जलियावाला बाग कांड | jaliya wala bag kand


 जलियावाला बाग कांड को कौन भूल सकता है। भले ही, सभी लोगों को इस कांड की कहानी पता हो, पर उनके दिमाग में जलियावाला बाग कांड इतिहास के काले अध्याय के रूप में जरूर दर्ज है। क्योंकि यह भारतीय इतिहास की एक बेहद अहम घटना है। और यह घटना घटी थी, आज ही के दिन यानि 13 अप्रैल 1919 को।

जी हां, अमृतसर के जलियांवाला बाग की प्राचीर में अंग्रेज सिपाहियों ने जनरल डायर के आदेश पर यहां मौजूद लोगों पर गोलियां बरसा दी थीं, उनके इस नरसंहार में 1000 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना को ब्रिटि सिपाहियों ने इतनी जल्दी अंजाम दिया है कि लोगों को संभलने तक का मौका नहीं मिला था। इस बीच बहुत सारे लोग अपनी जान बचाने के लिए यहां मौजूद कुएं में कूद गए थे, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लोगों से पूरी तरह पट गया था, जो उस नरसंहार की भयावह तस्वीर को दर्शाने के लिए काफी थी। 



इस नरसंहार को 102 साल हो गए हैं। ब्रिटि सरकार ने भले ही इस घटना के 100 साल बाद अपना अफसोस जाहिर किया हो, लेकिन यह जितना बड़ा नरसंहार था, उसके जख्म भी उतने ही गहरे हैं, जिन्हें शायद ही कभी भूला जा सकता है। ये जख्म कैसे भूले जा सकते हैं, क्योंकि आज भी मौके पर मौजूद उस मंजर के निशान चीख-चीखकर उस नरसंहार की याद दिलाते हैं। 

हालांकि, अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते हैं। पर अनाधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि इस नरसंहार में 1000 से अधिक लोग शहीद हो गए थे और 200 से अधिक लोग घायल हो गए थे। अंग्रेज सैनिकों ने इस घटना को अंजाम क्यों दिया, इसका जिक्र निश्चित ही इतिहास के पन्नों पर दर्ज है, पर बहुत से लोग शायद, इसके पीछे की कहानी को नहीं जानते हों। आइए हम आपको इसी कहानी से परिचित कराते हैं।

 दरअसल, इस नरसंहार के पीछे अंग्रेजों की क्रूर मानसिकता जिम्मेदार थी। उसकी दमनकारी नीतियां इतनी अधिक हावी थी कि जिन्हें सहन करना बहुत ही मुश्किल था। क्रांतिकारी उनकी इन्हीं दमनकारी नीतियों का विरोध कर रहे थे और उन्होंने जलियावाला बाग प्राचीर पर रोलेट एक्ट और सत्यपाल सैफुद्घीन किचलू की गिरफतारी के विरोध में सभा आयोजित की थी। उस सभा को कई नेता संबोधित कर चुके थे और कई अन्य नेता संबोधित भी करने वाले थे। उस दौरान शहर में कफर्यू लगा हुआ था, लेकिन कांतिकारियों में अंग्रेजों की इस नीति के खिलाफ इतना रोष था कि कफर्यू के बीच भी हजारों की संख्या में लोग सभी स्थल पर जमा हो गए थे, इस सभा में वे लोग भी शामिल हो गए थे, जो बैसाखी पर्व पर परिवार के साथ मेला देखने आए थे। जिससे भीड़ कई गुना बढ़ गई थी। सभा में इतनी भीड़ जुट जाएगी, इसका अंग्रेजों को अंदाजा भी नहीं था, इसीलिए ब्रिटि हुकूमत इससे बुरी तरह बौंखला गई थीं। इसका नतीजा यह हुआ कि जब सभास्थल पर नेता भाषण दे रहे थे, तभी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर लगभग 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ वहां पहुंचा। सैनिकों के हाथ में राइफलें थीं। 

जनरल डायर के आदे पर अंग्रेज सैनिकों ने बाग को घेरकर बिना कोई चेतावनी दिए ही निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसा दीं थीं। आपको जानकर हैरानी होगी कि महज, 10 मिनट में ही कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं। दरअसल, जलियांवाला बाग उस समय मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था और वहां तक जाने या बाहर निकलने के लिए केवल एक संकरा रास्ता ही था और चारों ओर मकान थे। यानि भागने का कोई रास्ता था ही नहीं, इसीलिए लोग जान बचाने के लिए कुंए में कूद गए थे, पर उनमें से अधिकांश लोग गोलियों की चपेट में गए और देखते-ही-देखते पूरा कुआं लोगों से पट गया था। जो ब्रिटि हुकूमत की क्रूर मानसिकता का दर्शाने के लिए काफी था। आश्चर्य इस बात पर होता है कि ब्रिटिश सरकार ने इस घटना पर 100 साल बाद अफसोस जाहिर किया, पर उस अफसोस का बहुत अधिक मोल इसीलिए नहीं है, क्योंकि घटनास्थल आज भी अंग्रेजों की क्रूरता की कहानी स्वयं ही बयां करता है। 


No comments