क्या अधिवेशन में बीजेपी के लिए खिलाफ पुख्तार रणनीति बनाने में सफल होगी कांग्रेस……?
आगामी दिनों में कांग्रेस रायपुर में बड़ा अधिवेशन करने जा रही है। इसमें कांग्रेस कमेटी के 18 सौ सदस्य और 15 हजार से अधिक प्रतिनिधि भाग लेंगे। इस अधिवेशन का मकसद 2024 में होने वाले आम चुनावों के मध्येनजर विकल्पों की तलाश करने के अलावा उसके बीजेपी की काट कैसे ढूढ़ी जाए, जिससे मतदाता कांग्रेस को बंपर वोट दें और वह केन्द्र में सरकार बनाने में सफल हो सके। यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि ऐसा कुछ 1967 में कांग्रेस के खिलाफ हुआ था, जब डा. राममनोहर लोहिया की पहल पर कांग्रेस विरोधी दल एकजुट हो गए थे। इसको लेकर कांग्रेस विरोधी दलों में विचारों को लेकर किसी तरह की ऊंच-नीच नहीं देखने को मिली थी।
उस एकता को काफी बल मिला था
और कई राज्यों में कांग्रेसी विरोधी पार्टियों की सरकारें बनीं थीं, लेकिन जहां तक केन्द्र की बात रही, वह मौका 1977
में आया, जब आपातकाल के बाद मोरारजी देसाई और चरण सिंह की
सरकारें बनीं, लेकिन सत्ता विरोधी पार्टियां इसको बहुत अधिक
हजम नहीं कर पाईं और विश्वनाथ प्रताप सिंह और चंद्रशेखर की सरकारों के दौरान बहुत-सी
ऐसी चीजें हुईं, जिससे सियासी तौर पर यह दौर काफी अच्छा
नहीं रहा। लिहाजा, 2024 के परिपेक्ष्य में ऐसा अनुभव क्या
स्थिति को बदलने में कारगर होगा, क्या कांग्रेस वैसा ही
प्रयोग बीजेपी के साथ करने में सफल हो पाएगी, यह सबसे बड़ा
सवाल है। भारत जोड़ो यात्रा के बाद भले ही, कांग्रेस के अंदर
थोड़ा आत्मविश्वास दिखा है, क्योंकि इस यात्रा के दौरान न
केवल लोगों की राहुल गांधी की बदलती छवि नजर आई, बल्कि इस
यात्रा के दौरान लोगों की अच्छी-खासी भागीदारी भी देखने को मिली। ऐसे में,
क्या कांग्रेस का यह वृहद अधिवेशन इस पहल को और मजबूत करेगा,
ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए, लेकिन सबसे बड़ा
सवाल यह है कि बीजेपी विरोधी अन्य पार्टियां इस पहल में कांग्रेस का साथ देंगी या
नहीं, यह सबसे अधिक अजमंजस की स्थ्िाति रहेगी, क्योंकि अकेले दम पर कांग्रेस केंद्र में सरकार बनाएगी, इसको लेकर निश्चित ही संशय रहेगा, क्योंकि कांग्रेस
की जो स्थिति पिछले 10 वर्षों के दौरान दिखी है, उससे उबरने
में अभी वक्त लग सकता है, हालांकि चुनाव से पहले अगर
कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर को आमजन के बीच मुखर करने में सफल रहती है तो उसके लिए
सफलता का मार्ग थोड़ा और आसान हो जाएगा, लेकिन वर्तमान
सियासी परिस्थितियों में यह बहुत आसान नहीं दिखता है। इस समय कांग्रेस के अलावा
अन्य पार्टियों के पास भी लोहिया, चंद्रशेखर, जयप्रकाश और वीपी सिंह जैसे चेहरे नहीं हैं, जो सत्ता
में बैठी पार्टी को उखाड़ फेंकने में कामयाब हो सके। नीतीश कुमार विकल्प के रूप
में जरूर दिखाई देते हैं, लेकिन वह कांग्रेस को प्रधानमंत्री
पद के उम्मीदवार के तौर पर स्वीकार्य होंगे, इसकी बिल्कुल
भी उम्मीद नहीं की जा सकती है। इसके विपरीत राहुल गांधी के लिए भी इस बात की चुनौती
है कि उन्हें बीजेपी विरोधी पार्टी के नेता भी मजबूत चेहरे के रूप में स्वीकार
करने को तैयार नहीं हैं, इसीलिए 2024 के चुनावों को लेकर भी
पलड़ा बीजेपी की तरफ ही झुकता हुआ दिखाई देता है। सत्तारूढ़ बीजेपी ने भले ही
जमीनी स्तर पर बहुत अधिक कुछ नहीं किया है, लेकिन लोगों के
मन में कहीं-न-कहीं अपनी स्वीकार्यकता उसने अभी तक बनाई हुई है, लोगों को ऐसा लगता है कि अगर, केंद्र में सत्ता
परिवर्तन होता है तो पता नहीं देश का क्या होगा, इसीलिए भले
ही लोगों के बीच राहुल गांधी की थोड़ी-बहुत छवि सुधरी हो, लेकिन
चुनौती उनके लिए अभी भी कम नहीं है, इसीलिए आगामी 2024 के
आमचुनाव कांग्रेस के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। अगर, बीजेपी
विरोधी पार्टियां उसको समर्थन देने का मन भी बनाती हैं तो निश्चित ही ऐसी
पार्टियों के लिए कांग्रेस को भी त्याग की भावना रखनी होगी, तभी उसकी एक अलग साख बनकर उभरेगी।
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