राजनीति और भ्रष्टाचार

 भले ही, देश का आम आदमी महंगाई, बेरोजगारी जैसी समस्याओं से जूझ रहा हो, लेकिन देश के नेता जरूर अमीर बन रहे हैं। वो केवल अमीर ही नहीं बन रहे हैं बल्कि अमीरी के नए मानक स्थापित कर रहे हैं। झारखंड विधानसभा चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशियों द्वारा दिए गए  हलफनामे से इस बात की साफ तस्दीक होती है, जो इस बात को दर्शाती है कि नेताओं की संपत्ति में दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की हो रही है। 


झारखंड इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट से पता चलता है कि राज्य में हुए पहले चरण में चुनाव मैदान में उतरे 683 प्रत्याशियों में से 235 प्रत्याशी करोड़पति थे, जिनकी  औसत संपत्ति 2.16 करोड़ रुपये है। भाजपा के 30, झामुमो के 18, कांग्रेस के 16, राजद के चार, जदयू के दो व आजसू और लोजपा के एक-एक प्रत्याशी की संपत्ति करोड़ रुपये से अधिक है। अगर, दूसरे चरण की बात करें तो इस चरण में 522 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, जिनमें से 127 (24 प्रतिशत) करोड़पति हैं। इन उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 2.53 करोड़ रुपये है। 38 उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति 5 करोड़ रुपये या उससे अधिक घोषित की है। 42 उम्मीदवारों के पास 2 से 5 करोड़ रुपये के बीच की संपत्ति है। 130 उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति 50 लाख से 2 करोड़ रुपये के बीच घोषित की है, जबकि 176 उम्मीदवारों की संपत्ति 10 लाख से 50 लाख रुपये के बीच है। 136 उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति 10 लाख रुपये से कम घोषित की है। राजनीतिक दलों के हिसाब से देखें तो बीजेपी के 32 प्रत्याशियों में से 23 (72 प्रतिशत) करोड़पति हैं। झामुमो के 20 उम्मीदवारों में से 18 (90 प्रतिशत), कांग्रेस के 12 उम्मीदवारों में से 10 (83 प्रतिशत), आजसू पार्टी के 6 उम्मीदवारों में से 5 (83 प्रतिशत), बसपा के 24 उम्मीदवारों में से 4 (17 प्रतिशत) और राजद के 2 उम्मीदवारों में से 2 (100 प्रतिशत) करोड़पति हैं।

दूसरे चरण के सबसे अमीर उम्मीदवार समाजवादी पार्टी के अकील अख्तर हैं। अख्तर पाकुड़ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। सपा नेता की कुल संपत्ति 402.99 करोड़ रुपये है, जिसमें 0.99 करोड़ रुपये की चल संपत्ति और 402 करोड़ रुपये की अचल संपत्ति शामिल है। दूसरे नंबर पर गिरिडीह जिले की धनवार सीट से निर्दलीय उम्मीदवार निरंजन राय हैं, जिनकी संपत्ति 137 करोड़ रुपए है। वहीं, धनवार सीट से ही चुनाव लड़ रहे मोहम्मद दानिश तीसरे सबसे अमीर प्रत्याशी हैं। आजाद समाज पार्टी (कांशी) के प्रत्याशी दानिश की कुल संपत्ति 32 करोड़ रुपये है। इस आंकड़ों को देखकर यही सवाल उठता है कि क्या राजनीति में बिना भ्रष्टाचार के इतनी संपत्ति अर्जित करना आसान है ? यह हर भारतीय जानता है कि राजनीति में भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत ही गहरी हैं, जो समय के साथ 

एक जटिल और दीर्घकालिक समस्या बन चुकी हैं। राजनीति में बढ़ता भ्रष्टाचार देश की प्रगति और लोकतंत्र की प्रभावशीलता में एक बड़ा अवरोध है। राजनीति में भ्रष्टाचार की वजह से न केवल सरकारी योजनाओं का सही तरीके से कार्यान्वयन नहीं हो पाता, बल्कि यह जनता के विश्वास को भी खत्म कर देता है। चिंताजनक बात यह है कि यह एक ऐसी समस्या है, जो केवल राजनीतिक वर्ग तक सीमित नहीं है, बल्कि प्रशासनिक, न्यायिक और अन्य संस्थाओं तक भी फैल चुका है। भ्रष्टाचार के कारण जनता के अधिकारों का उल्लंघन होता है और यह विकास योजनाओं को साकार होने से रोकता है। भारत में राजनीति में प्रवेश करने के बाद राजनेताओं की संपत्ति में अप्रत्याशित वृद्धि देखी जाती है। यह सवाल उठता है कि क्या राजनेताओं के लिए बिना भ्रष्टाचार के इतनी संपत्ति अर्जित करना संभव है?

राजनेताओं के लिए एक बड़े पद पर रहते हुए संपत्ति में वृद्धि होना अनौचित्यपूर्ण लगता है, क्योंकि उनकी आय का मुख्य स्रोत उनके वेतन, भत्ते और अन्य वैध स्रोत होते हैं, लेकिन जब भ्रष्टाचार एक सामान्य व्यवहार बन जाए, तो यह राजनेताओं के लिए अतिरिक्त संपत्ति अर्जित करने का आसान रास्ता बन जाता है। यह आमतौर पर सरकारी ठेकों, परियोजनाओं में कमीशन, चुनावी चंदे और अन्य काले धन के स्रोतों के रूप में होता है। भारत में चुनावी प्रक्रिया भी भ्रष्टाचार का एक बड़ा कारण बन चुकी है। चुनाव लड़ने के लिए भारी धन की आवश्यकता होती है, जो अक्सर अवैध स्रोतों से आता है। चुनावी चंदे में पारदर्शिता की कमी और धन के स्रोतों की जांच की अनदेखी के कारण कई बार यह धन सफेद धन नहीं होता, बल्कि काले धन से आता है। जब चुनावों में धन का बोलबाला होता है, तो यह उम्मीदवारों को न केवल जनता से वोट खरीदने के लिए प्रेरित करता है, बल्कि चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता को भी प्रभावित करता है। चुनावों के दौरान उम्मीदवारों को भारी प्रचार-प्रसार, रैलियों, पोस्टरों और अन्य प्रचार सामग्री के लिए धन की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया में कई बार यह धन न केवल वैध स्रोतों से, बल्कि अवैध रूप से भी आता है। इसके परिणामस्वरूप, चुनावी प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष नहीं रहती और भ्रष्टाचार के माहौल में वृद्धि होती है। राजनीति में भ्रष्टाचार का एक और पहलू यह भी है कि कई बार राजनेताओं की संपत्ति में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है, जबकि उनका घोषित वेतन और आय की सीमा इससे मेल नहीं खाती। यह तब होता है जब अधिकारी, ठेकेदार और अन्य लोग सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार के जरिए पैसा बनाते हैं और इसके बदले में राजनेताओं को हिस्सा देते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां चुनाव जीतने के बाद नेताओं की संपत्ति में भारी वृद्धि देखी गई है, जबकि उनका वेतन वैसा का वैसा रहता है।

भारत की राजनीति में अगर, भ्रष्टाचार को रोकना है तो   चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए चुनावी चंदे और उम्मीदवारों की आय के स्रोतों की पूरी जानकारी जनता के सामने रखी जानी चाहिए। इसके अलावा, चुनाव आयोग को ऐसे उपायों को लागू करना होगा, जो काले धन के प्रयोग को नियंत्रित करे। इसके अलावा, राजनेताओं और सरकारी कर्मचारियों की संपत्ति की समय-समय पर जांच की जानी चाहिए। संपत्ति में अचानक वृद्धि के मामलों में गहरी जांच पड़ताल होनी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह धन भ्रष्टाचार से अर्जित नहीं हुआ है। लोकपाल और लोकायुक्त संस्थाओं को सशक्त बनाया जाना चाहिए, ताकि वे भ्रष्टाचार के मामलों की प्रभावी जांच कर सकें। इन संस्थाओं को स्वतंत्र रूप से काम करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए और सरकार के दबाव से मुक्त रहना चाहिए। सरकारी योजनाओं और परियोजनाओं के कार्यान्वयन में जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए। भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं के खिलाफ कठोर दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।

भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों को जागरूक करने के लिए व्यापक अभियान चलाए जाने चाहिए। यदि, जनता भ्रष्टाचार के प्रति संवेदनशील हो, तो वह ऐसे नेताओं और अधिकारियों के खिलाफ आवाज उठा सकती है, जो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। यदि, सरकार, राजनीतिक दल और जनता मिलकर प्रयास करें, तो इस समस्या से निपटा जा सकता है। चुनावी सुधार, पारदर्शिता और जवाबदेही की प्रक्रिया से राजनीति में भ्रष्टाचार को नियंत्रित किया जा सकता है। जब तक ये कदम प्रभावी रूप से लागू नहीं होते, तब तक भ्रष्टाचार का खतरा बना रहेगा।


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