बुआ-बबुआ का गठबंधन


  आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर उत्तर-प्रदेश महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला है। ऐसा हर बार होता आया है, लेकिन इस बार की स्थिति थोड़ी अलग है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी ने इसे भांपते हुए हाथ मिलाने का रास्ता साफ कर लिया है, जबकि प्रदेश की दोनों धुर-विरोधी पार्टियां हैं। कहा जा रहा है कि अब दोनों दलों का शीर्ष नेतृत्व जल्द ही सीटों के बंटवारे पर अंतिम दौर का विचार मंथन करेगा, जिसके तहत उन सीटों को चिह्नित किया जाएगा, जिन पर दोनों दल अपने-अपने उम्मीदवार उतारेंगे। सपा के नेता राजेंद्र चौधरी ने बताया कि लोकसभा चुनाव से पहले एसपी और बीएसपी गठबंधन पर राजी हो गईं हैं। गठबंधन पर औपचारिक ऐलान इसी महीने के अंत तक कर दिया जाएगा। कई मीटिगों के बाद एसपी चीफ अखिलेश यादव और बीएसपी चीफ मायावती ने गठबंधन को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दे दी है।


सपा-बसपा के आपसी तालमेल के बाद बीजेपी और कांग्रेस के समक्ष चुनौती और बढ़ जाएगी। छोटी-छोटी गठबंधन पार्टियों को छोड़ दिया जाए तो यहां दोनों बड़ी पार्टियां अपने दम पर चुनाव लड़ेंगी। बता दें कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश से बीजेपी के 68, एसपी के सात, कांग्रेस और अपना दल के दो-दो और आरएलडी के एक सांसद हैं।
सीटों का बराबर बंटवारा
 सपा-बसपा गठबंधन की खास बात यह है कि दोनों ही पार्टियां 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही हैं। चूंकि अभी यह साफ नहीं है कि कौन-सी सीट पर किस पार्टी का प्रत्याशी खड़ा होगा, लेकिन आने वाले दिनों में इसका भी ऐलान हो सकता है। फिलहाल, स्थिति यही है कि दोनों ही पार्टियां कांग्रेस और आरएलडी को साथ लेने के मूड में नहीं हैं, जबकि ओबीसी राजनीतिक दल जैसे- निषाद पार्टी, अपना दल (कृष्णा पटेल) को साथ में लेने की तैयारी है।
कांग्रेस से परहेज 
गठबंधन की खास बात है कि इसमें कांग्रेस के लिए भले ही जगह ना हो, लेकिन सोनिया-राहुल की सीटों रायबरेली और अमेठी पर दोनों ही पार्टियां कोई उम्मीदवार नहीं उतारेंगी। यही, आरएलडी चीफ अजीत सिह की सीट पर भी होने की उम्मीद है। इन दोनों पार्टियों के प्रति नरमी, इसीलिए दिखाई जा रही है, क्योंकि भविष्य में आकड़ेबाजी का गेम अगर फंसे तो इनको भी साथ लेने का रास्ता साफ हो सके। प्रदेश में चुनावी समीकरण बनाने के लिहाज से यह बड़ा गेम साबित हो सकता है, क्योंकि ये पार्टियां बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के मकसद से एकजुट हो रही हैं, लेकिन प्रदेश में कांग्रेस को साथ इसीलिए नहीं रखा जा रहा है, क्योंकि विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के साथ गठबंधन सपा को कोई फायदा नहीं दिला पाया था। 
कहीं प्रतिष्ठा न आ जाए आड़े
 सपा और बसपा प्रदेश की धुर विरोधी पार्टियां रही हैं, लेकिन यह मजबूरी है कि उन्हें गठबंधन करना पड़ा है। उन्हें खतरा इस बात का है कि कहीं उनकी लापरवाही के चलते बीजेपी फिर सत्ता में न आ जाए। लिहाजा, गठबंधन ही एक ऐसा मार्ग है, जिसके चलते बीजेपी की डगर डगमगा सकती है। इन परिस्थितियों के बीच इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि कहीं इन दोनों पार्टियों के बीच भी प्रतिष्ठा आड़े न आ जाए। बताया जा रहा है कि अखिलेश यादव मायावती को हावी होने देना नहीं चाहते हैं। लिहाजा, समाजवादी पार्टी बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने पर ज्यादा जोर दे रही है। अखिलेश बीएसपी को एक भी सीट ज्यादा नहीं देना चाहते हैं, जिससे मायावती के साथ उनकी साझेदारी बिना किसी अड़चन के चलती रहे, क्योंकि मायावती सीटों के मामले में मोलभाव करने में एक्सपर्ट हैं। 
 यह होगा सियासी गणित 
2०14 में लोकसभा चुनाव में 71 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने रेकॉर्ड 42.6 फीसदी वोट हासिल किए थे। एसपी के खाते में 22.3 फीसदी वोटों के साथ जहां 5 सीटें आई थीं, वहीं बीएसपी के खाते में 19.8 फीसदी वोटों के साथ एक भी सीट हाथ नहीं लगी थी। ऐसे में, इन दोनों पार्टियों का साथ आना दोनों ही के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा। उधर, गठबंधन में न शामिल किए जाने पर पिछले चुनाव में महज 7.5 फीसदी वोट पाने वाली कांग्रेस के लिए मुश्किलें और बढ़ेंगी। 
यह होगा सीटों के बंटवारे का फार्मुला
 एसपी-38 लोकसभा सीट।
 बीएसपी-38 लोकसभा सीट।
कांग्रेस- दो, गठबंधन में नहीं ले रही भाग, लेकिन दो सीटें अमेटी और रायबरेली पार्टी के लिए छोड़ी जा रही हैं। 
अन्य पार्टियां- चार लोकसभा सीट। जिसमें आरएलडी, निशाद पार्टी आदि शामिल हैं। 
2०14 में यह रही थी तस्वीर
 पार्टी       जीती सीट       वोट श्ोयर
 बीजेपी          71             42.6
 एसपी           ०5              22.3
 बीएसपी        ००             19.8
 कांग्रेस           ०2              7.5
अपना दल      ०2               ०1
 आरएलडी      ००              ०.9
 कांग्रेस: एकला चलो रे!
 आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर एसपी-बीएसपी गठबंधन के बीच प्रदेश में कांग्रेस एकला चलो रे के फार्मुले को अपनाएगी, क्योंकि वहां उसको गठबंधन जैसी कोई बात नजर नहीं आ रही, इसका बड़ा कारण यह भी है कि सपा-बसपा ने अपने गठबंधन में उसे शामिल नहीं किया है। इन परिस्थितियों के बीच कांग्रेस में निश्चित ही आत्मविश्वास होगा, क्योंकि उसने अभी तीन बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव जीतकर सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की है। लिहाजा, लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अकेले ही चुनावी मैदान में उतरने की तैयारियों में जुट गई है। 
 दरअसल, हाल ही में तीन राज्यों में कांग्रेस को मिली जीत ने पार्टी के लिए चुनाव से ठीक पहले मोटिवेशनल टॉनिक का काम किया है। ऐसे में, उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन में शामिल होना, कांग्रेस को घाटे का सौदा नजर आ रहा है। माना जा रहा है कि एसपी-बीएसपी गठबंधन में शामिल होने पर कांग्रेस को शायद ही, उसकी उम्मीद के मुताबिक सीटें मिल पाएं। ऐसे में, लोकसभा चुनाव में सीटों के गणित को देखते हुए कांग्रेस ने यूपी के रण में अकेले ही उतरने का मन बनाया है। बता दें कि कांग्रेस के शक्ति प्रॉजेक्ट के बाद पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के इशारे पर सभी जिलाध्यक्षों से बूथ स्तर तक के पदाधिकारियों का पूरा ब्योरा मांगा गया है। यह ब्योरा हर हाल में जनवरी के दूसरे स’ाह तक जिला और नगर अध्यक्षों को प्रदेश नेतृत्व की वेबसाइट पर अपलोड करना है। केंद्रीय नेतृत्व के इशारे पर प्रदेश के संगठन प्रभारी सतीश अजमानी से यूपी के सभी जिला और नगर अध्यक्षों से उनकी कार्यकारिणी के पदाधिकारियों के साथ ब्लॉक और वॉर्ड स्तर की कमिटी और बूथ स्तर तक की कमिटी की जानकारी मांगी है। जिला और नगर अध्यक्षों को भेजे गए पत्र के साथ तीन प्रोफार्मा भी भेजे गए हैं, इनमें एक प्रोफार्मा जिला व नगर कार्यकारिणी का, दूसरा वॉर्ड या ब्लॉक कमिटी का और तीसरा बूथ स्तर की कमिटी का है। तीनों प्रोफार्मा में कमिटी के पदाधिकारियों के पद सहित नाम और मोबाइल नंबर भर कर उन्हें पीसीसी को ईमेल पर भेजना है। 
वोटर आईडी नंबर भी जुटा रही पार्टी 
 कांग्रेस नेतृत्व इससे पहले जिला नगर अध्यक्षों के जरिए हर बूथ पर सक्रिय 1० कांग्रेस कार्यकर्ताओं की जानकारी जुटा रहा है। पिछले महीने यानि 2०18 के दिसंबर महीने में अध्यक्षों को टास्क दिया गया था कि बूथ स्तर के कम-से-कम 1० पदाधिकारियों की जानकारी उनकी वोटर आईडी नंबर सहित पीसीसी को मुहैया करवाई जाए। पार्टी नेताओं की मानें तो 15 जनवरी तक यह ब्योरा भी पीसीसी के पास एकत्रित हो जाएगी। वोटर आईडी नंबर और मोबाइल फोन के जरिए कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व सीधे बूथ स्तर के कार्यकताã के संपर्क में होगा। प्रदेश कांग्रेस महासचिव और लखनऊ प्रभारी विनोद मिश्रा के मुताबिक अगले महीने से राहुल गांधी की यूपी में लगातार रैलियां होने जा रही हैं। 




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