कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के मायने....!
कर्नाटक में शानदार जीत हासिल करने के बाद कांग्रेस के हौंसले बुलंद हैं और राजनीतिक गलियारों में इस तरह की बहस छिड़ गई है कि कर्नाटक तो केवल एक झांकी है, बल्कि कई राज्य अभी बाकी हैं। यही नहीं, इस चर्चा ने भी जोर पकड़ लिया है कि क्या आखिर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में बीजेपी के सामने कोई मुश्किल खड़ी होने वाली है। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का ग्रॉफ घटने लगा है।
दीगार
बात है कि केन्द्र में भाजपानीत सरकार पिछले नौ वर्षों से सत्ता में है। अगले
साल लोकसभा के चुनाव होने हैं, जिसको लेकर सभी पार्टियां
अपनी-अपनी तैयारियां में जुटी हुईं हैं। किसी भी राज्य की हार-जीत का सीधा कनेक्शन
लोकसभा चुनावों से निश्चित रूप से होता है। कर्नाटक चुनावों को लेकर इसीलिए अधिक
कयास लगाए जा रहे थे कि इसके ठीक एक साल बाद लोकसभा का चुनाव होना है, इसीलिए कर्नाटक विधानसभा चुनावों का परिणाम लोकसभा चुनावों को अधिक प्रभावित
करेगा। कर्नाटक में भाजपा की सरकार थी। जिस तरह से यहां विधानसभा चुनावों में जीत
हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री से लेकर भाजपा के दूसरे नेताओं ने कड़ी मेहनत की,
उससे भाजपा को पूर्ण उम्मीद थी कि भाजपा की सरकार रिपीट होगी,
लेकिन ऐसा नहीं हो पाया और यह जीत कांग्रेस के लिए इसीलिए भी
संजीविनी है, क्योंकि पार्टी लगातार पतन की तरफ बढ़ रही थी।
यहां की जीत कांग्रेस का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए बहुत अधिक सहायक सिद्ध होगी।
इस जीत से न केवल कांग्रेस मजबूत हुई है, बल्कि विपक्ष की
अन्य पार्टियों को भी एक उम्मीद की किरण नजर आने लगी है। लोकसभा चुनावों से पहले
कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिनमें राजस्थान और
छत्तीसगढ़ ऐसे राज्य हैं, जहां कांग्रेस की सरकार है। मध्यप्रदेश
में भाजपा की सरकार है। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में इसी साल नवंबर में चुनाव होने
हैं, जबकि राजस्थान में इसी साल दिसंबर में चुनाव होने हैं।
मिजोरम में नवंबर और तेलंगाना में दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। वहीं,
लोकसभा चुनाव के आसपास और उससे पहले आंध्र प्रदेश, अरुणांचल प्रदेश, सिक्किम और उड़ीसा जैसे राज्यों में
भी चुनावों का कार्यक्रम है। वैसे इन राज्यों में अप्रैल में चुनाव होने हैं,
वहीं मई में लोकसभा चुनाव होने हैं, इसीलिए विधानसभा
चुनावों का लोकसभा चुनावों पर बहुत अधिक असर देखने को मिलने वाला है। कर्नाटक को लेकर
भाजपा, इसीलिए अधिक उत्साहित थी, क्योंकि
यहां भाजपा की सरकार थी, जबकि उड़ीसा, आंध्र
प्रदेश और तेलंगाना को लेकर भाजपा बहुत अधिक उम्मीद इसीलिए नहीं कर सकती है,
क्योंकि यहां राज्य स्तरीय नेताओं का जनता के बीच अच्छा वर्चस्व
है। उड़ीसा में नवीन पटनायक तो आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी और तेलगांना में के.
चंद्रशेखर राव काफी लोकप्रिय नेता हैं, इसीलिए इनसे चुनौती लेना
भाजपा के लिए आसान नहीं होगा।
कर्नाटक
का चुनाव अगर भाजपा फतह करने में सफल रहती तो निश्चित तौर पर पार्टी की आत्मविश्वास
लोकसभा चुनावों को लेकर बहुत अधिक होता, क्योंकि इससे यह
आकलन लगाया जा सकता था कि प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता बरकरार है। कर्नाटक हार
के बाद प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता को लेकर भी इसीलिए सवाल उठ रहे हैं,
क्योंकि उन्होंने कर्नाटक में हर दांव चला, लेकिन
नतीजों से यही कहा जा सकता है कि कर्नाटक की जनता ने प्रधानमंत्री के हर दांव को नकार
दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने कर्नाटक चुनाव प्रचार के आखिर में बजरंगबली के नाम पर भी
वोट देने की अपील की थी, उन्होंने रोड-शो भी किए, लेकिन उनकी कोई भी तरकीब यहां काम नहीं आ पाई और भाजपा को मुंह की खानी पड़ी।
येदियुरप्पा को हटाकर भी भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा। पार्टी ने येदियुरप्पा को हटाकर
बासवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन भाजपा का यह
दांव भी उल्टा ही साबित हुआ। पार्टी 2012 में येदियुरप्पा को हटाकर भी नुकसान झेल
चुकी थी, यह गलती आडवाणी ने की थी, ऐसी
ही गलती को दोहराकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी गलती की। दरअसल, येदियुरप्पा कर्नाटक के लोकप्रिय नेता हैं। शायद, उन्हें
हटाना प्रदेश की जनता को नागवार गुजरा और इसी का नतीजा हुआ कि भाजपा को यहां हार का
सामना करना पड़ा।
इस
हार के बाद भाजपा को यह सबक लेना ही चाहिए कि केवल प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर चुनाव
न लड़ा जाए, बल्कि उन्हें स्थानीय चेहरे पर अधिक विश्वास
करना होगा। एक-दो बार मोदी के चेहरे पर विधानसभा चुनाव जीता जा सकता है, लेकिन हर बार ऐसा नहीं हो सकता है, क्योंकि जब तक स्थानीय
चेहरा नहीं होगा, तब तक लोगों में विश्वास नहीं जगेगा,
इसीलिए भाजपा को इस संबंध में गंभीरता से सोचना होगा। लिहाजा,
कर्नाटक की जीत से कांग्रेस ने यह लकीर खींचने में कुछ हद तक कामयाबी
तो पा ली है कि भाजपा को भी हराया जा सकता है, इसीलिए आगामी 2024
लोकसभा चुनावों को लेकर मैदान प्रतियोगिता के लिए खुल गया है। दरअसल, लोग भी केन्द्र के हवाई दावों से परेशान नजर आने लगे हैं। लिहाजा,
भाजपा को यह समझना होगा कि विधानसभा चुनाव में स्थानीय चेहरों को किसी
भी रूप में दरकिनार न किया जाए। अगर, आगामी चुनावों में पार्टी
ऐसा करेगी तो निश्चित तौर पर उसे नुकसान झेलने के लिए तैयार रहना होगा। दूसरा,
राज्य सरकारों को भी घोषणा-पत्र में किए गए दावों पर गंभीरता से अमल
करना होगा। बहुत से ऐसे राज्य हैं, जहां स्थानीय सरकार सही
काम नहीं कर पा रही हैं। इस मैथड को सुधारने की आवश्यकता है। भले ही, लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग मुद्दों पर होते हों, लेकिन चीजें कितनी ही सकारात्मक क्यों न हों, सत्तासीन
पार्टी को निश्चित ही नुकसान होता है। अगर, लोकसभा चुनावों के
पास विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और उसमें सत्तासीन पार्टी हार रही है तो उसका मनोबल
तो टूटता है, वहीं विपक्षी पार्टी सरकार के खिलाफ माहौल बनाने
में भी सफल होने लगती है। लिहाजा, आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर
अभी बहुत बड़ी सियासत होने वाली है। क्या भाजपा कनार्टक की हार से उबरकर नई लाइन खिंचने
में सफल होगी या फिर कांग्रेस कर्नाटक की जीत को भुनाने में सफल हो पाएगी, यह देखना बेहद दिलचस्प होगा।
nice
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