बाइडेन ने युक्रेन की गोपनीय यात्रा कर आग में घी डालने का किया काम......
रुस और युक्रेन युद्ध की विभीषिका से पूरी दुनिया परिचित है, लेकिन इसी बीच अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन की गोपनीय युक्रेन यात्रा ने सबको चौंका दिया है। जब दोनों देशों के बीच कई महीनों से चल रहे युद्ध को कैसे खत्म कराया जाए, इस पर विचार होना चाहिए था, तब अमेरिकी राष्ट्रपति का यह गोपनीय दौरा अत्यंत चिंताजनक है, क्योंकि उन्होंने जिस तरह युक्रेन को करोड़ो डॉलर की सामरिक मदद की घोषणा की है, वह न केवल युक्रेन को युद्ध के प्रति उकसाने का काम करेगा, बल्कि रुस की तरफ भी इससे यही संदेश जाता है।
दुनिया जानती है कि युक्रेन इस
युद्ध में पूरी तरह बर्बाद हो चुका है। डेढ़ करोड़ से अधिक लोग दूसरे देशों में जाकर
शरण ले चुके हैं, 40 हजार से अधिक इमारतें नष्ट हो चुकी हैं
और 20 लाख से भी अधिक बच्चें शिक्षा से वंचित हो चुके हैं, जबकि
रुस और युक्रेन के 50 हजार से अधिक सैनिक इस युद्ध की भेंट चढ़ चुके हैं। यानि कुल
मिलाकर, इस युद्ध से मानवता पूरी तरह शर्मशार हुई है। भारत एक
तरफ जहां दोनों देशों के बीच युद्ध को समाप्त कराने की पहल कर रहा है, वहीं दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश होने के बाद भी अमेरिका इस युद्ध को और
बढ़ाने के लिए आग में घी डालने का काम कर रहा है। क्या अमेरिका को ऐसी विभीषिका के
बाद दोनों देशों के बीच हस्तक्षेप कर इस युद्ध को रुकवाने की पहल नहीं करनी चाहिए
थी, हालांकि पिछला इतिहास देखा जाए तो हर मौके पर अमेरिका की
इसी नीति के तहत काम करता है। उसका प्रयास रहता है कि दूसरों को आपस में लड़वाओ और
अपना चौधरी बने रहो। लिहाजा, ऐसी परिस्थिति में उन देशों को भी
सोचने की जरूरत है, जो अमेरिका के उकसावे में आकर आपस में लड़ते
हैं, क्योंकि इसमें नुकसान अमेरिका का नहीं, बल्कि उन देशों का होता है, जो आपस में लड़ते हैं। सबसे
बड़ी बात तो यह है इसमें आम नागरिक सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, इसीलिए किसी भी राष्ट्राध्यक्ष को युद्ध को अपनी नाक की लड़ाई नहीं समझना
चाहिए, बल्कि उन्हें आम नागरिकों के बारे में भी सोचना चाहिए।
जिस तरह अमेरिकी राष्ट्रपति ने युक्रेन का दौरा किया है और उन्होंने युक्रेन को सामरिक
मदद का ऐलान किया है, उससे साफ है कि यह युद्ध अभी समाप्त होने
वाला नहीं है, बल्कि यह और लंबा खिंचेगा।
जहां तक इस
साल का सवाल
है, युद्ध
की पूरी दशा और दिशा रूस की तरफ से होने वाले आक्रमणों पर निर्भर करेगी। हाल ही में, राष्ट्रपति पुतिन ये कह चुके हैं कि उनके 50 हजार से ज्यादा सैनिक वॉर फ्रंट
पर तैनात हैं, जबकि ढाई
लाख सैनिकों को अगले साल आक्रमण के लिए तैयार किया जा रहा है, इसलिए जब तक रूस के इन नए सैनिकों की तैनाती को लेकर स्थिति
साफ नहीं हो जाती, तब तक
जंग के सिवा किसी और स्थिति की गुंजाइश बनती नहीं दिख रही है, इसलिए फिलहाल, युद्ध विराम स्थिति बने, ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती है। पुतिन ये साफ कर चुके हैं कि
जीत से कम पर वो मानने वाले नहीं और यूक्रेन इस बात का ऐलान कर चुका है कि उसके
सैनिक आख़िरी दम तक पीछे हटने वाले नहीं। लिहाजा,
जिद दोनों तरफ से है और अमेरिका सहित नाटो देश युक्रेन के पीछे खड़े
हैं, जिससे उसे युद्ध के लिए और ताकत मिल रही है,
जिसके परिणाम और भी घातक होंगे। लिहाजा, ऐसी
परिस्थिति में, जब पूरी दुनिया को शांति की राह पर आगे बढ़ना चाहिए, उसमें विशेषकर
रुस और युक्रेन को युद्ध की राह को छोड़कर विवाद का हल आपसी बातचीत से निकालने की
तरफ ध्यान देना चाहिए। निश्चित ही, अमेरिका जैसे देश उकसाने का ही काम करेंगे,
खासकर, युक्रेन को उकसावे में आकर अपना नुकसान नहीं करना चाहिए, क्योंकि युक्रेन
पहले ही इतना बर्बाद हो चुका है, उससे उबरने में उसे कई दशक लग जाएंगे, इसीलिए
विवाद का आपसी बातचीत से कैसे हल निकाला जा सकता है, इस बात की पहल की जानी चाहिए,
तभी शांति का मार्ग प्रशस्त होने में मदद मिल पाएगी।
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