विधेयक को पास कराने की चुनौती | nagrik sanshodhan bill 2019 in hindia


  नागरिकता संशोधन बिल 2०19 
  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैबिनेट ने बुधवार यानि 4 दिसंबर 2०19 को नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी है। अब यह लोकसभा और राज्यसभा दोनों में पेश किया जाएगा। पहले लोकसभा में पेश किया जाएगा, उसके बाद राज्यसभा में विधेयक को परीक्षा से गुजरना पड़ेगा। पूर्वोत्तर राज्यों में विधेयक का जिस रूप में विरोध किया जा रहा है, उस परिस्थिति में विधेयक की असली परीक्षा भी राज्य सभा में ही होगी। लोकसभा में जैसे-तैसे मोदी सरकार इसे पास करा ले, लेकिन राज्यसभा में बहुमत के अभाव में यह पास हो जाए, इसको लेकर संशय से इनकार नहीं किया जा सकता है। 

नागरिक संशोधन  बिल २०१९  को लेकर  बैठक  करते पीएम  मोदी 
सरकार इस विधेयक को पास कराने के पीछे यह तर्क दे रही है कि उसकी कोशिश पड़ोसी इस्लामी देशों में धार्मिक आधार पर गैर मुस्लिम यानि अल्पसंख्यकों को इस विधेयक के पास होने के बाद राहत मिलेगी और उन्हें भारत की नागरिकता आसानी से मिल जाएगी। वहीं, विपक्षियों का तर्क है कि सरकार ऐसा कर धर्म के आधार पर भेदभाव कर रही है, जबकि भारत का वर्तमान कानून या संविधान भारत की नागरिकता चाहने वालों में धर्म के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं करता है और किसी को अलग छूट प्रदान नहीं करता है, क्योंकि हमारा देश धर्म व पंथनिरपेक्षता के आधार पर चल रहा है। लिहाजा, सरकार का यह कदम धर्म के आधार पर लोगों को बांटने का प्रयास है। 
 यहां बता दें कि यह विधेयक नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों को बदलने के लिए पेश किया गया है और इसमें बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म से ता“ुक रखने वालों के लिए भारत की नागरिकता हासिल करने के नियमों को आसान बनाया जाना है। पहले किसी ऐसे विदेशी नागरिक के लिए भारतीय नागरिकता पाने के लिए पिछले 11 सालों से यहां रहना अनिवार्य था, लेकिन विधेयक के जरिए इस अवधि को घटाकर 6 साल कर दिया गया है। इसीलिए जाहिर सी बात है कि जिन लोगों को भारत की नागरिकता पाने के लिए 11 साल तक का इंतजार करना पड़ता था, उन्हें अब काफी राहत मिलेगी। विधेयक के मुताबिक कोई बांग्लादेशी, पाकिस्तानी और अफगानिस्तानी मुस्लिम यहां होगा, तो उसे अवैध जाएगा और कोई गैर-मुस्लिम है तो उसे वैध माना जाएगा। 
 सरकार ने पिछली लोकसभा यानि 2०16 में भी इस विधेयक को लोकसभा में पेश किया था, लेकिन इस दौरान लोकसभा का कार्यकाल समा’ होने की वजह से यह निष्प्रभावी हो गया था। इसीलिए सरकार की कोशिश इस शीतकालीन सत्र में इस विधेयक को पास कराने की है। सरकार चाहेगी कि इस शीतकालीन सत्र में यह विधेयक हर हाल में लोकसभा के साथ राज्यसभा में भी पास हो जाए, क्योंकि इसके पीछे तकनीकी प्वांइट यह है कि विधेयक लोकसभा में पास हो गया और राज्यसभा में पास होने से पहले लोकसभा का शीतकालीन सत्र समा’ हो गया तो इसे फिर से दोनों सदनों में पास कराना होगा। लिहाजा, सरकार अब आने वाले दिनों में इसे सदन में पेश करेगी। लोकसभा में विरोध तो होगा, लेकिन विधेयक पास हो जाएगा, पर राज्यसभा में विधेयक को पास कराने के लिए सरकार को कड़ी परीक्षा से गुजरना होगा, क्योंकि यहां बहुमत का सवाल सरकार के आड़े आ सकता है। विरोध के सुर जिस तरह तेज हो रहे हैं, उससे सियासी चाल न बदले इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है। पर विरोध की बात करें तो पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक का कड़ा विरोध हो रहा है। असम के लोगों को इस बात का संदेह है कि नागरिकता संशोधन विधेयक में किया गया संशोधन एनआसी में पैदा हुई समस्याओं को सुलझाने के बजाय उलझाने वाला है। असम के लोगों का तर्क है कि उनकी हमेशा से लड़ाई घुसपैठियों को बाहर करने की रही है, चाहे वह हिंदू हो, मुस्लिम हो, ईसाई हो या फिर सिख आदि। क्योंकि घुसपैठिया सिर्फ घुसपैठिया होता है, उसे धर्म के आधार पर बांटने का कोई मतलब नहीं बनता है। 
 ऑल असम स्टूडेंट्स के नेतृत्व में 198० के दशक में व्यापक रूप से छात्रों के आंदोलन में भी यह मुद्दा उठाया गया था। इसके बाद 2००5 में जाकर केंद्र, राज्य और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के बीच कानूनी दस्तावेजी सहमति बनी और बाद में कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद एक व्यवस्थित रूप सामने आया, जिसमें 1971 के बाद भारत में आए सभी शरणार्थियों को वापस उनके देश भेजने पर सहमति बनाई गई थी, लेकिन मोदी कैबिनेट में पास विधेयक इससे अलग है, जिसे सियासी फायदा उठाने का माध्यम माना जा रहा है। बकायदा, बीजेपी समर्थित असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने इस मसले पर इस्तीफे की धमकी भी दी है। इस परिस्थिति में सरकार के लिए विधेयक को दोनों सदनों में पास कराना निश्चित ही एक चुनौती है। अगर, विधयेक पास हो भी जाता है तो उसके पूर्वोत्तर राज्यों में हो रहे विरोध को शांत कराना भी चुनौती साबित होगा। ऐसे में, जरूरी है कि सरकार अपने तर्क से विरोधियों को सहमत करे, जिससे विधयेक को पास कराना और भी आसान हो जाएगा।




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