरी में आचार संहिता लगने की संभावना है। ऐसे में, केंद्र सरकार हर वह जतन करने के प्रयास में जुट गई है, जिससे समाज के हर वर्ग को लुभाया जा सकता है। किसानों के बाद अगर इस वक्त देश में कोई दूसरा बड़ा मुद्दा है तो वह आरक्षण से संबंधित है। एससी-एसटी एक्ट को लेकर सरकार का जो रवैया रहा था, उसके तहत देश का सवर्ण समाज काफी नाराज चल रहा था, जबकि 2०14 में बीजेपी को सत्ता तक पहुंचाने में सवर्ण समाज की भूमिका महत्वपूर्ण रही थी। उनकी नाराजगी को ही दूर करने के लिए समाज को 1० फीसदी आरक्षण देने का ऐलान कर दिया गया। बकायदा, जिसे लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी मंजूरी दी जा चुकी है। निश्चित ही, इससे सवर्ण समाज के बीच धु्रवीकरण की स्थिति कम देखने को मिलेगी, लेकिन मुद्दे और भी बहुत सारे हैं। पर आरक्षण के मद्देनजर ही बात की जाए तो इसका कितना फायदा लोगों को मिल पाएगा, इसकी सच्चाई को जानना भी जरूरी लगता है, क्योंकि सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि जब देश में जॉब्स नहीं हैं तो आरक्षण का करेंगे क्या ? यह तो गंजों के शहर में कंध्ो बेचने वाली बात हो गई।
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Narendra Modi, PM Of India. |
जॉब्स का संकट
आरक्षण दे दिया और जॉब्स हैं नहीं। देखा जाए तो सरकार ने तो गजब ही ढहा दिया। यह तो युवाओं के मुंह में तमाचा मारने जैसी बात हो गई। वादा किया गया था कि हर साल दो करोड़ युवाओं को नौकरी दी जाएगी, लेकिन वह भी झुनझुना ही साबित हो गया। और इससे भी बिल्कुल इनकार नहीं किया जा सकता है कि आरक्षण देने वाला स्टंट भी झुनझुना ही साबित होगा। हमारे देश में इस तरह की स्थितियां बेहद हैरान करनी वाली होती है। सरकारें वोट बैंक की राजनीति के लिए बहुत-सी घोषणाएं तो कर देती हैं, लेकिन उनकी घोषणाएं कभी भी धरातल पर उतर नहीं पाती हैं। 2०14 में बीजेपी ने सत्ता में हर वह तरकीब अपनाई, जिससे उसे फायदा हो। चाहे वह हर व्यक्ति के खाते में 15-15 लाख रुपए देने की बात रही हो या फिर दो करोड़ युवाओं को हर साल नौकरी देने की बात। इसके इतर हिंदू वोट बैंक को खुश करने के लिए राम मंदिर बनाने सहित कई और मुद्दे शामिल रहे, लेकिन इन घोषणाओं पर तो बीजेपी सरकार ने कोई अमल नहीं, पर नए-नए स्टंट के माध्यम से पार्टी जनता को खुश करने के बजाय उसे उलझा ही रही है।
आरक्षण की वर्तमान स्थिति
आरक्षण की वर्तमान स्थिति देख्ों तो अभी जातियों के आधार पर साढ़े 49 फीसदी आरक्षण उन जातियों के लिए है, जो सवर्ण नहीं हैं, यानि एक तरह से साढ़े 5० फीसद आरक्षण सवर्णों के लिए पहले से ही बचा चला आ रहा है। यह अलग बात है कि इसका लाभ सामान्य श्रेणी की सभी जातियां उठाती हैं। भंयकर बेरोजगारी के दौर में सवर्ण तबके की तरफ से यह मांग पहले से ही है और आजकल तो और ज्यादा जोरशोर से उठाई जा रही है कि आरक्षण जाति के आधार पर नहीं, बल्कि आर्थिक आधार पर होना चाहिए। इस तर्क को कमजोर बताने वाले कहते हैं कि आजादी के बाद जाति के आधार पर आरक्षण का फैसला यही देखकर तो किया गया था कि वे जातियां सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी हुई हैं। सदियों से दबाई गई, कुचली गईं और पीछे धकेली गई जातियों को आजादी के बाद सरकारी नौकरियों में और सरकारी पढ़ाई में एक सीमित आरक्षण ही दिया गया था। पिछड़े का मतलब ही यह लगाया गया था कि वे आर्थिक रूप से पिछड़े लोग हैं। माना गया था कि उनकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी तो उनकी सामाजिक स्थिति भी सुधर जाएगी। पिछले सात दशकों में यह काम चलता रहा, लेकिन बाद में पता चला कि सदियों से दबाए और कुचले गए देश के पास संसाधन सीमित हैं। लिहाजा, पूरा दमखम लगाने के बावजूद आजादी के बाद बनी अपनी खुद की सरकारें यानि लोकतांत्रिक सरकारें अभी तक वह लक्ष्य हासिल नहीं कर पाईं, जिसे हम समता वाला समाज कह सकें। सबके विकास का नारा लगाना आज भी उसी शक्ल में चालू है।
एक से एक राजनीतिक वीर आए और दम लगाकर जाते गए, लेकिन सबको नौकरियां या सबको बराबरी की पढ़ाई का पूरा इंतजाम अब तक भी नहीं किया सका। इसी अधूरी कामयाबी का नतीजा है कि आज भी सबको बराबरी पर लाने का नारा राजनीतिक फायदा उठाने के लिए ही है। आरक्षण उसी नारे का एक रूप था और नवीनतम नारा बना है, गरीब सवर्णों को भी आरक्षण।
चार पद, आठ हजार युवा
भले ही, जाति के आधार पर आरक्षण का विरोध सवर्णों का एक तबका इसलिए करता है, क्योंकि यह भंयकर बेरोजगारी का दौर है। औसतन 4 सरकारी नौकरी के पद के लिए औसतन 8 हजार बेरोजगार युवा लाइन में लगे दिखते हैं, इनमें जिन 7996 युवकों को नौकरी नहीं मिलती है, उन सारे के सारे 7996 युवाओं को लगता है कि चार में से जिन दो आरक्षित श्रेणी के युवाओं को नौकरी मिली है, वह उनके अपने हिस्से की थी। आरक्षण का विरोध करने वाले युवाओं की भीड़ को अभी कोई भी यह नहीं समझा पाया कि अगर, आरक्षण न भी हो, तब भी 8 हजार में से 7996 बेरोजगार ही बने रहेंगे, क्योंकि सरकारी नौकरियां तो सिर्फ 4 ही हैं। इसी तरह सरकारी संस्थानों में दाखिलों के लिए भी इस कदर की मारामारी है कि सरकारी प्रौद्योगिकी संस्थानों, सरकारी मेडिकल कॉलेजों और सरकारी प्रबंधन संस्थानों में अगर, आरक्षण न भी हो तो उतने ही लाख सवर्णों को दाखिला नहीं मिलेगा, जितने लाख बेरोजगारों को अभी चालू आरक्षण की व्यवस्था में दाखिला नहीं मिलता, यानि समस्या आरक्षण की नहीं, बल्कि भंयकर बेरोजगारी की है और न दाखिलों में आरक्षण की समस्या उतनी बड़ी है, जितनी बड़ी समस्या लगभग नगण्य संख्या में उपलब्ध सरकारी शिक्षा संस्थानों की है।
सरकार के कार्यकाल के आखिरी साल में आखिरी तीन महीनों में अचानक यह प्रस्ताव पारित हुआ है। अब सवाल है कि 5० फीसदी से ज्यादा आरक्षण न होने का अदालती आदेश कितना आड़े आएगा, तब संविधान में संशोधन या अध्यादेश या अधिनियम का लंबा चक्कर चलेगा। सब जानते हैं कि संविधान में संशोधन कितना संवेदनशील मामला होता है। इतना ही नहीं, इसके कानूनी पहलू के कारण अदालती मसला फिर बनेगा। यह तो कोई भी कह सकता है कि इस चक्कर का चलना इस सरकार के बचे चंद दिनों के कार्यकाल में तो लगभग असंभव है। हां, चुनावी प्रचार जरूर हो सकता है, ऐसे सुविधाजनक प्रचार के लिए लोकसभा में सरकार अपने फैसले को पेश करके बात आगे सरका सकती है और इस लोकसभा चुनाव में प्रचार का यह हथियार चला सकती है कि देखिए हमने तो आर्थिक आधार पर आरक्षण का काम शुरू कर दिया था, जाति के आधार पर आरक्षण पाए तबकों को यह जताते हुए सरकार प्रचार कर सकती है कि मौजूदा आरक्षण को छुए बगैर हमने गरीब सवर्णों को आरक्षण का काम अपनी तरफ से तो कर दिया था। सरकार यह कहती रह सकती है कि अब यह काम संसद में या संविधान में या अदालत में नहीं हो पा रहा है तो हम क्या करें ?
गरीबी की नई परिभाषा
1० फीसदी आरक्षण के तहत, जिन सवर्ण परिवारों की आमदनी आठ लाख रुपए प्रतिवर्ष से कम है, उनके सदस्यों को गरीब माना जाएगा। आजकल तीन से आठ लाख आमदनी वाला परिवार तो अच्छा खाता-पीता परिवार माना जाता है। वह इनकम टैक्स भी देता है, यानि गरीब सवर्णों के नाम पर एक अच्छी खासी तादाद में लोगों को लुभाया जा सकता है कि सरकार ने आपके लिए आरक्षण कर दिया, लेकिन खुद को योग्य समझने वाले इस बड़े भारी तबके के लिए 1० फीसदी आरक्षण से क्या वे यह मान सकते हैं कि अब उनके लिए नौकरी या दाखिले पाने में कोई सुविधा हो जाएगी। वैसे भी, अभी आरक्षण के बाद जो साढ़े 5० फीसदी नौकरियां सामान्य श्रेणी के लिए बची रहती थीं, उन्हें पाने का मौका तो उनके पास पहले से ही था, यह बात अपनी जगह है कि सरकारी नौकरियां हैं ही कितनी ?
यह रहेगी 1० फीसदी आरक्षण की तस्वीर
जिनकी सालाना आय 8 लाख से कम हो।
जिनके पास 5 एकड़ से कम ख्ोती की जमीन हो।
जिनके पास 1००० स्क्वायर फीट से कम का घर हो।
जिनके पास निगम की 1०० गज से कम अधिसूचित जमीन हो।
जिनके पास 2०० गज से कम की निगम की गैर-अधिसूचित जमीन हो।
बिल को लोकसभा में इस तरह मिले मत
पक्ष में विपक्ष में
323 ०3
बिल को राज्यसभा में इस तरह मिले मत
पक्ष में विपक्ष में कुल उपस्थिति
165 ०7 171
राष्ट्रपति ने दी मंजूरी
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से कमजोर तबके को सरकारी नौकरियों एवं शिक्षा में 1० फीसदी आरक्षण देने संबंधी विश्ोष प्रावधान को मंजूरी दे दी है। केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय की ओर से 12 जनवरी को जारी अधिसूचना में कहा गया है कि संविधान(1०3वां संशोधन) अधिनियम, 2०19 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है। संविधान (1०3वां संशोधन) अधिनियम के जरिए संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन किया गया है। इसके जरिए एक प्रावधान जोड़ा गया है, जो राज्य को ''नागरिकों के आर्थिक रूप से कमजोर किसी तबके की तरक्की के लिए विश्ोष प्रावधान करने की अनुमति देता है’’। यह ''विश्ोष प्रावधान’’ निजी श्ौक्षणिक संस्थानों सहित शिक्षण संस्थानों, चाहे सरकार द्बारा सहायता प्रा’ हो या न हो, में उनके दाखिलों से जुड़ा है।
कई पार्टियां कर चुकी थीं मांग
यूपी में 2००7 में जब मायावती सत्ता में आईं तो उन्होंने अपर कास्ट के गरीबों के लिए आरक्षण की मांग की। कांग्रेस ने भी इसका समर्थन किया था। मायावती ने फिर 2०11, 2०15 और 2०17 में मांग दोहराई। वहीं, 2०14 के आम चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी ने भी सवर्ण आयोग के गठन का वादा किया था। पार्टी ने कहा कि यह आयोग ऊंची जातियों के गरीब लोगों के उत्थान पर काम करेगी, जिसमें आरक्षण भी शामिल है।
आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने भी 2०16 में कहा कि हम अपने राज्य में सर्वे करवाकर सवर्णों में गरीब लोगों को आरक्षण देंगे। केरल सरकार के मंत्री और सीपीएम नेता कडकमपल्ली सुरेंद्रम ने कहा था कि ब्राह्मणों को कोटा मिलना चाहिए। सत्ताधारी एनडीए में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान और रामदास अठावले भी सवर्णों को आरक्षण देने की मांग कर चुके हैं।
पाना है कोटा तो जरूरी होंगे ये कागजात!
जाति प्रमाण-पत्र
बीपीएल कार्ड
पैन कार्ड
आधार कार्ड
बैंक पास बुक
इनकम टैक्स रिटर्न
यह है आरक्षण का नियम
संविधान के अनुसार, आरक्षण का पैमाना सामाजिक असमानता है। किसी की आय और संपत्ति के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 16(4) के अनुसार, कोटा किसी समूह को दिया जाता है और किसी व्यक्ति को नहीं। अपने फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आर्थिक आधार पर कोटा दिया जाना समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने कोटा देने की सीमा 5० फीसदी तय कर रखी है।
''सरकार ने युवाओं को नौकरियां देने का वादा किया था। पांच साल में कुछ नहीं किया। सालाना आय सीमा 8 लाख रुपए तय है, क्या 63 हजार महीना कमाने वाले अक्षम हैं ? हम इसके खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हमारी मांग है कि बिल को पहले संयुक्त संसदीय समिति-जेपीसी के पास भेजा जाए’’।
केवी थॉमस, कांग्रेस।
''यह बिल संविधान के साथ धोखा है और बाबासाहेब अंबेडकर का अपमान है। इससे सामाजिक न्याय नहीं हो रहा है, जो आरक्षण का मूलभूत आधार था’’।
-असदुदीन ओवैसी, एआईएमआईम।
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