उत्तर प्रदेश में नहीं चल पाएंगी 1350 आरा मिलें
एनजीटी ने उत्तर-प्रदेश सरकार द्बारा इन उद्योगों के लिए प्रस्तावित लाइसेंस देने के फैसले को रद्द करने का आदेश दिया है
By Bishan Papola
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने उत्तर-प्रदेश सरकार द्बारा 1 मार्च 2019 के बाद लकड़ी आधारित व आरा मिलों की स्थापना के लिए जारी किए जाने वाले प्रस्तावित 1350 लाइसेंसों को रद्द करने का आदेश दिया है। एनजीटी ने यह आदेश उत्तर-प्रदेश में आरा मिलों की स्थापना के लिए लकड़ी के अवैध प्रयोग के संबंध में डाली गई याचिका के आधार पर दिया है। न्यायाधीश आदर्श कुमार गोयल की पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि लकड़ी के गलत आकलन के आधार पर नए उद्योग खोलने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। ऐसा होने पर उद्योग संचालकों द्बारा अवैध साधनों का सहारा लिया जा सकता है। ऐसी स्थिति को पर्यावरण कानून के एहतियाती सिद्धांत के अंतर्गत नहीं माना जा सकता है। इसीलिए राज्य द्बारा जिलावार तय कर सभी लकड़ी आधारित उद्योगों में प्रजाति वार खपत, डेटा व उनकी उपयोग करने की क्षमता को सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। ऐसा नहीं होने तक मौजूदा स्थिति के साथ ही आगे बढ़ा जाए।
राज्य सरकार द्बारा 1350 नई लकड़ी आधारित इकाइयों के लिए प्रस्तावित लाइसेंस देने के इस प्रस्ताव को संविट फाउंडेशन ने एनजीटी चुनौती दी थी। याचिका में राज्य सरकार के इस कदम को राज्य में लकड़ी की उपलब्धता के आधार पर अव्यवहारिक माना गया था। इस याचिका के आधार पर एनजीटी ने उत्तर प्रदेश सरकार से राज्य में लकड़ी की उपलब्धता के संबंध में विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी। और लकड़ी उद्योगों के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था।
एनजीटी के नोटिस के बाद राज्य सरकार ने एनजीटी में दिए हलफनामे में बताया था कि राज्य में 2017 में लकड़ी आधारित उद्योगों की संख्या 6607 थी। 2018 में इन उद्योगों की संख्या में 29 की बढ़ोतरी हुई, जो बढ़कर 6636 हो गईं, वहीं 2019 में यह संख्या बढ़कर 6686 तक ही पहुंच पाई। इन उद्योगों में खपत के लिए राज्य में पर्याप्त मात्रा में लकड़ी है। इसीलिए लकड़ी की अवैध कटाई की संभावना को छोड़कर पोपलर और नीलगिरी के पेड़ों का उपयोग ही किया जा रहा है, जो इस उद्योग के लिए छूट की श्रेणी में आती हैं। इसीलिए इसमें किसी भी तरह के पर्यावरण संबंधी नियमों के उल्लंघन की स्थिति नहीं बनती है।
उत्तर प्रदेश में प्रतिवर्ष टिम्बर की कुल संभावित उपलब्धता 80.30 मिलियन घन मीटर है, जिसमें गर्वनमेंट फॉरेस्ट से 2.56 क्यूबिक मीटर और ट्रीज आउटसाइड फारेस्ट से उपलब्धता 77.74 लाख क्यूबिक मीटर शामिल है। 80.30 लाख क्यूबिक मीटर में से 71.8 लाख क्यूबिक मीटर 22 विभिन्न प्रजातियों और 8.50 लाख अन्य प्रजातियों से उपलब्ध होता है। 22 प्रजातियों में से, 10 प्रजातियां ऐसी हैं, जो 7 जनवरी 2020 की उत्तर प्रदेश सरकार की अधिसूचना के अनुसार व्यक्तिगत और गैर मान्यता प्राप्त होल्डिंग से प्रतिबंधित हैं, जो 20.75 लाख घन मीटर का योगदान करती हैं। बाकी प्रजातियों में से, प्रमुख योगदान नीलगिरी (28 लाख घन मीटर) और अन्य प्रसिद्ध प्रजातियों (15 लाख घन मीटर) हैं, जो कुल मिलाकर 43 लाख घन मीटर होता है। सरकार ने एफएसआई की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया है कि 77 लाख क्यूबिक मीटर औद्योगिक लकड़ी संभावित रूप से यूपी राज्य में पेड़ों के बाहर के जंगलों से उपलब्ध है, जिसका मतलब है कि जंगलों के बाहर पेड़ों की सूची के आधार पर सालाना 77 लाख क्यूबिक मीटर उपलब्ध हो सकते हैं। सरकार ने दावा किया है कि याचिकाकर्ता संस्था ने तथ्यों को आधार नहीं बनाया, जिसके तहत सरकार ने बताया है कि राष्ट्रीय स्तर पर मानक त्रुटि प्रतिशत 5 प्रतिशत के आसपास है, राज्य स्तर पर 15 प्रतिशत और जिला स्तर पर 25 से 30 प्रतिशत है। राज्य ने अपनी रिपोर्ट में इस उद्योग को निवेश और रोजगार देने वाला भी बताया है, जिसमें कहा गया है कि 3 हजार करोड़ की नई लकड़ी आधारित उद्योगों में 80 हजार लोगों के लिए रोजगार उपलब्ध होगा। खासकर, ग्रामीण क्षेत्रों में। जिसके तहत सलाना 1200 करोड़ रूपए का कारोबार होगा। 1215 लकड़ी आधारित उद्योगों में से 632 लाइसेंस धारकों ने अपनी इकाइयां स्थापित कर ली हैं, और अन्य संचालित होने के लिए तैयार हैं। इस तरह की इकाइयां बड़े निवेश और बैंकों से कर्ज लेकर स्थापित की जाती हैं। सरकार ने कहा है कि 632 के अलावा कई अन्य अंतरिम लाइसेंस धारक भी स्थापना के अग्रिम चरण में हैं, इसीलिए इन उद्योगों का संचालन बंद करना कठिन होगा।
याचिकाकर्ता संस्था के अनुसार सरकार द्बारा कोर्ट में पेश किए गए डाटा का कोई आधार नहीं है और बड़े स्तर पर आरा मिलों की स्थापना के तहत अवैध तरीके से पेड़ों का कटान किया गया है और बिना तय मानकों के ही लाइसेंस वितरित किए जाते हैं, जो पर्यावरणीय नियमों के खिलाफ है। एनजीटी ने भी प्रदेश सरकार द्बारा पेश किए गए तथ्यों का व्यवहारिक नहीं माना और कहा कि लकड़ी आधारित उद्योगों और आरा मिलों को बनाए रखने के लिए लकड़ी और कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित किए बगैर ऐसे उद्योगों के संचालित की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
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