विरोध नहीं, विमर्श की जरूरत

citizen amendment act 2019 in hindi
  नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। राजधानी दिल्ली के अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में जिस तरह से लोग उक्त कानून के विरोध में सड़कों पर उतर रहे हैं, वह अत्यंत चिंतनीय विषय है, क्योंकि जैसे-जैसे विरोध प्रदर्शन बढ़ रहे हैं, उसके साथ ही आम-जनजीवन तो प्रभावित हो ही रहा है, बल्कि सरकारी संपत्ति को भी भारी नुकसान पहुंचाया जा रहा है, जिसको किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इसको लेकर दोनों तरफ से जिम्मेदारी तय होनी चाहिए, क्योंकि citizen amendment act 2019  को लेकर जिस तरह भ्रम लोगों के बीच है, उसी की वजह से आक्रोश आए दिन बढ़ता जा रहा है।

कर्नाटक में एंटी सीएए प्रोटेस्ट करते लोग 
हालांकि सरकार बार-बार तर्क दे रही है कि उक्त कानून से देश के किसी भी नागरिक से कोई भी लेना-देना नहीं है। चाहे व हिंदू हो या फिर मुस्लिम। लिहाजा, इस विरोध का कोई मतलब नहीं बनता है, लेकिन विरोधी इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। उनका विरोध इस बात को लेकर है कि जब पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता दी जा सकती है तो मुस्लिमों को क्यों नहीं दी जा सकती है, लेकिन विरोधियों का तर्क इसीलिए बहुत जायज नहीं लगता है कि हमारे पड़ोसी देश मुस्लिम बाहुल्य हैं, इसीलिए वहां मुस्लिमों पर किसी भी तरह का अत्याचार होने की संभावना नहीं है, क्योंकि मुस्लिम वहां पर अल्पसंख्यक नहीं हैं। दूसरा, विरोधियों द्बारा बार-बार जो यह तर्क दिया जा रहा है कि इसका असर देश में रहने वाले मुस्लिमों पर भी पड़ेगा तो यह बिल्कुल भी सही नहीं है। लिहाजा, जहां विरोधियों को इस कानून के बारे में बारीकी से जानकारी हासिल करनी चाहिए, वहीं सरकार को भी चाहिए के लोगों के बीच कानून को लेकर जो भ्रम की स्थिति है, उसे स्पष्ट करे, क्योंकि जिस तरह के विरोध-प्रदर्शन देश के अंदर हो रहे हैं और हिंदू और मुस्लिमों के बीच खाई को और गहरा किया जा रहा है, उससे किसी का भला होने वाला नहीं है, बल्कि इससे देश का ही नुकसान हो रहा है। 
 निश्चित ही, इस माहौल में जिस तरह की अनिश्चितता पूरे देश में दिखाई दे रही है, उससे लोगों में डर और असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है। यहां तक कि देश के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को भी यह पड़ रहा है कि इस मामले में न्यायपालिका तभी कुछ कर सकती है, जब देश में हिंसा, आगजनी और सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियां समा’ न हो जाएं। मुख्य न्यायाधीश की इस बात को आसान भाषा में समझ लेना चाहिए। दूसरी तरफ यह भी समझने की जरूरत है कि नागरिकता कानून संसद से पारित हुआ है, जो देश की एक प्रतिनिधि संस्था है। 
 जाहिर सी बात है कि citizen amendment act 2019  के पीछे सरकार की अपनी सोच है, जिससे सहमत और असहमत होना देश के हर नागरिक का मूलभूत अधिकार है, लेकिन उसके विरोध करने का जो तरीका अपनाया जा रहा है, वह किसी भी रूप में जायज नहीं है। भारतीय लोकतंत्र में सरकार के किसी भी फैसले पर असहमति जताने के बहुत से तरीके हैं। शांतिपूर्ण प्रदर्शन तो विरोध का उत्तम मार्ग तो है ही, लेकिन इसे अदालत में भी चुनौती दी जा सकती है। पहले भी ऐसी बहुत सारी घटनाएं हुईं हैं, जिनमें अदालत के निर्देश पर बीच का रास्ता निकाला जाता रहा है और कानून में संशोधन होते रहे हैं तो अब विरोधियों को विरोध-प्रदर्शन के बजाय कोर्ट भरोसा नहीं करना चाहिए ? इस कानून के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शनों के चलते कई लोगों की मौतें हो चुकी हैं और करोड़ों रूप्ए की सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा है। आगे भी इसी तरह से विरोध होता रहा तो निश्चित ही मृतकों की संख्या भी बढ़ेगी और सरकारी संपत्ति को और भी नुकसान पहुंचेगा। 
 लिहाजा, इस मामले में शांतिपूर्वक तरीके से सोचने की जरूरत है, कानून के संबंध में तथ्यों को जानने की जरूरत है और अगर, कहीं भी दिक्कत वाली बात है तो उसे सरकार और कोर्ट के समक्ष रखना चाहिए। सरकार अगर कुछ तथ्य स्पष्ट भी कर रही है तो विरोध-प्रदर्शनों के शोरगुल में वह सुनाई नहीं दे रहे हैं, लिहाजा, विरोधियों को सरकार द्बारा बताए जा रहे तथ्यों से भी स्पष्ट हो जाना चाहिए। क्योंकि हिंसक प्रदर्शनों से नहीं, बल्कि विचार-विमर्श से ही बेहतर रास्ता निकल सकता है। 




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