अब क्या जनसंख्या नियंत्रण कानून की बारी है ! | Now is it the turn of the population control law

राजनीतिक गलियारों में जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर आवाजें तेज होने लगी हैं, जिससे लगता है कि सरकार आगामी संसद सत्र में इस पर विधयेक ला सकती है।

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने, राम मंदिर निर्माण की नींव रखने के बाद अब देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर बहस तेज हो गई है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले संसद सत्र में सरकार जनसंख्या नियंत्रण के लिए बिल ला सकती है। सरकार की यही कोशिश रहेगी कि इस बार संसद में जनसंख्या नियंत्रण से संबंधी विधेयक पास कराया जाए। जनता की जुबान पर और राजनीतिक गलियारों में जिस प्रकार यह सवाल तैर रहा है, उससे ऐसा लगता है कि इस मामले में सरकार कुछ न कुछ जरूर कर रही है। इस कड़ी को सरकार के कुछ नुमाइंदों के बयान और चिट्ठी से भी समझा जा सकता है। जहां एक तरफ, भाजपा सांसद संजीव बालियान ने जनसंख्या नियंत्रण कानून को इस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत बताया है, वहीं बीजेपी के ही राज्यसभा सांसद डा. अनिल अग्रवाल ने पीएम मोदी को चिट्ठी तक लिख डाली है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को चिट्ठी लिखकर जनसंख्या नियंत्रण के लिए संसद में बिल लाने की मांग की है। डा. अग्रवाल सूचना प्रौद्योगिकी मामलों की स्थायी समिति, युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय सलाहाकार समिति और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की हिंदी सलाहाकार समिति के सदस्य भी हैं। डा. अग्रवाल ने प्रधानमंत्री मोदी को लिखी चिट्ठी में कहा है कि आप देश के लिए जनसंख्या नियंत्रण को जरूरत बता चुके हैं, ऐसे में अब उस संकल्प को पूरा करने का समय आ गया है।

दरअसल, पीएम मोदी ने पिछले साल 15 अगस्त 2019 को अपने भाषण में जनसंख्या विस्फोट पर चिंता जाहिर की थी। पीएम मोदी ने कहा था, भारत परिवार नियोजन अपनाने वाला दुनिया का पहला देश था। 1949 में पारिवारिक नियोजन कार्यक्रम का गठन भी किया गया। उसके बाद 1952 में पहला परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू किया गया। 1977 में सरकार ने एक नई जनसंख्या नीति का भी गठन किया था। इसमें लोगों को स्वेच्छा से स्वीकार करने का विकल्प दिया गया था, लेकिन इसके बाद भी जनसंख्या विस्फोट नहीं रूक रहा। कुछ सर्वे बताते हैं कि 2024-25 तक भारत आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा। भारत की वर्तमान जनसंख्या 135 करोड़ है, जबकि चीन की जनसंख्या 142 करोड़ है। अगर, भारत 2024-25 तक ही चीन को जनसंख्या के मामले में पछाड़ देगा तो यह गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि जनसंख्या बढ़ने से कई तरह की चुनौतियां बढ़ती हैं। इसीलिए जनसंख्या नियंत्रण जरूरी ही नहीं, बल्कि समय की मांग भी है।

वैसे, यह पहला मौका नहीं है, जब जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर बहस छिड़ी है। पहले भी बहस छिड़ती रही है, लेकिन विपक्ष उसे वोटबैंक की सियासत की तरफ मोड़कर सरकार के खिलाफ प्रहार करने लगता था। जनसंख्या नियंत्रण को लेकर इससे पहले भी कोशिशें हुईं हैं। जब नवंबर 2019 में लोकसभा में बीजेपी सांसद अजय भट्ट ने छोटे परिवार को अपनाकर जनसंख्या नियंत्रण बिल का प्रस्ताव रखा था। 2018 में बीजेपी और टीडीपी के करीब 125 सांसदों ने राष्ट्रपति से भारत में दो बच्चों की नीति लागू करने का आग्रह किया था। वहीं, दिसंबर 2018 में ही बीजेपी सांसद प्रहलाद पटेल और संजीव बालियान सहित अलग-अलग दलों के सांसदों ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए सख्त कानून की पैरवी की थीं। ऐसे में, जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है। अगर, सरकार इस बिल को पास कराने को लेकर कठिबद्ध है, तो ऐसा नहीं है कि उसे संसद में विपक्ष से आरपार नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि विपक्ष भी इस मामले में सरकार का सामना करने की तैयारियों के साथ संसद में उतरेगा। खैर, ये राजनीतिक प्रतिद्बंदिता की बात है, लेकिन जब सरकार जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की तैयारी कर रही है, तो ऐसे में कुछ भविष्यवाणियों और रिपोर्ट्स पर चर्चा करना भी बहुत आवश्यक हो जाता है।

असल में, कुछ भविष्यवाणियों में यह दावा किया जा रहा है कि 2100 में भारत की जनसंख्या कुल 109 करोड़ ही रह जाएंगी, हालांकि यह स्थिति भारत के साथ ही नहीं होने वाली है, बल्कि दुनिया के अन्य देशों की भी होगी। सबसे अधिक आबादी वाले चीन की आबादी 80 साल बाद आधी हो जाएगी। हाल ही में जारी द लैंसेट की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया की आबादी 2064 में पीक पर होगी, लेकिन इसके बाद आबादी में निरंतर गिरावट देखने को मिलेगी। रिपोर्ट के मुताबिक 2064 में दुनिया की आबादी 973 करोड़ हो जाएगी, लेकिन 2100 तक यह आबादी घटकर 879 करोड़ ही रह जाएगी। भारत की आबादी घटने का अनुमान 2048 के बाद से लगाया गया है। 2048 में भारत की आबादी 160 करोड़ होगी, लेकिन इसके बाद 32 प्रतिशत घटकर 109 करोड़ रह जाएगी। इस ग्लोबल पापुलेशन रिपोर्ट में आने वाले 80 सालों में दुनिया की आबादी के बारे में कई तरह के फैक्ट्स हैं। चीन और भारत के बाद अधिक आबादी वाले देशों में शामिल रूस, जापान, ब्राजील 2100 में टॉप-टेन की लिस्ट से बाहर हो जाएंगे। दक्षिण एशिया में पाकिस्तान को छोड़कर अन्य सभी देशों की आबादी घटने की बात रिपोर्ट में कही गई है। 2100 में भारत की आबादी आज के मुकाबले 21 प्रतिशत कम हो जाएगी। बांग्लादेश में आज के मुकाबले आधे लोग ही रह जाएंगे। पाकिस्तान ही एक ऐसा देश रहेगा, जहां आबादी 80 साल बाद 16 प्रतिशत बढ़ जाएगी। पाकिस्तान में 2062 में आबादी के पीक पर आने का दावा किया गया है, जब आज के मुकाबले वहां की आबादी 47 फीसदी अधिक हो जाएगी।

वॉशिंगटन की स्कूल ऑफ मेडिसिन युनिवर्सिटी में इंस्टीट्यट ऑफ हेल्थ मैट्रिक्स एंड अवैल्यूएशन के शोध में भी पता चला है कि साल 2100 तक 195 में से 183 देशों की प्रजनन दर का प्रतिस्थापन स्तर 2.1 से कम होगा। इसका मतलब यह होगा कि प्रवासन से संतुलन नहीं होने की वजह से इन देशों की संख्या कम होने लगेगी। युनिवर्सिटी के इस शोध के प्रमुख शोधार्थी क्रिस्टोफर मुरे के मुताबिक, 2100 तक लगभग 23 देशों की आबादी आधी हो जाएगी और 34 देशों की आबादी में 25 से 50 फीसदी तक की कमी आ जाएगी। क्रिस्टोफर का मानना है कि जब आबादी कम होने लगेगी, तो यह रूकने का नाम भी नहीं लेगी। जिन 23 देशों की आबादी आधी होगी, उनमें जापान, स्पेन, इटली, थाईलैंड, पुर्तगाल, दक्षिण कोरिया और पौलेंड शामिल रहेंगे। जनसंख्या के बदलाव का असर ग्लोबल पावर और अर्थव्यवस्था पर भी पड़ने का दावा रिपोर्ट में किया गया है। द लैंसेट की रिपोर्ट में कहा गया है कि जनसंख्या कम होने के पीछे का कारण गर्भनिरोधक साधनों में बढ़ोतरी और महिलाओं में बढ़ती शिक्षा होगी। इसकी वजह से प्रजनन क्षमता में गिरावट आने लगेगी। जिसकी वजह से प्रजनन दर में कमी का पूरी दुनिया में व्यापक और गहरा असर देखने को मिलेगा। 

ऐसे में सवाल तो बनता ही है। रिपोर्ट्स में जो तथ्य पेश किए गए हैं, क्या वाकई दुनिया की जनसंख्या स्वत: ही कम होने लगेगी ? अगर, ऐसा है तो फिर भारत में जनसंख्या नियंत्रण कानून लाना कितना जरूरी होगा, अभी के परिपेक्ष्य में भले ही यह सवाल जरूरी न हो, लेकिन विपक्षियों द्बारा भविष्य में इस संबंध में सवाल नहीं उठाए जाएंगे, इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता है।

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