दिल्ली की बदलती सियासत



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झारखंड और महाराष्ट्र में बुधवार को मतदान होने के साथ ही चुनाव संपन्न हो गया है और 23 नवंबर को साफ हो जाएगा कि सत्ता किसे मिलने वाली है, लेकिन इस बीच राजधानी दिल्ली की सियासत भी गरम हो गई है, क्योंकि यहां अगले साल के शुभारंभ में चुनाव होने हैं। इस बीच अरविंद केजरीवाल के भरोसेमंद और दिल्ली सरकार के मंत्री कैलाश गहलोत ने पद और पार्टी से इस्तीफा दे दिया  और चंद घंटों बाद ही बीजेपी का दामन भी थाम लिया। आम आदमी पार्टी ने बीजेपी पर ईडी, इनकम टैक्स विभाग का खतरा दिखाकर इस्तीफा दिलाए जाने का आरोप लगाया, जबकि कैलाश गहलोत ने इससे साफ इंकार किया है। इसके पीछे परिस्थिति कुछ भी रही हो, लेकिन निश्चित रूप से इस सियासी घटना को बीजेपी को फायदा और आम आदमी पार्टी को नुकसान झेलना पड़ेगा, क्योंकि कैलाश गहलोत ने जिस तरह आम आदमी पार्टी पर झूठे वादे करने का आरोप लगाया, उससे जनता पर यह संदेश गया है कि वाकई आम आदमी पार्टी की सरकार जनता से किए वादे पूरे करने में सफल नहीं हुई है। 

2015 में कैलाश गहलोत ने नजफ़गढ़ से आम आदमी पार्टी के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ा था। उन्होंने इंडियन नेशनल लोक दल के भरत सिंह को नज़दीकी मुक़ाबले में 1555 वोटों से हराया था। 2020 में भी कैलाश गहलोत इसी सीट से चुनाव लड़े और बीजेपी के अजीत सिंह को हराया था, तब जीत-हार का अंतर 6,231 वोट था। केजरीवाल सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में गहलोत के पास वित्त, राजस्व और परिवहन जैसे अहम मंत्रालयों की ज़िम्मेदारी थी। इससे पहले कैलाश गहलोत ने दिल्ली हाईकोर्ट में 16 साल से ज़्यादा समय तक बतौर वकील क़ानूनी प्रैक्टिस की है। 2005 से 2007 के बीच गहलोत दिल्ली हाई कोर्ट के बार एसोसिएशन में कार्यकारी सदस्य चुने गए थे।

वह केजरीवाल के करीबियों में गिने जाते रहे हैं। इस बार के स्वतंत्रता दिवस पर झंडा फहराते हुए उन्होंने कहा था, मैं आज इस तिरंगे के नीचे खड़े होकर बड़े गर्व के साथ ये कह सकता हूं कि अरविंद केजरीवाल आधुनिक स्वतंत्रता सेनानी हैं। 15 अगस्त 2024 को कैलाश गहलोत ने दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में झंडा फहराया और कहा कि 'लोकतंत्र विरोधी ताक़तों' ने केजरीवाल को जेल भेजकर उन्हें रोकने की साज़िश की है, लेकिन इस बयान के तीन महीने बाद ही कैलाश गहलोत ने मंत्री पद छोड़ दिया और आम आदमी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता तक से इस्तीफा दे दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल पर 'जनता से किए गए वादे पूरे न करने' तक का आरोप लगाया।

पूरे परिदृश्य से यह पता चलता है कि वह आतिशी को सीएम बनाने से नाराज़ थे, इसीलिए जहां एक तरफ़ आम आदमी पार्टी के साथ उपराज्यपाल का टकराव लगातार बढ़ रहा था, वहीं दूसरी तरफ़ गहलोत अपने चिर-परिचित ख़ामोशी वाले अंदाज़ में वीके सक्सेना के साथ मिलकर काम करते हुए दिखाई दे रहे थे। इस दौरान गहलोत कैब एग्रीगेटर और प्रीमियम बस सेवा जैसी नीतियों को पारित करवाने में सफल रहे, जबकि उनके सहयोगी उपराज्यपाल के ऊपर काम न करने का आरोप लगा रहे थे। बीजेपी में शामिल होते समय कैलाश गहलोत ने भी कहा है कि यह कोई एक दिन का फ़ैसला नहीं है। आम आदमी पार्टी में जिस तरह अरविंद केजरीवाल की तानाशाही चलती है, उनके लिए वह भी निराशाजनक रहा होगा। आम आदमी पार्टी में कैडर और पद के हिसाब से हैसियत जैसी कोई बात नजर नहीं आती है, जो अरविंद केजरीवाल को पसंद आएगा, उसी हिसाब से सरकार चलती है। दस साल से गहलोत मंत्री थे और वो सीनियर हो गए थे, लेकिन उन्होंने आतिशी की लैटरल एंट्री करा दी और मुख्यमंत्री बना दिया, जो भी आदमी आपके साथ शिद्दत से काम कर रहा था, उसे निश्चित रूप से तकलीफ़ होगी।

राजनीति में परसेप्शन बहुत मायने रखता है और परसेप्शन के स्तर पर आम आदमी पार्टी के लिए यह बहुत बड़ा झटका है। केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद पार्टी पहले से ही परसेप्शन के मोर्चे पर जूझ रही थी, इससे पहले राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल का प्रकरण भी चला। इस बीच अगर एक और नेता पार्टी छोड़ गया तो चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी के सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी। 

कैलाश गहलोत का पार्टी बदलना निश्चित रूप से दिल्ली के राजनीतिक समीकरणों को नया मोड़ देगा। कैलाश गहलोत दिल्ली में आम आदमी पार्टी के एक प्रमुख नेता रहे हैं और उनके पास दिल्ली के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में अच्छी खासी पहचान है। वह दिल्ली सरकार में मंत्री भी रहे हैं और उनके पास प्रशासनिक अनुभव भी है। बीजेपी के लिए गहलोत का शामिल होना एक रणनीतिक कदम माना जाएगा, क्योंकि दिल्ली में भाजपा की स्थिति पहले से ही आम आदमी पार्टी से संघर्षशील रही है। गहलोत के नेतृत्व में बीजेपी को एक नया चेहरा और वोट बैंक मिल जाएगा।  खासकर, उन क्षेत्रों में जहां आम आदमी पार्टी का प्रभाव ज्यादा है।

दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले गहलोत का बीजेपी में शामिल होना, चुनावी लड़ाई को और दिलचस्प बनाएगा। आम आदमी पार्टी और बीजेपी दोनों के लिए यह एक अवसर है, लेकिन साथ ही यह एक चुनौती भी है। गहलोत की उपस्थिति से बीजेपी को उन क्षेत्रों में फायदा हो सकता है, जहां वह आम आदमी पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ने में सक्षम नहीं रही। वहीं, आम आदमी पार्टी के लिए यह एक चेतावनी है कि वह अपनी पार्टी के भीतर बेहतर नेतृत्व और नीति निर्धारण पर ध्यान दे, ताकि आगामी चुनावों में पार्टी का जनाधार मजबूत बना रहे।





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