आखिर देश में कब रुकेगी महिलाओं के खिलाफ हिंसा !

 इस दौर में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं और हर क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़ रही हैं, लेकिन अफसोस की बात है कि महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा को लेकर देश की सर्वोच्‍च अदालत सुप्रीम कोर्ट (#Supreme Court#) ने अदालतों से संवेदनशील होने की उम्‍मीद जताई है।




दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने #Uttrakhand High court# उत्‍तराखंड हाईकोर्ट द्वारा एक शख्‍स और उसकी मां को पत्‍नी के साथ क्रूरतापूर्ण व्‍यवहार करने के लिए दोषी ठहराए जाने संबंधी फैसले को बरकरार रखते हुए आरोपियों द्वारा सर्वोच्‍च अदालत में दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि महिला की मौत का कारण जहर था। हाईकोर्ट ने मृतका के पति और उसकी सास को दोषी ठहराया था, जिसे सर्वोच्‍च अदालत ने भी सही माना। अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि अदालतें अपराधियों को प्रक्रियात्‍मक तकनीकीताओं, अपूर्ण जांच या सबूतों में महत्‍वपूर्ण कमियों के कारण बचने की अनुमति नहीं देंगी, वरना अपराध के लिए बिना सजा दिए जाने से पीडित पूरी तरह हतोत्‍साहित हो जाएंगे।

महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की अपील इसीलिए भी महत्‍वपूर्ण है, क्‍योंकि तमाम प्रयासों के बाद भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा कम नहीं हो रही है। देश में पिछले करीब तीन वर्षों के दौरान महिलाओं के खिलाफ हिंसा के 90 हजार 174 मामले दर्ज किए गए हैं। दर्ज मामलों में दहेज उत्पीड़न के 1096 मामले और रेप/रेप की कोशिश से जुड़े 4,873 मामले शामिल हैं। लोकसभा में हाजी फजलुर रहमान के प्रश्न के लिखित उत्तर में महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने यह जानकारी दी थी। ईरानी ने बताया था कि राष्ट्रीय महिला आयोग के रिकॉर्ड के अनुसार वर्ष 2020 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के 23,719 मामले, वर्ष 2021 में 30,863 मामले, वर्ष 2022 में 30,956 मामले दर्ज किए गए। वर्ष 2023 में इसी साल आठ मार्च तक महिलाओं के खिलाफ हिंसा के 4636 मामले दर्ज किए गए हैं। लोकसभा में महिला एवं बाल विकास मंत्री द्वारा पेश आंकड़ों के अनुसार, इस अवधि में दहेज उत्पीड़न के 1096 मामले दर्ज किए गए हैं, जिसमें वर्ष 2020 में 330 मामले, वर्ष 2021 में 341 मामले, वर्ष 2022 में 357 मामले तथा 2023 में आठ मार्च तक 41 मामले शामिल हैं।

वहीं, साल 2020 में रेप/रेप की कोशिश से जुड़े 1236 मामले, वर्ष 2021 में 1681 मामले, वर्ष 2022 में 1710 मामले और 2023 में आठ मार्च तक ऐसे 246 मामले दर्ज किए गए। बाल विकास मंत्री स्‍मृति ईरानी ने कहा कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सरकार प्रभावी कदम उठाती है, जिसमें पुलिस के साथ समन्वय, विदेशी दूतावास से सहायता लेना, जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण से सहायता प्राप्त करना, क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी से मदद प्राप्त करना और कानूनी परामर्श देना आदि शामिल हैं, लेकिन जिस तरह से महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले बढ़ रहे हैं, वह निश्चित तौर पर शासन और पुलिस प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते हैं, खासकर रेप की बढ़ती घटनाओं को लेकर। हैरानी की बात यह है कि फास्‍ट ट्रैक कोर्ट के निर्माण के बाद भी महिलाओं और मासूम बच्चियों के खिलाफ रेप और रेप के प्रयास के मामले कम नहीं हो रहे हैं।

कुछ दिन पूर्व मध्‍यप्रदेश के उज्‍जैन में सामले आई घटना इसका ताजा उदाहरण है। यहां 12 साल की बच्‍ची के साथ एक ऑटो चालक ने रेप किया। भले ही, मध्‍यप्रदेश सरकार ने आरोपी भरत सोनी के मकान को ध्‍वस्‍त करने का ऐलान किया है और उसे एक महीने के अंदर सजा दिलाने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन यह देखने वाली बात होगी कि इसमें पुलिस-प्रशासन कितना कामयाब हो पाता है। लेकिन यहां सवाल यह है कि आखिर कानून में सख्‍त प्रावधान के बाद भी क्‍या महिलाओं और बच्चियों के प्रति इस तरह की दरिदंगी होती रहेगी ? देश की राजधानी दिल्‍ली तक महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित शहरों में शुमार है। यहां हर दिन 2 नाबालिग लड़कियों के साथ रेप की घटना होती है।

#National Crime Record Bureau# नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्‍यूरो #(NCRB)# की हलिया रिपोर्ट के अनुसार अपराध के मामले में 19 महानगरों में 32.20 प्रतिशत के साथ राजधानी दिल्‍ली का पहले नंबर है, इसके बाद मायानगरी मुंबई 12.76 प्रतिशत के साथ दूसरे स्‍थान पर और बेंगलुरु 7.2 प्रतिशत मामलों के साथ तीसरे स्‍थान पर है। 2020 और 2021 में राजस्‍थान में सबसे अधिक रेप की घटनाएं हुईं। 2019 में भी राजस्‍थान रेप की सर्वाधिक 5997 मामलों के साथ टॉप पर रहा था। 2018 में मध्‍यप्रदेश 5433 रेप की घटनाओं के साथ टॉप पर था। सरकार की नई रिपोर्ट के मुताबिक, देश में हर घंटे में महिलाओं के खिलाफ अपराध के करीब 49 मामले दर्ज होते हैं। एनसीआरबी की भारत में अपराध-2021 की रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में देश में दर्ज रेप केसों की संख्‍या 28,046 थी, लेकिन 2019 में यह संख्‍या बढ़कर 32,033 हो गई थी।

इस आकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि समाज में महिलाएं और बच्चियां कितनी असुरक्षित हैं, जिस तरह से रेप की घटनाओं में वृद्धि हो रही है, उससे यह साफ जाहिर होता है कि अपराधियों पर कानून के डंडे का भी कुछ असर नहीं हो रहा है। इसीलिए रेप के केसों में शामिल आरोपियों की सजा को लेकर और सख्‍ती बरतने की जरूरत है, क्‍योंकि जब इस तरह की घटनाएं सामने आती हैं तो शासन-प्रशासन आरोपियों को जल्‍द सजा दिलाने की बात तो करते हैं, लेकिन सच्‍चाई यह होती है कि फास्‍ट ट्रैक कोर्ट के निर्माण के बाद भी आरोपियों को सजा मिलने में वर्षों बीत जाते हैं, जिससे अपराधियों के हौंसले और भी बुलंद हो जाते हैं। दिल्‍ली का निर्भया कांड इतना चर्चित हुआ और उसके बाद ही फास्‍ट ट्रैक कोर्ट का निर्माण किया गया, लेकिन निर्भया के परिजनों को न्‍याय पाने के लिए करीब 7 साल का इंतजार करना पड़ा था। जब इतने चर्चित मामले में 7 साल लग गए तो अन्‍य मामलों की क्‍या स्थिति रहती होगी, इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। लिहाजा, कोशिश यह होनी चाहिए कि आरोप सिद्ध हो जाने के बाद अपराधियों को तत्‍काल सजा दिलाई जानी चाहिए, तभी कुछ हद तक महिलाओं के खिलाफ बढ़ने वाली रेप जैसी घटनाओं में कमी आ पाएगी।








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