मंच पर एकजुटता मात्र से नहीं होगी इंडी गठबंधन की राह आसान, छोटे-छोटे मतभेदों को भी भुलाना जरूरी

 शराब घोटाले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद देश में सियासी माहौल पूरी तरह गरमा गया है। एक तरफ लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और दूसरी तरफ झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी, जिससे इंडी गठबंधन पूरी तरह बीजेपी सरकार पर हमलावर है। विपक्ष पीएम मोदी पर तानाशाही का आरोप लगाते हुए लोकतंत्र बचाओ की मांग कर रहा है और जिस तरह से गठबंधन में शामिल विभिन्न पार्टियों के नेता पिछले दिनों दिल्ली के रामलीला मैदान में जुटे, उससे उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार को चेताने की भरपूर कोशिश की, लेकिन सवाल यह है कि जिस तरह एनडीए इस बार 400 के पार का नारा लेकर चल रही है और आत्मविश्वास से लबरेज दिखाई दे रही है, क्या ऐसे में इंडी गठबंधन एनडीए को चुनौती दे पाएगा ?

दूसरा क्या जिस तरह शराब घोटाले में आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह की रिहाई हुई है, उसी प्रकार आने वाले दिनों में केजरीवाल भी रिहा हो जाएंगे या फिर इस मामले में कोई और गिरफ्तारी हो सकती है ? यह सवाल भी सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है, लेकिन एकजुटता दिखाने के बाद भी इंडी गठबंधन जिस तरह सीट शेयरिंग को लेकर बंटा हुआ है, उससे एनडीए के सामने गठबंधन की चुनौती आसान नहीं है, उन्हें दिखावे की नहीं बल्कि सही मायनों में एकजुटता दिखानी होगी, तब गठबंधन एनडीए से मुकाबला कर पाएगा। संयोग की बात है कि दिल्ली में विपक्षी एकजटुता का ये कार्यक्रम ठीक उसी दिन था, जिस दिन प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश के मेरठ से बीजेपी का चुनावी शंखनाद किया। 'लोकतंत्र बचाओ रैली' के नाम से हुई इस रैली में न सिर्फ़ तमिलनाडु से लेकर कश्मीर और महाराष्ट्र तक के राजनीतिक दल झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमेंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल की गिरफ़्तारी के विरोध में एकजुट दिखे बल्कि कार्यक्रम शुरु होने तक रामलीला मैदान खचाखच भर भी गया था, जिस तरह यहां बीजेपी और आरएसएस को ज़हर के समान बताया गया, उससे बीजेपी भी तिलमिलाई नजर आ रही है, इसी वजह से इंडी गठबंधन के खिलाफ पीएम मोदी से लेकर अन्य नेताओं द्वारा लगातार बयानबाजी की जा रही है, जिसमें परिवारवाद से लेकर भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दों पर विपक्षी पार्टियों को आड़े हाथों लिया जा रहा है।

कुल मिलाकर, इंडी गठबंधन को एनडीए का मुकाबला करना है तो पहले एक होने के बारे में गंभीरता से सोचना होगा और सीट शेयरिंग की लड़ाई छोड़नी होगी, इसी वजह से तमाम दावों के बावजूद विपक्षी एकजुटता और उसके चेहरे को लेकर अभी तक स्थिति साफ़ नहीं दिख रही है। चुनावी महीने की शुरुआत हो चुकी है और यही विपक्षी गठबंधन के सामने चुनौती है। जब तब इंडी गठबंधन अपने छोटे-छोटे मतभेदों को नहीं भुलाएगा, तब तक उसकी राह आसान नहीं होगी। 

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