2024 में मोदी का टक्कर देते नजर आएंगे नीतीश !
बिहार में नीतीश कुमार द्वारा बीजेपी से दामन छुड़ाने के बाद राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में बड़ी मात खाने के बाद मुरझाए विपक्ष के लिए नई उम्मीद की किरण जग गई है। नीतीश कुमार द्वारा आरजेडी, कांग्रेस और अन्य दलों के समर्थन से नई सरकार बनाने के बाद विपक्ष मजबूत तो होगा ही, बल्कि बीजेपी के सामने 2024 को लेकर चुनौती बढ़ जाएगी, क्योंकि विपक्ष नीतीश को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट करने में बिल्कुल भी नहीं करताएगा। लिहाजा, नीतीश ने 2024 लोकसभा चुनावों के मददेनजर यह फैसला इसीलिए लिया, जिससे उन्हें 2024 तक महागठबंधन को एकसूत्र में बांधने में आसानी हो, उनके पास इसके लिए पर्याप्त समय रहेगा।
हाल के वर्षों में, जिस तरह से बीजेपी का वर्चस्व बढ़ता गया, उसकी परिणति यह हुई कि कांग्रेस तो पूरी तरह खात्मे की तरफ बढ़ ही रही है, बल्कि अन्य विपक्षी पार्टियों का भी दम घुटते हुए नजर आ रहा है।ऐसे में, महागठबंधन को एक ऐसे चेहरे की जरूरत थी, जो प्रधानमंत्री मोदी को 2024 में टक्कर दे सके, क्योंकि कांग्रेस की जो स्थिति है, उसमें बिल्कुल भी ऐसा नहीं लगता है कि उसका 2024 में भी बेड़ा पार हो पाएगा, इसीलिए ममता बनर्जी स्वयं को 2024 में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए विपक्षी पार्टियों के बीच सहमति जुटाने में लगी हुई थी, लेकिन नीतीश के महागठबंधन में आने के बाद अब नहीं लगता कि ममता के प्रति विपक्षी दलों में सहमति बन पाएगी, क्योंकि अब समीकरण नीतीश की तरफ ज्यादा दिख रहे हैं। शायद, विपक्ष में नीतीश के नाम पर सहमति बिहार में गठबंधन टूटने से पहले ही बन गई हो, तभी नीतीश ने बीजेपी का दामन छोड़ने का फैसला लिया हो। नीतीश से दामन छूटने के बाद अब बीजेपी लिए आने वाले विधानसभा चुनावों के साथ ही 2024 के लोकसभा चुनावों में चुनौती बहुत अधिक बढ़ जाएगी। बिहार में जिस तरह बीजेपी को झटका मिला है, वह उसके लिए एक बड़े सदमे की तरह है, क्योंकि बीजेपी ने हाल-फिलहाल में विभिन्न राज्यों में अपना परचम लहराया। कई राज्यों में उसने बहुमत हासिल किया तो कई राज्यों में जोड़-तोड़ से सत्ता में आने में कामयाब हासिल की। महाराष्ट्र इसका सबसे ताजा उदाहरण रहा, लेकिन इन परिस्थितियों में भी बिहार पहला ऐसा राज्य बन गया, जहां पर बीजेपी को सत्ता गंवानी पड़ी है। चाहे इसकी जो भी वजह रही हो, लेकिन सिर्फ इस एक बात ने विपक्ष को उत्साह से भर दिया है कि नीतीश ने जिस तरह से बीजेपी को आंख दिखाई है और गठबंधन तोड़कर नई सरकार बनाई है, वह विपक्ष में नई जान फंकूने सरीखे जैसा है। नीतीश अपनी इस उपलब्धि के बलबूते संयुक्त विपक्ष के एक सर्वमान्य नेता के तौर पर स्वयं को स्थापित कर सकते हैं।
दरअसल, राष्ट्रीय राजनीति में मुकाम बनाने की नीतीश कुमार की चाह बहुत पुरानी रही है। नए सियासी समीकरणों के साथ उनकी यह चाह परवान चढ़ने की उम्मीद बढ़ गई है, हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में नीतीश क्या कुछ कर पाएंगे, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन वह राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र बन जाएंगे, इससे बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है। जेडीयू के नेता उपेंद्र कुशवाहा के एक ट्वीट से भी इसके सार को समझा जा सकता है। अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा- नीतीश जी आगे बढ़िए, देश आपका इंतजार कर रहा है। उपेंद्र कुशवाहा ने अपने इस ट्वीट से नीतीश की महत्वाकांक्षा को भी जगजाहिर कर दिया है।
नीतीश द्वारा बीजेपी का दामन छोड़ने के बाद विपक्ष पर क्या असर हो रहा है, इसका अनुमान यूपी में सपा मुखिया अखिलेश यादव के बयान से भी लगाया जा सकता है। अखिलेश ने कहा कि यह एक अच्छी शुरुआत है। आज ही के दिन अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया गया था और आज ही के दिन बिहार से भाजपा भगाओ का नारा आ रहा है। अखिलेश ने कहा- मेरा मानना है कि विभिन्न राज्यों में राजनीतिक दल और लोग जल्द ही भाजपा के खिलाफ खड़े होंगे। जाहिर सी बात है, हर किसी को साध लेने की नीतीश की खूबी से हर कोई वाकिफ है। ऐसे में, अगर वह बिहार में तेजस्वी के बाद यूपी में अखिलेश, दक्षिण में केसीआर, पूरब में ममता और पश्चिम में शिवसेना और एनसीपी के साथ आम आदमी पार्टी के केजरीवाल को एकसूत्र में बांधने में कामयाब रहे तो 2024 में भाजपा के लिए बड़ा संकट खड़ा कर सकते हैं। इसमें से तमाम वो नेता हैं, जो भाजपा से छुटकारा पाने की कीमत पर बड़ी आसानी से नीतीश का नेतृत्व स्वीकार कर सकते हैं। अब देखना यह है कि नीतीश की एनडीए और भाजपा से बगावत आने वाले वक्त में क्या रंग लाती है ?
कुछ ही दिन पहले उपराष्ट्रपति चुनाव के फैसले आए हैं। नतीजों के बाद संयुक्त उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा ने विपक्षी दलों पर निशाना साधा था। उन्होंने एक ट्वीट कर कहा था कि कुछ विपक्षी दलों ने भाजपा का साथ दिया है। वास्तव में, उनका यह ट्वीट विपक्ष की एकता को पटरी से उतारने जैसा है, इससे पहले विपक्ष के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के चुनाव में राय न लेने की बात कहकर ममता बनर्जी ने भी दूरी बना ली थी। उससे पहले विपक्ष के अंदर अंदरूनी टकराव राष्ट्रपति चुनाव के वक्त भी देखने को मिली थी। इन सारी बातों से यह साबित हो गया था कि न तो कांग्रेस का कोई नेता और न ही ममता बनर्जी विपक्ष को एक रखने में कामयाब हो पा रही हैं। ऐसे में, एक ऐसे नेता की जरूरत थी, जो विपक्ष को एकसूत्र में बांध सके। लिहाजा, इन सबके बीच नीतीश कुमार की एनडीए से बनी दूरी विपक्ष को एकसूत्र में बांधने में भी कारगर साबित होगी और 2024 लोकसभा चुनाव में भी संजीवनी का काम करेगी।
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