Mewat-Nuh riots : दंगाईयों को समझाई जाए बुल्‍डोजर की भाषा !

 हरियाणा के मेवात-नूंह (Mewat-Nuh riots) में हुई हिंसा में 6 लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक लोग घायल हो गए। इस हिंसा में सैकड़ों वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। साइबर थाने को भी पूरी तरह तहस-नहस करने की कोशिश की गई। हरियाणा पुलिस ने इस मामले में 26 एफआईआर दर्ज की हैं और 116 से अधिक लोगों की गिरफतारियां की जा चुकी हैं।



इस हिंसा में जिस तरह पूरा हरियाणा दहला, यह वाकई बहुत शर्मनाक है। निश्चित ही, इस घटना से सीधे तौर पर खट्टर सरकार और उनके पुलिस-प्रशासन पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इस पूरे प्रकरण से तो ऐसा लगा कि जैसे सरकार के साथ-साथ उसका पूरा सिस्‍टम ही सोया हुआ था। हैरानी इस बात पर होती है कि इस घटना के बाद जिस तरह मुख्‍यमंत्री मनोहर खट्टर ने बयान दिया कि हम हर किसी व्‍यक्ति की सुरक्षा नहीं कर सकते हैं, वह और भी शर्मनाक है। जिस राज्‍य में इतनी भयानक हिंसा हो रही हो और उस राज्‍य का मुख्‍यमंत्री यह कह रहा है कि हम हर किसी की सुरक्षा नहीं कर सकते हैं, यह अपने-आप में प्रदेश की जनता के लिए भी बहुत बड़ा शॉकिंग है, क्‍योंकि जब आप सत्‍ता में आए थे तो आपने सभी को सुरक्षा मुहैया कराने का वादा किया था, जब राज्‍य हिंसा में जल रहा हो, आम आदमी का घर से बाहर आना मुश्किल हो गया हो, तब आप कह रहे हैं कि हम हर किसी की सुरक्षा नहीं कर सकते हैं। निश्चित तौर पर यह खुद की नाकामी को छुपाने के प्रयास के अलावा और कुछ नहीं है।

जब किसी प्रदेश का मुखिया इस तरह का बयान देता है तो निश्चित तौर दंगे फैलाने वाले लोगों को प्रोत्‍साहन मिलता है, अगर, इस तरह की घटना उत्‍तर प्रदेश में होती तो हिंसा फैलाने वालों की क्‍या हालत हो गई होती, इसको पूरा देश जानता है, लेकिन हरियाणा के मुख्‍यमंत्री दंगा फैलाने वालों पर सख्‍त कार्रवाई का आश्‍वासन देने के बजाय यह कह रहे हैं कि सभी को सुरक्षा मुहैया कराना संभव नहीं है। हरियाणा में 22 जिले हैं और 21 जिले ऐसे हैं, जहां हिंदुओं की संख्‍या अधिक है, जबकि नूहं एक ऐसा जिला है, जहां मुसलमानों की अपेक्षा हिंदुओं की आबादी बहुत कम है। यानि 80 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है, जबकि 20 प्रतिशत आबादी हिन्‍दुओं की है। यह घटना इसीलिए अधिक चितिंत करती है, क्‍योंकि जब हिंदू बाहुल्‍य जिलों में मुस्लिम समुदाय के कई जलसे होते हैं, तो किसी तरह के दंगे नहीं होते हैं। मुस्लिम समुदाय के लोग ईद और मोहरम के मौके पर यहां जुलूस निकालते हैं, लेकिन कभी रत्‍ती भर भी हिंसा नहीं होती है, लेकिन मेवात एरिया में कांवड यात्रा के दौरान पत्‍थरबाजी और हिंसा हो जाती है तो यह अपने-आप में बहुत ही गंभीर विषय है, जिस तरह हिंसा को अंजाम दिया गया, उससे साफतौर पर जाहिर होता है कि इस हिंसा को एक सोची-समझी रणनीति के तहत अंजाम दिया गया। ऐसा नहीं है कि इस हिंसा को अचानक ही अंजाम दिया गया। इसीलिए यह घटना सिस्‍टम की नाकामी को दर्शाता है। एंजेंसियां और पुलिस-प्रशासन कहां सोया हुआ था, जिसे हिंसा की आशंका की भनक तक नहीं लग पाई और न ही उसने कांवड यात्रा के मध्‍येनजर कोई तैयारी की थी।

ये घटनाएं तब हो रही हैं, जब देश में एक हिंदूवादी सरकार सत्‍ता में है। खुद हरियाणा के मुख्‍यमंत्री मनोहर खट्टर स्‍वयं को बड़ा राष्‍ट्रभक्‍त कहते हैं। देश की राजधानी दिल्‍ली से महज 100 किलोमीटर की दूरी पर इस तरह की हिंसा हो जाती है, लेकिन न तो प्रधानमंत्री और न ही गृहमंत्री कुछ कर पाते हैं और राज्‍य के मुख्‍यमंत्री मनोहर लाल खट्टर हाथ खड़े करते हुए यह कहकर अपना पल्‍ला झाड़ लेते हैं कि सभी लोगों की सुरक्षा देना हमारे बस की बात नहीं है।

उनसे यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि आप सत्‍ता में हैं तो लोगों की सुरक्षा की जिम्‍मेदारी कौन लेगा। जहां तक सवाल सामाजिक सौहार्द बनाए रखने का है, उसका प्रयास तो आपकी सरकार और पुलिस-प्रशासन को करना चाहिए। जब मेवात जैसे संवेदनशील एरिया में कावड़ यात्रा निकालने की योजना बनाई जा रही थी, क्‍या तब आपका पुलिस-प्रशासन सोया हुआ था। पहले ही इस संबंध में आपसी तालमेल बनाए रखने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए थी, जिससे मेवात को इतने बड़े दंगे से बचाया जा सकता था। हैरानी इस बात पर होती है कि जो लोग दंगा फैलाते हैं उनके खिलाफ कोई सख्‍त कार्रवाई नहीं की जाएगी, बल्कि सालों पुराने कानूनों के सहारे जांच भर होगी बस, जिसमें ऐसे लोगों का कुछ भी नहीं बिगड़ता है। अगर, एक बार जेल चले जाएंगे तो जल्‍द ही बाहर भी आ जाएंगे और फिर दंगा फैलाएंगे। लिहाजा, ऐसे दंगों से देश को बचाना है तो या तो ऐसे मामलों को लेकर सख्‍त कानून बनाए जाने चाहिए या फिर योगी आदित्‍यनाथ मॉडल पर काम करना चाहिए, तभी समाज में शांति कायम रहेगी, क्‍योंकि जब कोई आपसी मेल-मिलाप की भाषा समझने को तैयार नहीं है तो उसे बुल्‍डोजर की भाषा से समझाना बहुत जरूरी हो जाता है।  

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