पाक की मानसिकता को बताता है बुरहान वानी का महिमामंडन
पाकिस्तान पीएम नवाज शरीफ ने यूएन में दिए भाषण के दौरान जिस तरह हिलबुल आंतकी बुरहान वानी का महिमामंडन किया, वह खुलतौर पर इस बात को तथ्यपरक करता है कि पाकिस्तान न तो आंतक को बढ़ावा देना कम करने वाला है और न ही आंतकी मानसिकता से बाहर निकलना चाहता है। जिस प्रकार कश्मीर स्थित उरी सैन्य शिविर पर आंतकी हमले के बाद पूरी दुनिया में पाक की छिछालेदार हो रही है, उसके बाद भी यूएन की सभा में नवाज शरीफ का बुरहान वानी का महिमामंडन दुनिया को चौंकाता है। आखिर इस तरह कश्मीर और आंतकवादियों का राग अलाप कर पाकिस्तान क्या साबित करना चाहता है ? ऐसी स्थिति में भी जब चौतरफा पाक को कहा जा रहा है कि कश्मीर जैसे मुद्दे पर आपसी बातचीत को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव वान की-मून ने भी यही सलाह दी है कि कश्मीर मुद्दा आपसी बातचीत से सुलझाया जाए, लेकिन पाकिस्तान की नीयत में हमेशा से खोट रहा है। एक तरफ आपसी बातचीत की बात करता है और दूसरी तरफ आंतकवाद व क्रॉस बॉर्डर टेरिज्म को बढ़ावा देता है। क्या ऐसी स्थिति बातचीत का रास्ता खोल सकती है ? पाकिस्तान ने भारत की सहन करने की सीमाओं को तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। जिस तरह सोये हुए निहत्थ्ो सैनिकों पर हमला किया गया वह पीट में छुरा घोंपने से भी ज्यादा घातक कदम था। क्यों नहीं सामने से वार करता पाकिस्तान ? ऐसे आंतकवादियों के कंध्ो पर बंदूक रखकर कब तक अशांति फैलाई जाती रहेगी और भारत कब तक सहन करता रहेगा। पूरी दुनिया जब आंतक से लड़ने की बात कर रही है, ऐसे में पाकिस्तान द्बारा की जा रही हरकत दुनिया के उन देशों के मुंह में भी तमाचा नहीं है, जो देश आंतक के खिलाफ एकजुट होने में लगे हुए हैं ? गंभीर सवाल यह उठता है कि दुनिया भर में आंतकवाद की खिलाफत होने के बाद भी क्यों नहीं पाकिस्तान अपनी देश की धरती से संचालित होने वाले आंतकी शिविरों को बंद करता ? आंतकवादियों को सह देने की पाकिस्तान की कोशिश्ों कब तक जारी रहेंगी। अब समय इस बात की मांग करता है कि पाकिस्तान को हर तरफ से अलग-थलग किया जाए और जिस तरह के प्रयास चल रहे हैं उनमें पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करने में बिल्कुल भी देर नहीं लगानी चाहिए। पाकिस्तान की यह उम्मीद भी कभी पूरी नहीं हो सकती है कि दुनिया के देश कश्मीर मसले पर उसका साथ देंगे। आप किस नजरिए से मानवाधिकार उल्लंघन की बात कर रहे हो। ब्लूचिस्तान के कई उदाहरण दुनिया के समक्ष हैं, जहां सबसे ज्यादा मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है। पाकिस्तान के लिए जरूरी है कि वह पहले अपने गिरेबां में झांके। तभी उसकी आंतकी संगठनों को बढ़ावा देने की मानसिकता कम हो पाएगी। अगर,उसे दुनिया के साथ आगे बढ़ना है तो उसके लिए यह बेहद जरूरी है। परमाणु हथियारों की धमकी देना भी उसकी खराब मानसिकता को ही दर्शाता है। जब उरी हमले के सारे सबूत पाक की तरफ ईशारा कर रहे हैं तो वह किस मुंह से यह मानता है कि इस हमले में पाक का हाथ नहीं है। अगर, ऐसा है तो वह बौखलाया क्यों और जांच प्रक्रिया में भारत सरकार की मदद क्यों नहीं करता ?
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