क्या हवा में घुल गया है कोरोना वायरस ? | Has corona virus dissolved in air?
मेडिकल जर्नल द लैंसेट ने हवा के जरिए वायरस के फैलने का किया है दावा
दावे को सच साबित करने के लिए दिए हैं कई कारण
कोरोना वायरस फैलने को लेकर तरह-तरह की बातें सामने आ रही हैं। इसके फैलने का सबसे बड़ा कारण खांसी या छींक से निकलने वाले बूंदों को माना जाता रहा है, इसीलिए इसके बचाव के लिए सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनने को सबसे जरूरी उपाय माना गया है, पर अब एक नई स्टडी में इस वायरस के हवा से फैलने का भी दावा किया जा रहा है।
जी हां, यह दावा मेडिकल जर्नल द लैंसेट की रिपोर्ट में किया गया है। बड़ी बात यह है कि इसमें इस बात का दावा किया गया है कि अभी तक इस वायरस के खांसी या छींक के बूंदों से फैलने के सबूत ना के बराबर हैं, इसीलिए यह स्पष्ट है कि अभी तक यह वायरस जितना भी फैला है या फैल रहा है, वह हवा के जरिए ही फैल रहा है। हवा में संक्रमण घुलने की वजह से ही जो बचाव के रास्ते अपनाए जा रहे हैं, वे बहुत अधिक कारगर साबित नहीं हो पा रहे हैं। इसीलिए यह वायरस उन लोगों को भी आसानी से अपनी चपेट में ले रहा है, जो कोरोना वायरस से बचने के लिए बनाए गए नियमों का पालन कर रहे हैं। यानि ऐसे लोग भी वायरस के शिकार हो जा रहे हैं, जो मॉस्क पहन रहे हैं और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी कर रहे हैं।
इसीलिए रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि इसके बचाव के लिए मास्क पहनने, सोशल डिस्टेंसिंग, साफ-सफाई पर ध्यान देने के साथ ही ऐसे उपाय भी करने चाहिए, जिसकी जरिए यह वायरस संक्रमित एयरोसोल की मदद से सांस के जरिए शरीर में न जाने पाए। इसीलिए ऐसा नहीं है कि जब आप घर के बाहर जाएं, तभी मास्क पहनें, बल्कि घर के अंदर भी मास्क का प्रयोग बहुत ही जरूरी है। वह भी बेहतर गुणवत्ता वाला।
आइए अब हम आपको बताते हैं कि मेडिकल जर्नल द लैंसेट की रिपोर्ट में इस वायरस के हवा में फैलने के पीछे क्या कारण बताए गए हैं।
जी, ऑक्सफोर्ड विवविद्यालय के ट्रिश ग्रीनहाल के नेतृत्व में विशेषज्ञों के एक दल ने इसके लिए एक या दो नहीं, बल्कि आधा दर्जन से अधिक सबूत भी पेा किए गए हैं, जो इस बात को स्पष्ट करते हैं कि यह वायरस हवा के जरिए ही फैल रहा है। सबूतों में विशेषज्ञों ने सबसे पहले स्कैगिट चोईर जैसी घटनाओं का उल्लेख किया है, जिनमें बड़े पैमाने पर संक्रमण फैला था। इस घटना में एक ही व्यक्ति से कई दर्जन लोग संक्रमित हो गए थे, जबकि एक व्यक्ति के संपर्क में आने से दर्जनों लोग संक्रमित हुए, इसका कोई सबूत नहीं मिला था। इससे साफ है कि संक्रमण हवा के जरिए दूसरे लोगों तक पहुंचा।
ऐसे में यदि, कोरोना वायरस संक्रमण के प्रसार की दर देखें तो वो बाहर की तुलना में बंद स्थानों पर ज्यादा है, जहां वेंटिलेशन की सुविधा कम है, जिसका मतलब है कि इनडोर वेंटिलेशन से इनका प्रसार बहुत कम हो जाता है। यह इसका दूसरा सबसे बड़ा सबूत है।
शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि बिना लक्षण वाले लोगों की संक्रमण के फैलने में कम से कम 4० फीसदी की हिस्सेदारी है, जबकि इन लोगों में खांसने और छींकने के कोई सबूत नहीं हैं, इस तरह वायरस का प्रसार, इस बात पर सोचने को मजबूर कर देता है कि यह वायरस हवा के जरिए ही फैल रहा है। शोधकर्ताओं के अनुसार, इस तरह का साइलेंट प्रसार दुनियाभर में इस वायरस के फैलने के लिए जिम्मेदार है, आलम यह भी देखने को मिला है कि होटल के दो कमरों में आसपास रहने वाले लोगों के बीच भी कोरोना वायरस फैला है, जो कभी एक-दूसरे के संपर्क में नहीं आए। तो क्या इससे भी स्पष्ट नहीं होता कि हवा के जरिए ही यह दूसरे लोगों तक पहुंचा होगा।
अमेरिका, यूके और कनाडा के छह विशेषज्ञों द्बारा तैयार रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि हवा के जरिए फैलने वाले वायरसों को दर्शाना मुश्किल होता है। उनका दावा है कि पिछले कई शोधों से भी पता चला है कि इस तरह से फैलने वाले वायरस को स्पष्ट करना मुश्किल होता है। कई बार जिन संक्रमणों के बारे में यह माना जाता रहा है कि वो बूंदों के जरिए फैले हैं, पर वो वास्तविकता में हवा के जरिए फैले थे।
इस शोध से जुड़े शोधकर्ता जोस-लुइस जिमेनेज के मुताबिक इस बात के कोई सबूत नहीं मिले हैं कि यह वायरस बूंदों के जरिए आसानी से फैलता है, जो जमीन पर गिरती हैं और सतह पर मौजूद रहती हैं। उनका मानना है कि बूंदों के जरिए संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए हाथों को धोना, सतह को साफ रखना, सामाजिक दूरी और मास्क पहनने जैसे उपायों पर बल दिया गया है, ये उपाय बेकार नहीं हैं, बस इनके साथ-साथ हवा के जरिए वायरस के प्रसार और उसकी रोकथाम पर भी ध्यान देना जरूरी है। वहीं, सामाजिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहीं प्रमुख एजेंसियां, जैसे विव स्वास्थ्य संगठन को चाहिए कि वो इस वायरस के फैलने सम्बन्धी वैज्ञानिक सबूतों को भी अपनाएं, जिससे इस वायरस के प्रसार को रोका जा सके।
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