मणिपुर में जिस तरह हिंसा पर हिंसा हो
रही है, उसने
राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी सख्ते में डाला हुआ है। हिंसा को खत्म
कराने के लिए जिस तरह केंद्र सरकार के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं, उसने निश्चित ही इस बात को लेकर चिंता
बढ़ा दी है कि आखिर इस समस्या का समाधान कैसे किया जाए ? मणिपुर की हिंसा को लेकर केंद्र की
बीजेपी सरकार लगातार विपक्षियों के निशाने पर है, इसका बीजेपी को कोई समाधान नहीं सूझ
रहा है। गत शनिवार को हुई हिंसा में चार संदिग्ध चरमपंथियों और एक आम नागरिक की
मौत होना यह साबित करती है कि आखिर मणिपुर का तनाव कहां जाकर समाप्त होगा ?

ऐसा लगता है कि मणिपुर का संघर्ष अब
गृहयुद्ध जैसी स्थिति में पहुंच चुका है। वहां के मैतेई और कुकी समुदायों के कथित
आतंकी संगठन न केवल लक्षित हिंसा, बल्कि अत्याधुनिक तकनीक और उपकरणों का
उपयोग करने करने जुटे हुए हैं। यह बहुत डरावना होने के साथ ही चिंताजनक भी है कि
पिछले सप्ताह हुए दो हमलों में ड्रोन और राकेट का उपयोग किया गया। इंफाल पश्चिम
में ड्रोन से बम गिरा कर तीन लोगों की हत्या कर दी गई थी। वहीं, विष्णुपुर में एक व्यक्ति के घर में
घुस कर उसकी हत्या कर दी गई। उसके बाद दोनों गुटों में जमकर गोलीबारी हुई। राकेट
से गोले दागे गए, जिसमें
चार लोग मारे गए और दो भवन ध्वस्त हो गए।
इस घटना के बाद वहां के मुख्यमंत्री
ने वही अपना रटा-रटाया बयान दे दिया कि हिंसा करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।
उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। वास्तव में, यह बात समझ से परे है कि एक राज्य में
हिंसा होते सवा साल से ऊपर हो गए, लेकिन सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी दिख
रही है। ऐसे में, सवाल
उठता है कि आखिर कोई भी जिम्मेदार सरकार कैसे इस तरह अपने नागरिकों को आपस में
लड़-भिड़ कर मरते, विस्थापित
होते और बुनियादी सुविधाओं तक से वंचित होते देख सकती है। ऐसा कैसे संभव हो सकता
है कि मणिपुर के उग्रवादी संगठन इतने ताकतवर होते गए कि उनके पास अत्याधुनिक
हथियार पहुंचने लगे और सरकार उन पर रोक लगाने तक में विफल हो गई।
मणिपुर में क़रीब डेढ़ साल पहले हिंसा
का दौर शुरू हुआ था। उस वक़्त मणिपुर हाई कोर्ट ने 27 मार्च 2023 को एक आदेश में
राज्य सरकार से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की बात पर
जल्दी विचार करने को कहा था। इस आदेश के कुछ दिन बाद ही राज्य में जातीय हिंसा
भड़क गई थी और कई लोगों की जान भी गई। इस हिंसा की वजह से हज़ारों लोगों को बेघर
भी होना पड़ा और सार्वजनिक संपत्ति का भी नुक़सान हुआ। दरअसल, राज्य के मैतेई समुदाय को अनुसूचित
जनजाति का दर्जा देने की मांग को इस हिंसा की मुख्य वजह माना जाता है। इसका विरोध
मणिपुर के पहाड़ी इलाक़ों में रहने वाले कुकी जनजाति के लोग कर रहे हैं। 2023 में
ही गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर दौरे के समय सभी पक्षों से बात कर 15 दिनों के
भीतर शांति बहाल करने की अपील की थी, लेकिन हालात और ख़राब ही होते जा रहे
हैं।
ऐसे में साफ जाहिर होता है कि हालात
को ठीक करने के लिए जिस तरह के क़दम उठाए जाने की ज़रूरत थी, वो क़दम ना केंद्र सरकार ने उठाए ना
ही राज्य सरकार ने, जिसका
परिणाम पूरे राज्य को भुगतने पड़ रहे हैं। आलम यह नजर आ रहा है कि सरकार ने लोगों
को उनके हाल पर छोड़ दिया है। कुकी और मैतेई दोनों ही समुदाय के लोगों को लग रहा
है कि उन्हें अपनी सुरक्षा ख़ुद करनी पड़ेगी, क्योंकि सरकार उनके लिए कुछ कर ही
नहीं रही है और इसी वजह से हालात बिगड़ते चले गए, क्योंकि लोग हिंसा से निपटने के लिए
ख़ुद हिंसा का ही सहारा ले रहे हैं। मणिपुर में पिछले साल शुरू हुई हिंसा में 200
से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं। राज्य में हालात अब भी सामान्य नहीं हुए हैं।
हिंसा से प्रभावित मैतेई और कुकी समुदाय के लोग अब भी बड़ी संख्या में राहत
शिविरों में रह रहे हैं। हिंसा से प्रभावित कुछ लोगों को भागकर पड़ोसी राज्य
मिज़ोरम में शरण लेनी पड़ी है।
ऐसे में, सवाल यह बनता है कि आखिर मणिपुर पर
केंद्र सरकार चुप क्यों है और इसका राज क्या है ? अगर, वहां के मुख्यमंत्री हिंसा रोक पाने
में अक्षम हैं, तो
उन्हें बदल देने में इतना संकोच क्यों किया जा रहा है ? चुनावी रणनीति के तहत बीजेपी कई राज्यों में कई बार अपने
मुख्यमंत्री बदल चुकी है, फिर मणिपुर के मुख्यमंत्री से इतना मोह क्यों रहा है ? मणिपुर की हिंसा को लेकर प्रधानमंत्री
तक पर सवाल उठते रहे हैं कि आखिर वे चुप क्यों हैं ? वे रूस-यूक्रेन युद्ध रुकवाने को
सक्रिय हो सकते हैं, तो मणिपुर की हिंसा को लेकर कोई पहल क्यों नहीं करते ? मणिपुर पर चुप्पी और शिथिलता न केवल
उस राज्य की तबाही के लिए जिम्मेदार साबित हो रही है, बल्कि भविष्य में इससे बड़े खतरे पैदा
होने की आशंका भी गहरी होती है। इस तरह चरमपंथी गतिविधियों पर ढिलाई पूरे देश के
लिए खतरनाक साबित हो सकती है। ऐसे में, केंद्र सरकार को एक स्थायी समाधान की
दिशा में पहली और सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। इसके लिए, एक उच्च स्तरीय वार्ता आयोग का गठन
किया जा सकता है, जिसमें
सभी संबंधित पक्षों - मैतेई, कुकी, और अन्य प्रमुख समुदायों के प्रतिनिधि
शामिल हों।
दूसरा, मौजूदा सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा
की जानी चाहिए। जरूरत के अनुसार केंद्रीय सुरक्षा बलों को मणिपुर भेजा जा सकता है
ताकि हिंसा को नियंत्रित किया जा सके। इसके अलावा, स्थानीय पुलिस बलों की क्षमता को
बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण और संसाधनों की वृद्धि पर भी ध्यान देना चाहिए। वहीं, हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में
मानवाधिकार उल्लंघनों की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र आयोग का गठन किया जा सकता है।
यह आयोग न केवल घटनाओं की जांच करेगा बल्कि पीड़ितों को न्याय दिलाने में भी मदद
करेगा। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी प्रकार की मानवाधिकार उल्लंघन
की घटनाओं के प्रति कठोर कार्रवाई की जाए। हिंसा ने राज्य की अर्थव्यवस्था और
सामाजिक संरचना को बुरी तरह प्रभावित किया है। केंद्र सरकार को एक विशेष आर्थिक
पैकेज की घोषणा करनी चाहिए, जो पुनर्निर्माण और विकास परियोजनाओं
को प्रोत्साहित करे। इसमें बुनियादी ढांचे की मरम्मत, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की बहाली
और रोजगार सृजन के प्रयास शामिल होने चाहिए। केंद्र सरकार को ये कदम तत्काल और
प्रभावी ढंग से उठाने होंगे। एक समग्र और समावेशी दृष्टिकोण के माध्यम से, जिसमें संवाद, सुरक्षा, न्याय, और पुनर्निर्माण के उपाय शामिल हों, मणिपुर में शांति और स्थिरता बहाल की
जा सकती है।
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