ऑक्सीजन की कमी दूर करने में क्यों पिछड़ गई सरकार ? | Why did the government lag behind in removing the lack of oxygen
देश में कोरोना संक्रमण के जैसे-जैसे मामले बढ रहे हैं, उसके साथ ही अस्पतालों की चरमराती स्थिति और ऑक्सीजन की भारी कमी भी सामने आ रही है, क्योंकि कोरोना संक्रमण में सांस से जुड़ी दिक्कतें सबसे अधिक देखी जा रही हैं, इसीलिए ऐसे मरीजों के लिए ऑक्सीजन ही जीवनदायिनी साबित हो रहा है। पर मांग के अनुरूप ऑक्सीजन नहीं होने की वजह से कई मरीजों को अपनी जान तक गंवानी पड़ रही है। अब सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्या इसी बात को लेकर है कि कैसे ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाई जाए, जिससे कोरोना संक्रमण काल में ऑक्सीजन की कमी दूर हो सके और अधिक से अधिक लोगों की जान बचाई जा सके।
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानि डब्ल्यूएचओ का मानना है कि दुनिया में हर सप्ताह 10 लाख नए कोरोना के मरीज सामने आ रहे हैं, जिसकी वजह से प्रतिदिन 6 लाख 20 हजार क्यूबिक ऑक्सीजन या फिर 88 हजार बड़े ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत पड़ेगी। पर लगभग 80 फीसदी ऑक्सीजन की मार्केटिंग पर कुछ ही कंपनियां का वर्चस्व है, यही कारण है कि कई देशों में ऑक्सीजन की आपूर्ति हो ही नहीं पा रही है।
अगर, भारत की बात करें तो यहां भी कोरोना संक्रमण के मामलों में तेज गति से बढ़ोतरी हो रही है और प्रतिदिन सवा दो लाख से अधिक मामले सामने आ रहे हैं। ऐसे में, यहां ऑक्सीजन की मांग भी बढ रही है। अस्पतालों और केयर सेंटर्स में प्रतिदिन लगभग 1,300 टन तक ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है, जबकि कोरोना महामारी से पहले तक यह जरूरत 900 टन ही थी। यानि, इस संक्रमण के काल में 400 टन मांग एकाएक बढ़ गई। यह और बढ़ेगी ही बढ़ेगी, क्योंकि संक्रमण के मामले लगातार बढ़ ही रहे हैं।
आपको बता दें कि देश में कुछ ही कंपनियां हैं, जो देशभर के अपनी 500 फैक्ट्रियों में हवा से ऑक्सीजन निकालने का काम करती हैं। इसके तहत होने वाले पूरे उत्पादन का महज 15 फीसदी ही ऑक्सीजन अस्पतालों में इस्तेमाल की जाती है, जबकि बाकी ऑक्सीजन का इस्तेमाल स्टील और ऑटोमोबाइल उद्योगों में ब्लास्ट फर्नेस और वेल्डिंग के काम में इस्तेमाल की जाती है। आपको याद होगा कि भारत में 2020 जनवरी में कोरोना संक्रमण का पहला मामला सामने आया था और अप्रैल आते-आते यह संक्रमण तेजी पकड़ने लगा था और ऑक्सीजन के लिए मारामारी शुरू हो गई थी। तब सरकार को लगा कि हमें ऑक्सीजन संयंत्रों की संख्या बढ़ानी चाहिए।
फिलहाल, सरकार की इस मामले में गंभीरता की बात करें तो केंद्र ने 162 से ज्यादा ऑक्सीजन संयंत्र लगाने की मंजूरी दी है, जिसमें 33 ऑक्सीजन संयंत्र पहले ही स्थापित किए जा चुके हैं। जिनमें सबसे अधिक पांच मध्य प्रदेश, चार हिमाचल प्रदेश और तीन-तीन ऑक्सीजन संयंत्र उत्तराखंड, गुजरात और चडीगढ में स्थापित किए गए हैं। वहीं, उत्तर-प्रदेश के अलावा पंजाब, केरल, महाराष्ट्र, पुडुचेरी, दिल्ली, हरियाणा, छत्तीसगढ, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में एक-एक संयंत्र स्थापित किया गया है। बचे हुए संयंत्रों को स्थापित करने को लेकर भी सरकार पूरा रोडमैप तैयार कर रही है, पर देखना होगा कि ये संयंत्र चालू स्थिति में कब आते हैं और ऑक्सीजन की सप्लाई कब शुरू हो पाती है, जिससे कोरोना संक्रमण काल में ऑक्सीजन की कमी को दूर किया जा सके।
क्योंकि जिन मरीजों में ऑक्सीजन लेवल कम हो रहा है, उन्हें ऑक्सीजन की सख्त जरूरत पड़ रही है। इसीलिए सरकार को संयंत्रों को जल्द स्थापित करने और इन्हें चालू स्थिति में लाने की तरफ भी कदम उठाना होगा। ऑक्सीजन की कमी की वजह से अगर किसी मरीज की मौत होती है तो निश्चित ही इसे सरकारी स्तर पर कमी ही माना जाएगा, क्योंकि जब यह बीमारी एक साल से ऑक्सीजन की मांग को बढ़ा रही है तो कम से कम सरकार को अब इस संकट को दूर करना ही चाहिए।
जब ऑक्सीजन की बात हो रही है और बहुत से मरीज ऑक्सीजन की कमी से मर रहे हैं तो यहां हम आपको उत्तर प्रदेा की अगस्त 2017 की एक घटना भी याद दिलाते हैं। शायद, यह घटना आपको याद भी हो, जब यहां के एक सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी की वजह से 30 मासूम बच्चों ने दम तोड़ दिया था। इसके पीछे कारण बताया गया था कि बिल नहीं चुकाए जाने की वजह से वहां ऑक्सीजन की आपूर्ति को काट दिया गया था। इसका सीधा सा मतलब था कि अफसरशाही को लोगों की जिंदगियों से कोई मतलब नहीं। अगर, मतलब ही होता तो लोगों की जिंद्गी से जुड़ी संवेदनशीलता को लेकर इतनी लापरवाही क्यों होती ?
कुल मिलाकर, इन घटनाओं से सबक लेने की जरूरत है और सिस्टम की ऐसी ही नाकामी की भेंट लोगों की जिंदगियां चढ़े, ऐसी गलती अब नहीं की जानी चाहिए। कोरोना संक्रमण काल में हाल ही में केंद्र सरकार ने दावा किया था कि देश के तीन हजार से अधिक कोविड अस्पतालों और केयर सेंटर्स में 1 लाख 30 हजार ऑक्सीजन लगे बेड मौजूद हैं। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि कितनी जगहों पर इनमें लिक्विड ऑक्सीजन टैंक और सिलिडर बैंक मौजूद हैं, जो मरीजों को पाइप के सहारे ऑक्सीजन देते हैं। वैसे, कई सरकारी अस्पतालों में पाइप से ऑक्सीजन देने की सुविधा ही नहीं है, इसलिए वो बड़े-बड़े सिलिडरों पर इसके लिए निर्भर रहते हैं।
लिहाजा, इनकी सप्लाई को लेकर सामने आने वाली जटिलताओं को दूर करने की तरफ सिस्टम को पूरा फोकस करना होगा, जिससे कोविड अस्पतालों में ऑक्सीजन स्पेयर मात्रा में रहे और मरीज को जब जरूरत पड़े, ऑक्सीजन उपलब्ध हो सके।
Post a Comment