अब कोरोनिल का इस तरह दूर हो सकता है भ्रम | This way coronil confusion can be finished
बाबा रामदेव ने जिस उत्साह के साथ कोविड-19 की दवा "कोरोनिल
टैबलेट" और "श्वासारि वटी" नाम
की दवाईयां को लांच किया, वह उसी अंदाज में समाप्त भी हो गया। एक तरफ जहां भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड की ओर से लांच की गई दवा की जानकारी नहीं होने की बात कहकर इसे कोविड-19 की दवा के रूप में प्रचारित करने पर रोक लगा दी है, वहीं उत्तराखंड सरकार ने भी दवाओं के कोरोना के इलाज के रूप में लांच किए जाने पर सवाल खड़े कर दिए हैं। उधर, आईसीएमआर ने भी इस संबंध में कोई भी जानकारी होने से साफ इनकार किया है। ऐसे में, लगता है कि बाबा रामदेव की पंतजलि ने इसे महज अपने ही भरोसे पर लांच कर दिया। इसीलिए इसका सवालों के घेरे में आना बिल्कुल लाजिमी था।
बाबा
रामदेव जब अपनी टीम के साथ दवा को लांच कर रहे थे तो वह दावा कर रहे थे कि इस दवा
को 280 लोगों पर अजमाया गया और इसे पंतजलि के रिसर्च सेंटर में पूर्ण टेस्टिंग के
बाद ही लांच किया जा रहा है, क्योंकि इन दवाओं के उपचार से कोविड-19 मरीज ठीक हुए
और किसी भी मरीज की मौत नहीं हुई। इसीलिए यह 100 फीसदी सही परिणाम देने वाली दवा
है। सभी जानते भी हैं और मानते भी हैं कि आयुर्वेदिक दवाओं का अपना एक अलग महत्व
है। और हाल के वर्षों में आयुर्वेदिक दवाओं का उपयोग भी तेजी से बढ़ा है, हालांकि
इसे अभी अंग्रेजी दवाओं की बराबरी करने में वक्त लगेगा, क्योंकि अभी इसका सालाना
बाजार 15 से 20 हजार करोड़ के बीच ही है, जबकि अंग्रेजी दवाओं का बाजार डेढ़ लाख
करोड़ से अधिक का है। पंतजलि ग्रुप 1996 से बाजार में है और फिलहाल 350 से अधिक
प्रोडेक्ट बनाती है। इसमें अधिकांश प्रोडेक्ट आयुर्वेदिक दवाओं के रूप में ही
इस्तेमाल किए जाते हैं।
कोरोनाकाल शुरू हुआ अभी मुश्किल से तीन-चार महीना ही हुआ है। विशेषज्ञ बताते हैं कि किसी भी बीमारी की दवा की रिसर्च व उसे बाजार में उतारने तक करीब 3 साल का वक्त लगता है। अगर, सबकुछ जल्दी-जल्दी में भी किया गया तो कम-से-कम एक साल का वक्त फिर भी लग जाता है। बाबा रामदेव की दवा इस मानक में भी खरी नहीं उतरती है। मुश्किल से एक या डेढ़ माह में उस बीमारी के ईलाज की दवा नहीं आ सकती है, जिसने लाखों लोगों को मौत की नींद सुला दिया हो और दवा की खोज में पूरी दुनिया लगी हुई है। उच्च कोटि की रिसर्च सुविधा रखने वाले देश भी अब तक इसकी वैक्सीन को नहीं खोज पाए हैं, हालांकि उस पर काम चल रहा है। भारत की सबसे उच्च मेडिकल संस्था आईसीएमआर भी आने वाले दिनों में इसकी दवा लांच करने वाली है और दो अन्य प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों द्बारा भी दवा लांच किए जाने वाली बात सामने आई है। इसके अलावा राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान ने भी कोरोना की दवा बना ली है, जिसकी टेस्टिंग का दौर चला हुआ है। बताया जा रहा है कि उस दवा का करीब 12 हजार लोगों पर टेस्ट किया जा रहा है।
शायद, ऐसा लगता है कि बाबा रामदेव भी इसमें पीछे नहीं रहना चाहते थे और उन्होंने आयुर्वेदिक दवा की ताकत का हवाला देकर अन्य कंपनियों से पहले ही दवा को लांच कर दिया। उन्होंने दवा लांच की, यह बुरी बात नहीं है। यह अच्छी बात है, लेकिन दवा बनाने को लेकर उन्हें पारदर्शिता बरतनी चाहिए थी। आयुष मंत्रालय के साथ-साथ आईसीएमआर को भी जानकारी देनी चाहिए थी। अगर, बिना मानकों के दवा को लांच किया जा रहा है तो उसे किन तथ्यों के आधार पर कारगर माना जा सकता है। यह ड्रग एंड मैजिक रेमडीज एक्ट-1954 का भी खुला उल्लंघन है। इस एक्ट के तहत इसे दंडनीय अपराध माना गया है, लेकिन यह बात समझ से परे है कि बाबा रामदेव ने किस आधार पर इस दवा को लांच किया, जबकि आयुर्वेदिक दवाओं के लिए ड्रग एंड कासमेटिक रूल्स 1945 की धारा 160 ए व जे के तहत सरकारी देखरेख में चार चरणों के ट्रायल का प्रावधान है। क्या बाबा को होड़ से आगे निकलने की इतनी जल्दबाजी थी कि उन्होंने प्रावधानों तक का अनुशरण नहीं किया ? यह ऐसे संस्थान के लिए या फिर बाबा रामदेव के लिए खुद-व-खुद स्वयं को सवालों के घेरे में झौंकने का अनजाना प्रयास नहीं है, जो कई वर्षों से इस फील्ड में काम कर रहे हैं।
केवल आयुर्वेदिक दवाओं की ताकत का हवाला देने से काम नहीं चलेगा। उन्हें बनाने और बाजार में उतारने के जो मानक हैं उन्हें तो पूरा करना ही पड़ेगा। अगर, वह मानते हैं कि उन्होंने मानकों को पूरा किया है तो उत्तराखंड आयुर्वेदिक विभाग को पंतजलि की दिव्य फार्मेसी को नोटिस भेजने की जरूरत क्यों पड़ी ? जिसमें साफतौर पर कहा गया है कि दवा के लेबल पर कोरोना वायरस के उपचार का भ्रामक प्रचार किया जा रहा है, इसीलिए इसे तुरंत हटाना होगा। नोटिस में यह भी साफ किया गया है कि Corona Kit के नाम पर तीन दवाओं को एक साथ बेचने का कोई भी लाइसेंस जारी ही नहीं किया गया था, इसीलिए किस आधार पर कोरोनिल को कोरोना वायरस का इलाज बताया गया।
आयुर्वेदिक विभाग ने पंतजलि की दवा को बुखार, सांस की बीमारी के इलाज और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के तौर पर ही इजाजत दी थी। इन दवाओं में जो तत्व मौजूद बताए जा रहे हैं, उनमें गिलोय, अश्वगंधा और तुलसी आदि मुख्य रूप से शामिल हैं। गिलोय को इम्युनिटी बूस्टर और बुखार के इलाज में कारगर माना जाता है, जबकि अश्वगंधा भी रोगों से लड़ने की क्षमता में वृद्धि करता है, जबकि तुलसी सांस से जुड़े इंफेक्शन के इलाज में कारगर माना गया है। विभाग द्बारा कहीं भी कागजों में कोरोना वायरस का जिक्र नहीं किया गया है। ऐसे में, कोई ऐसा आधार सिद्ध नहीं होता है कि कोरोनिल को कोविड-19 के उपचार के रूप में कारगर दवा माना जा सकता है।
यह होड़ में आगे निकलने के लिए की गई जल्दबाजी से ज्यादा कुछ नहीं लगता है। नहीं तो कतई ऐसा नहीं लगता है कि जो बाबा रामदेव सरकार के इतने करीब माने जाते हों, वही सरकार एक झटके में यह कह दे कि इस दवा के संबंध में उसे कोई जानकारी नहीं है। जल्दबादी के चक्कर में किरकिरी कराने से बेहतर था कि थोड़ी देर से ही सही, मानकों को पूरा करने के बाद ही दवा को बाजार में उतारा जाता, क्योंकि बाजारवाद की होड़ में इस तरह मानकों की अनदेखी करना किसी भी रूप में सही नहीं है, वह भी उस बीमारी के संबंध में जो एक झटके में लाखों लोगों की मौत का कारण बनी हो। स्वदेशी के नाम पर आप बिना किसी प्रक्रिया को पूरा किए बगैर उत्पाद बाजार में नहीं ला सकते। यह लोगों के विश्वास के साथ भी किसी मजाक से कम नहीं माना जा सकता है। जब लोग कोविड-19 की दवा का इतनी बेस्रबी से इंतजार कर रहे हैं तो उसमें इस दवा को बनाने व बाजार में उतारने की प्रक्रिया को इतने हल्के तौर पर नहीं लेना चाहिए था।
अब सरकार के संबंधित विभाग को चाहिए कि वह बाबा रामदेव द्बारा किए गए दावों के तहत दवाओं के कारगर होने के अनुपातों के तथ्यों को चेक करे और उसके बाद ही दवाओं को उसकी श्रेणी में रखा जाए, जिससे लोगों के बीच उत्पन्न हुई भ्रम की स्थिति को भी खत्म किया जा सके और आयुर्वेदिक दवाओं की प्रतिष्ठा भी बनी रहे।
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