धर्म-जाति के बीच बंटा सियासी गणित
Impact Of Caste System On Indian Politics In Hindi
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India दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यह हम सब के लिए गौरव की बात है। यहां विभिन्न धर्म-जाति और सम्प्रदाय के लोग रहते हैं। विभिन्न धर्म-जाति और सम्प्रदाय के लोगों के रहने के बाद भी देश में आपसी सौहार्द हमेशा बना रहता है। यही कारण है कि दुनिया के इस सबसे लोकतंत्र की एक अलग पहचान है। इस पहचान के बीच अगर, इन्हीं धर्म-जाति और सम्प्रदाय को वोट बैंक के रूप में देख्ों तो चुनावों में इसका अच्छा-खासा प्रभाव देखने को मिलता है। लिहाजा, यहां इन सभी वर्गों को ध्यान में रखकर ही राजनीतिक पार्टियां अपना सियासी दांव तय करते हैं। चाहे विधानसभा चुनाव हों या फिर लोकसभा के चुनाव। हर बार जातीय समीकरणों का पूरा प्रभाव देखने को मिलता है। 2०19 में सरकार बनाने के लिए जंग शुरू हो गई है। चुनाव में तमाम मुद्दे हैं। एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला शुरू हो चुका है, लेकिन इन सबके बीच अगर, कोई चीज सबसे अधिक इस चुनाव को प्रभावित करने वाली है तो वह है जातीय समीकरणों का खाका। ऐसा पहली बार नहीं होने जा रहा है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में हर बार इसकी बानगी देखने को मिलती रही है।
India दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यह हम सब के लिए गौरव की बात है। यहां विभिन्न धर्म-जाति और सम्प्रदाय के लोग रहते हैं। विभिन्न धर्म-जाति और सम्प्रदाय के लोगों के रहने के बाद भी देश में आपसी सौहार्द हमेशा बना रहता है। यही कारण है कि दुनिया के इस सबसे लोकतंत्र की एक अलग पहचान है। इस पहचान के बीच अगर, इन्हीं धर्म-जाति और सम्प्रदाय को वोट बैंक के रूप में देख्ों तो चुनावों में इसका अच्छा-खासा प्रभाव देखने को मिलता है। लिहाजा, यहां इन सभी वर्गों को ध्यान में रखकर ही राजनीतिक पार्टियां अपना सियासी दांव तय करते हैं। चाहे विधानसभा चुनाव हों या फिर लोकसभा के चुनाव। हर बार जातीय समीकरणों का पूरा प्रभाव देखने को मिलता है। 2०19 में सरकार बनाने के लिए जंग शुरू हो गई है। चुनाव में तमाम मुद्दे हैं। एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला शुरू हो चुका है, लेकिन इन सबके बीच अगर, कोई चीज सबसे अधिक इस चुनाव को प्रभावित करने वाली है तो वह है जातीय समीकरणों का खाका। ऐसा पहली बार नहीं होने जा रहा है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में हर बार इसकी बानगी देखने को मिलती रही है।
अभी हाल ही में अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट("Massachusetts Institute") का भारतीय चुनाव आयोग की रिपोर्टो के आधार पर एक शोध सामने आया है। जिसमें साफ पता चलता है धर्म और जाति पर आधारित वोट बैंक हर बार काम करता है और आगे भी करता रहेगा। इस शोध के आकड़ों को पार्टी विश्ोष व उससे समान विचारधारा रखने वाली पार्टियों को अलग-अलग समझना ज्यादा आसान होगा।
जनसंघ, भाजपा व अन्य दक्षिणपंथी दल
जनसंघ, भाजपा व अन्य दक्षिणपंथी दलों के प्रति 1962 से 2०14 तक मुस्लिम वोट मामूली रूप से बढ़ा। वहीं, दलित वोट पांच गुना और ब्राह्मण वोट ढाई गुना तक बढ़ा। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वर्ष 2०14 में बीजेपी को केंद्र की सत्ता में लाने में दलित-ओबीसी वोट बैंक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिस प्रकार बीजेपी की तरफ ब्राह्मण वोट बैंक बढ़ता रहा है, उसी प्रकार अन्य पार्टियों से यह वोट छिटकता रहा है। वाम व मध्य वाम व सहयोगी दलों से यह वोट बैंक सबसे अधिक दूर हुआ।
मुस्लिम वोट बैंक
- 1962 के लोकसभा चुनाव में जनसंघ, भाजपा व अन्य दक्षिणपंथी दलों के पाले में मुस्लिम वोट बैंक का औसत महज 7 फीसदी था, 1967 में 2 फीसदी बढ़कर 9 फीसदी तक पहुंच गया, लेकिन 1971 में यह वोट बैंक घटकर महज 1.5 फीसदी ही रह गया था। वहीं, आगे चलकर 1996 की स्थिति देख्ों तो उक्त पार्टियों के पाले में मुस्लिम वोट बैंक में इजाफा हुआ और 1.5 फीसदी से बढ़कर यह औसत 9.5 फीसदी तक पहुंच गया। 1998 में मुस्लिम वोट बैंक में और थोड़ा इजाफा हुआ, जो बढ़कर 1०.5 फीसदी तक पहुंच गया। 1999 में 1० फीसदी, जबकि 2००4 व 2००9 में उक्त पार्टियों के पाले में 13-13 फीसदी मुस्लिम वोट आया, जबकि पिछली लोकसभा यानि 2०14 के चुनावों में इन पार्टियों के पाले में 1० फीसदी मुस्लिम वोट बैंक आया।
एससी/एसटी
- जनसंघ, भाजपा व अन्य दक्षिणपंक्षी दलों के खाते में एससी-एसटी वोट बैंक की बात की जाए तो इसमें 1962 से लेकर 2०14 तक गजब की बढ़ोतरी देखने को मिली है। 1962 में इस वोट बैंक का औसत महज 6 फीसदी था, जो 2०14 तक बढ़कर 31 फीसदी तक पहुंच गया। 2०14 में बीजेपी को सत्ता दिलाने में इस वोट बैंक की महत्वपूर्ण भूमिका रही। सिलसिलेवार इस वोट बैंक की स्थिति देख्ों तो पार्टी के खाते में आने वाले इस वोट बैंक में 1962 से लेकर 1967 तक 6 फीसदी का इजाफा हुआ और यह वोट बैंक 12 फीसदी पर पहुंच गया। 1971 में इसमें और इजाफा हुआ और यह वोट बैंक बढ़कर 12.5 फीसदी तक पहुंच गया। 1996 में यह वोट बैंक बढ़कर 18 फीसदी तक पहुंच गया। 1998 में 2०.2 फीसदी रहा। 1999 में 2० फीसदी, 2००4 में 18.5 फीसदी, 2००9 में 17.5 फीसदी व 2०14 में 31 फीसदी तक यह वोट बैंक पहुंचा।
ओबीसी वोट बैंक
- जनसंघ, भाजपा व अन्य दक्षिणपंथी दलों के साथ ओबीसी वोट बैंक भी तेजी से जुड़ता रहा है और इसमें हर बार के चुनावों में इजाफा देखने को मिलता रहा है। 1962 में इस पार्टी के खाते में 12 फीसदी ओबीसी वोट था, जो 2०14 तक बढ़कर 42 फीसदी तक पहुंच गया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बीजेपी को मजबूती देने में ओबीसी वोट बैंक ने भी अच्छी-खासी भूमिका निभाई है। पार्टी के पाले में 1962 में 12 फीसदी ओबीसी वोट बैंक था तो 1967 में यह बढ़कर 16 फीसदी हो गया था। वहीं, 1971 तक बढ़ते-बढ़ते यह वोट बैंक 24.5 फीसदी तक पहुंच गया। 1996 तक यह वोट बैंक 27 फीसदी तक पहुंच गया, हालांकि 1998 में बीजेपी के पाले में इस वोट बैंक में काफी कमी आई और इसमें 1० फीसदी की गिरावट आई, जो 17 फीसदी पर जाकर ठहरा। वहीं, 1999 में खोया हुआ 1० फीसदी वोट बैंक वापस आकर फिर से 27 फीसदी पर पहुंच गया। 2००4 में इसमें और बढ़ोतरी हुई, जो 31 फीसदी पर पहुंच गया। 2००9 में बीजेपी के खाते में 29 फीसदी ओबीसी वोट बैंक में बढ़ोतरी हुई, जबकि सबसे अधिक 42 फीसदी की बढ़ोतरी 2०14 में हुई।
अन्य सवर्ण
- बीजेपी, जनसंघ आदि के पाले में अन्य सवर्ण वर्ग का वोट प्रतिशत भी बढ़ता रहा है। 1992 में अन्य सवर्ण वर्ग का वोट प्रतिशत 36 फीसदी था, जबकि 1967 में इसमें थोड़ी गिरावट रही और यह प्रतिशत 29.5 फीसदी था, जबकि, 1971 में यह प्रतिशत फिर 36 फीसदी तक पहुंच गया था। 1996 में इस औसत में वृद्धि हुई, जो बढ़ोतरी के साथ 38.5 फीसदी पर पहुंचा। 1998 में इस वर्ग का वोट प्रतिशत 42 फीसदी था। 1999 में 39 फीसदी, 2००4 में 48.5 फीसदी, 2००9 में 38 फीसदी व 2०14 में 49.5 फीसदी रहा।
ब्राह्मण वोट बैंक
- बीजेपी, जनसंघ व अन्य दक्षिणपंथी पार्टियों के खाते में आने वाले ब्राह्मण वोट बैंक के प्रतिशत में भी अब तक ढाई गुना बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 1962 में वोट प्रतिशत 25 फीसदी था, जबकि 1967 में यह वोट प्रतिशत 31.5 फीसदी पर पहुंच गया। 1971 में इस वर्ग का वोट प्रतिशत 4०.3 फीसदी, 1996 में 36.5 फीसदी, 1998 में 62 फीसदी, 1999 में 51.5 फीसदी, 2००4 में 51 फीसदी, 2००9 में 48 फीसदी व 2०14 में ब्राह्मण वोट बैंक का प्रतिशत 61 फीसदी रहा।
कांग्रेस व अन्य सहयोगी या मध्यवर्गी दल
बीजेपी, जनसंघ व अन्य दक्षिणपंथी पार्टियों के वोट बैंक के प्रतिशत में जहां इजाफा हुआ, वहीं कांग्रेस का वोट का प्रतिशत नीचे खिसकता चला गया, लेकिन कांग्रेस व उसके जैसी विचारधारा वाली पार्टियों के साथ मुस्लिम वोट बैंक पहले की तरह ही बना रहा। भारतीय लोकतंत्र के पिछले लगभग 52 वर्षों में लगभग सभी वर्गों के मतदाता उसके वोट बैंक से घटते चले गए। सबसे अधिक ब्रहमण मतदाता अलग हुए। यह गिरावट ढाई गुना से अधिक रही। इन दौरान पार्टी के साथ जुड़े ओबीसी और मुस्लिम मतदाता सबसे कम घटे। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि आज भी ओबीसी और मुस्लिम मतदाताओं का विश्वास कांग्रेस व इसकी जैसी समान विचारधारा रखने वाली पार्टियों के प्रति बना हुआ है।
मुस्लिम मतदाता
- शोध के मुताबिक 1962 में कांग्रेस व अन्य सहयोगी या मध्यमार्गी दलों की तरफ रहने वाले मुस्लिम मतदाताओं का वोट प्रतिशत 54 फीसदी था, जबकि 1967 में इनका वोट प्रतिशत 47 फीसदी, 1971 में 63 फीसदी, 1977 में 49 फीसदी,1996 में 52 फीसदी, 1998 में 41 फीसदी, 1999 में 51 फीसदी, 2००4 में 48 फीसदी, 2००9 में 45 फीसदी व 2०14 में मुस्लिम मतदाताओं का वोट प्रतिशत 45.5 फीसदी रहा।
एससी-एसटी मतदाता
- एससी-एसटी मतदाता निश्चित ही कांग्रेस व इससे समान विचारधारा रखने वाली पार्टियों से छिटके। 1962 में जहां एससी-एसटी मतदाताओं का वोट प्रतिशत 53 फीसदी था, वहीं 1967 में एक फीसदी घटकर 52 फीसदी रह गया। वहीं, 1971 में एक बार फिर बढ़कर 55 फीसदी तक पहुंच गया, लेकिन उसके बाद लगातार इसमें गिरावट आती रही। 1977 में इनका वोट प्रतिशत 42 फीसदी, 1996 में 45 फीसदी, 1998 में 38 फीसदी, 1999 में 47 फीसदी, 2००4 में 39 फीसदी, 2००9 में 43 फीसदी और 2०14 में वोट प्रतिशत 38 फीसदी रहा।
ओबीसी वोट प्रतिशत
-ओबीसी वर्ग के वोट प्रतिशत में थोड़ा-बहुत अंतर देखने को अवश्य मिला। 1962 में ओबीसी वोट बैंक का प्रतिशत जहां 43 फीसदी था, वहीं 1967 में 46 प्रतिशत रहा, जबकि 1971 में यह औसत 42 फीसदी था। 1977 में 41 फीसदी, 1996 में 44 फीसदी, 1998 में 3० फीसदी, 1999 में 41 फीसदी, 2००4 में 41 फीसदी, 2००9 में 44 व वर्ष-2०14 के चुनाव में ओबीसी का वोट प्रतिशत 35 फीसदी रहा।
अन्य सवर्ण वर्ग
- कांग्रेस व अन्य सहयोगी या मध्यमार्गी दल का अन्य सवर्ण वोट प्रतिशत भी लगातार असमान रहा। पार्टियों के लिए इस वर्ग का वोट प्रतिशत जहां 1962 में 41 फीसदी था, वहीं 1967 में घटकर यह 33 फीसदी रह गया था, लेकिन 1971 में इसमें काफी इजाफा हुआ और इस वर्ग का वोट प्रतिशत बढ़कर 43 फीसदी पर पहुंच गया। वहीं, 1977 में इस वर्ग को वोट प्रतिशत एक फिर घटकर 27 फीसदी पर पहुंच गया। 1996 में इस वर्ग का वोट प्रतिशत बढ़कर फिर 32 फीसदी पर पहुंच गया। 1998 में 33 फीसदी, 1999 में 38 फीसदी, 2००4 में 4० फीसदी, 2००9 में 42 फीसदी व 2०14 में इस वर्ग का वोट प्रतिशत घटकर 28 फीसदी पर पहुंच गया।
ब्राह्मण वोट
- अगर, कांग्रेस और उसके समान विचारधारा रखने वाली पार्टियों से सबसे अधिक वोट वर्ग छिटकने की बात की जाए तो वह बाह्मण वोट बैंक। पिछले 52 वर्षों में यह वोट बैंक इन पार्टियों से तेजी से अलग हुआ है। 1962 में ब्राह्मण वोट बैंक का प्रतिशत 5० फीसदी था, जो 2०14 आते-आते महज 19 फीसदी पर सिमट कर रह गया। 1962 से सिलसिलेवार होने वाले चुनावों की बात करें तो 1967 में यह वोट प्रतिशत घटकर 41 फीसदी पर रह गया था। 1971 में इस वोट प्रतिशत में एक फीसदी की बढ़ोतरी हुई और 42 फीसदी पर पहुंच गया। 1977 में इस वोट बैंक में काफी गिरावट देखने को मिली और जो 35 फीसदी पर आकर सिमट गया। इसके बाद भी यह वोट प्रतिशत घटता-बढ़ता रहा, लेकिन कमी ज्यादा और बढ़ोतरी कम देखने को मिली। 1996 में 33 फीसदी, 1998 में 28 फीसदी, 1999 में 33 फीसदी, 2००4 में 35 फीसदी, 2००9 में 35 फीसदी और सबसे कम 19 फीसदी वोट प्रतिशत पिछले 2०14 के चुनावों के दौरान देखने को मिला।
वाम, मध्य वाम व सहयोगी दल
-देश में वाम व इससे संबंधित सहयोगी दलों की स्थिति भी ठीक नहीं है। देश में इसका वोट बैंक हमेशा ही घटता रहा है। महज, मुस्लिम वोट बैंक ऐसा है, जो इसके साथ बना हुआ है, लेकिन उसमें बहुत अधिक इजाफा देखने को नहीं मिला है। ओबीसी मतदाता तो इन दलों से सबसे अधिक दूर हुआ। उन्होंने लगभग-लगभग भाजपा का दामन थाम लिया।
मुस्लिम मतदाता
-वाम, मध्य वाम व सहयोगी दलों के पास 1962 में मुस्लिम वोट बैंक का प्रतिशत 24 फीसदी था, वहीं 1967 में यह एक प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ 25 फीसदी पर पहुंच गया, जबकि उसके अगले चुनाव यानि 1971 में यह वोट प्रतिशत घटकर 18 फीसदी पर आ गया। 1977 में स्थिति और भी खराब रही। तब हुए चुनावों में मुस्लिम वोट बैंक का प्रतिशत घटकर 7 फीसदी पर आ गया। 1996 में यह फिर बढ़ गया, जो 25 फीसदी पर पहुंच गया। 1998 में इस वर्ग को वोट प्रतिशत बढ़कर 47 फीसदी पर पहुंच गया। 1999 में 28 फीसदी, 2००4 में 25 फीसदी, 2००9 में 27 फीसदी और 2०14 में इस वोट बैंक का प्रतिशत 23 फीसदी रहा।
एससी-एसटी
- वाम, मध्य वाम व अन्य सहयोगी दलों के पास 1962 में एससी-एसटी वोट बैंक का प्रतिशत जहां 22 फीसदी था, वहीं, 1967 में भी यह वोट प्रतिशत 22 फीसदी ही रहा, जबकि 1971 में घटकर यह वोट प्रतिशत 19 फीसदी पर पहुंच गया। 1977 में इसमें और गिरावट आई, जो गिरकर 1० फीसदी पर पहुंच गया। 1996 में इस वर्ग का वोट प्रतिशत 21 फीसदी रहा, जबकि 1998 में 25 फीसदी, 1999 में 17 फीसदी, 2००4 में 26 फीसदी, 2००9 में 23 फीसदी और 2०14 में इस वोट बैंक का प्रतिशत 18 फीसदी रहा।
ओबीसी
-वाम, मध्य वाम व सहयोगी दलों के खाते से ओबीसी बैंक भी धीरे-धीरे खिसकता चला गया। 1962 के आकड़े देख्ों तो इस वोट बैंक का प्रतिशत 31 फीसदी था, जबकि 1967 में घटकर इस वर्ग के वोट बैंक का प्रतिशत घटकर 23 फीसदी पर आ गया। 1971 में यह और घटा, जो 15 फीसदी पर आकर ठहर गया। 1977 में तो स्थिति और खराब हो गई, इस वोट बैंक का प्रतिशत घटकर 8 फीसदी पर आ गया। 1996 में यह बढ़ा, जो बढ़कर 19 फीसदी पर पहुंचा। 1998 में यह बढ़कर 24 फीसदी पर आ गया, जबकि 1999 में इस वोट बैंक का प्रतिशत घटकर एक बार फिर 19 फीसदी पर पहुंच गया। 2००4 में इस वोट बैंक का प्रतिशत 2०.5 फीसदी रहा। 2००9 में भी इस वोट बैंक का प्रतिशत 18 फीसदी ही रहा, जबकि 2०14 के चुनावों में घटकर इस वोट बैंक का प्रतिशत 15 फीसदी पर आकर सिमट गया।
अन्य सवर्ण
-1962 में इस वर्ग के वोट बैंक का प्रतिशत 15 फीसदी था, जबकि 1967 में बढ़कर 18 फीसदी हो गया। 1971 में इस वर्ग के वोट बैंक का प्रतिशत घटा, जो 14 फीसदी पर जा पहुंचा। 1977 में स्थिति बेहद खराब रही और वोट प्रतिशत घटकर 6 फीसदी पर आकर सिमट गया। 1996 में यह फिर बढ़ा और वोट प्रतिशत 23 फीसदी पर पहुंच गया। 1998 में 21 फीसदी, 1999 में 1० फीसदी, 2००4 में 15 फीसदी, 2००9 में 15 फीसदी और 2००4 में यह वोट बैंक घटकर 11 फीसदी पर आकर सिमट गया।
ब्राह्मण
- वाम, मध्य वाम व अन्य सहयोगी दलों से ब्राह्मण वोट बैंक भी धीरे-धीरे कम होता गया। 1962 में इस वोट बैंक का प्रतिशत 16 फीसदी था, जबकि 1967 में इसमें मामूली इजाफा हुआ और यह बढ़कर 16.5 फीसदी पर पहुंच गया। 1971 में इस वोट बैंक का प्रतिशत काफी घटा, जो घटकर 9 फीसदी पर पहुंच गया। 1977 में यह थोड़ा-सा बढ़ा और 12 फीसदी पर पहुंच गया। 1996 में 23 फीसदी, 1998 में 6 फीसदी, 1999 में 13 फीसदी, 2००4 में 1० फीसदी, 2००9 में 14 फीसदी व 2०14 में इसमें दो फीसदी की कमी आई और 12 फीसदी पर आकर सिमट गया। 2०19 के लोकसभा चुनावों में क्या स्थिति रहेगी, इसको लेकर उत्सुकता निश्चित ही बनी रहेगी।
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