इस तरह खत्म होगी चीनी उत्पादों की निर्भरता | In this way the dependence of Chinese products will end in hindi
लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर लगातार समस्या खड़ी कर रहे चीन के खिलाफ देश में काफी गुस्सा है।
देश के अंदर चीनी उत्पादों के बहिष्कार की बात जोर शोर से उठ रही है। कई जगहों पर
तो लोगों ने चीनी सामान को तोड़ दिया या फिर जला दिया। चीन जिस तरह भारतीय
संप्रभुता के लिए चुनौती बनता रहा है, ऐसे में उसे लाइन पर लाने के लिए आर्थिक
चुनौती का विकल्प बहुत बड़ा साबित हो सकता है। भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा
सबसे बड़ा आबादी वाला देश है। इसीलिए चीन के लिए भारत एक बहुत बड़ा बाजार है।
चाइना
में तैयार होने वाले करीब 3000 हजार उत्पाद भारतीय बाजार में खपत होते हैं। चीन से
भारत द्बारा आयात लगभग 5.25 लाख करोड़ यानि 70 अरब डॉलर सालाना है। अधिकांशत: आम
जरूरत की चीजें भी हम चाइना का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। चाहे वह हमारे बच्चों के
हाथों में दिखने वाले खिलौने हों, दिवाली या अन्य उत्सव के दौरान इस्तेमाल होने
वाली लाइटिनिंग हो या फिर सजावट का सामान ही क्यों न हो। सबकुछ चाइना में बनता है
और भारतीय बाजार इन उत्पादों से सजे रहते हैं। टेक्सटाइल, फैशन अपैरल, घड़ियां, ऑटो पार्टस, वस्त्र, स्टेशनरी, कागज, घरेलु वस्तुएं, फर्नीचर, हेल्थ प्रोडेक्ट, हैंड
बैग, लगेज इत्यादि भी हम चाइना का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। कुछ मिलाकर कहें कि
हमें चाइना के उत्पादों को इस्तेमाल करने की आदत सी हो गई है। हर बार हम सोचते हैं
कि चाइना के उत्पादों से स्वयं को अलग कर लेंगे, लेकिन आज भी हम उसी पायदान पर खड़े
हैं।
जब-जब चाइना भारत की
संप्रभुता को चुनौती देता है तो देश के लोगों में आक्रोश पैदा हो जाता है। वे
चाइना के उत्पादों के खिलाफ बहिष्कार के लिए एकजुट होने लगते हैं, लेकिन हम बाद
में देखते हैं कि हम चाइना के उत्पादों का इस्तेमाल उसी शिद्त कर रहे हैं, जैसे
वर्षों से करते आए हैं, लेकिन इससे काम चलने वाला नहीं है, बल्कि इसे हमें अभियान
के तौर पर लेना होगा। अक्सर, जब कोई चीज हमारे आदात में शुमार हो जाती है, तो उससे
दूरी बनाना आसान नहीं होता है। इसका दूसरा कारण यह भी है कि उसमें बहुत से चीजों
का उत्पादन हमारे देश के अंदर है ही नहीं, इसीलिए हमारी चाइना के उत्पादों के
प्रति निर्भरता न चाहने के बाद भी बनी रहती है। चीन 1962 से ही भारत के साथ
दोगलापन कर रहा है। इतिहास के पन्नों में ऐसे बहुत से उदाहरण है। चीन समझौते करता
है और खुद ही उसका उल्लंघन भी करता है। वह चाहता ही नहीं है कि सीमा का पुख्ता
निर्धारण हो। भारत ही नहीं, बल्कि उसके कई अन्य पड़ोसी देशों के साथ भी उसकी यही
नीति काम करती है। चोरी छुपे दूसरे की सीमा के अंदर घुसकर कुछ जमीन पर कब्जा कर
लेता है और फिर जितनी भूमि पर कब्जा किया होता है, वहां से थोड़ा बहुत पीछे हट जाता
है, इसमें भी वह कुछ-न-कुछ जमीन पर कब्जा कर ही लेता है।
पिछले 60 वर्षों के दौरान
भारत के साथ भी वह यही खेल करता आया है। इस बार स्थिति इसीलिए भी अधिक गंभीर है,
क्योंकि उसके दोगलेपन की वजह से हमारे 20 सैनिक शहीद हो गए और सीमा पर इस तरह
क्जैवलिटी पिछले 45 साल के बाद हुई है। यह देश के हर शख्स का खून खौलाने वाली घटना
है। सेना हर पल ऐसे दुश्मनों का सीमा पर बहादुरी से सामना करती है। ऐसे में, देश
का आम नागरिक भी चीन की आर्थिक रूप से कमर तोड़ने में योगदान दे सकता है। चीनी
उत्पादों का बहिष्कार कर ही यह योगदान दिया जा सकता है। केवल कुछ ही दिनों तक
गुस्सा दिखाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि हमें चीनी उत्पादों की निर्भरता को खत्म
करने के लिए दृढ़ निश्चयी बनना होगा। भले ही, हमें इस निश्चय को पूरा करने के लिए
वर्षों का इंतजार क्यों न करना पड़े। इसे एक आंदोलन की तरह लेना पड़ेगा। लोगों की
बीच जागरूकता पैदा करनी पड़ेगी। चाइना से सामान आयात ही न किया जाए।
अगर, आंखों के
सामने चीज ही नहीं दिखेगी तो खरीदने की लालसा भी खत्म हो जाएगी, लेकिन इसके साथ ही
घरेलू उत्पादों के इस्तेमाल पर भी हमें जोर देना होगा। कंपनियों के लिए जरूरी होगा
कि उन उत्पादों की उत्पादकता को बढ़ाया जाए, जो चाइना से आयात होती हैं। तभी हम
चाइना के उत्पादों के मकडज़ाल से बाहर निकल सकते हैं। इसका फायदा देश को आर्थिक रूप
से निर्भर बनाने में भी होगा। चाइना अपनी आर्थिक ताकत के बल पर ही उछलता है और पड़ोसियों
की जमीन पर नजर टिकाए रहता है। भारत अर्थव्यवस्था के आकार के मामले में चाइना से
पांच गुना छोटा है। चीन की अर्थव्यवस्था करीब 11.5 ट्रिलियन डॉलर है तो भारत की
अर्थव्यवस्था 3 ट्रिलियन डॉलर ही है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत के लोग
भी चीन की अर्थव्यवस्था को बड़ा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अगर, हम
स्वदेशी पर जोर देंगे तो देश आर्थिक रूप से भी मजबूत होगा और हमें भी उच्च
गुणवत्ता वाली चीजें मिलेंगी।
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