भाई-बेटे की जंग में बेबस नजर आये सपा प्रमुख
कभी कदवर नेता माने जाने वाले सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव बेटे अखिलेश यादव और भाई शिवपाल यादव की लड़ाई के आगे बेवस ही नजर आए हैं। कई दिनों की गहमागहमी के बाद भी परिवार के बीच की लड़ाई के बहुत ज्यादा सार्थक परिणाम नहीं निकले हैं। कड़े निर्णय लेने में माहिर रहे नेता जी कई बड़ी अटकलों के बीच भी कोई ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाए, जिससे यह मान लिया जाए कि अब भविष्य की लकीर बेहद सरल और सीधी रहेगी। जो स्थिति बनी हुई है, उससे कहीं यह नहीं लगता है कि आने वाले समय में आम सहमति से ही काम होगा। चाहे सरकार हो या फिर पार्टी, कहीं भी टकराव की स्थिति नहीं दिख्ोगी।
जिस प्रकार मुलायम सिंह यादव ने अपना राजनीतिक कुनवा फैलाया हुआ है, उसमें इस तरह की स्थिति तो पैदा होनी ही थी। चाहे वह स्थिति आज पैदा हुई है या फिर भविष्य में पैदा होती। यह बात हर कोई मानता है, यहां तक कि मुलायम सिंह के साथ रहे उनके भाई शिवपाल सिंह यादव ने भी माना। जिस प्रकार की स्थितियां अभी सपा में बनी हुईं हैं, असल में यह स्थितियां किसी भी प्रकार से तात्कालिक नहीं मानी जा सकती हैं, क्योंकि लंबे समय के कसमाकस के बाद अब जाकर गुबार फूटा है, क्योंकि अब जल्द ही प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं। और कहीं-न-कहीं स्थिति को स्पष्ट करने का सभी पर मानसिक दबाब रहा होगा। क्योंकि, इसके पीछे पारिवारिक राजनीतिक प्रतिद्बंद्बिता सबसे बड़ा कारण है।
जब पिछली विधानसभा चुनाव के दौरान अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया गया, तो पार्टी के साथ परिवार के बहुत लोग खुश नहीं थ्ो। यह बात भी सामने आ चुकी है कि मुलायम सिंह स्वयं मुख्यमंत्री बनना चाहते थ्ो, लेकिन उनके ऊपर राजनीतिक विरासत सौंपने का भी भारी दबाब रहा था। लिहाजा, प्रोफेसर राम गोपाल यादव के सुझाव पर मुलायम सिंह ने अखिलेश यादव को सीएम पद के लिए प्रोजेक्ट किया, जबकि शिवपाल यादव अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाए जाने के पक्ष में बिलकुल भी नहीं थ्ो। वह स्वयं नेता जी को सीएम की कुर्सी पर बैठाना चाहते थ्ो। अखिलेश के मुख्यमंत्री रहने के दौरान मुलायम सिंह का दखल शासन में रहा। अधिकांश निर्णय उन्हीं के आदेश पर लिये जाते रहे। इससे यह बात समझना आसान हो जाता है कि कहीं-न-कहीं सीएम नहीं बनने की टीस स्वयं मुलायम सिंह यादव को भी रही। और शिवपाल यादव इस बात को लेकर कसमाकस में रहे होंगे कि चलो बड़े भाई के कहने पर पिछली बार अखिलेश को सीएम बनाया गया, लेकिन आगे की स्थिति तो साफ हो। जिस प्रकार सरकार और सरकार के बाहर अखिलेश की स्वीकार्यता बढ़ रही थी, कहीं-न-कहीं उससे शिवपाल यादव में असुरक्षा की भावना भी बढ़ी होगी, नतीजा पार्टी और सरकार में जो हालात आज पैदा हुए हैं, यह स्थिति उसी नतीजा है।
कुल मिलाकर मुलायम सिंह यादव के समक्ष पारिवारिक धर्मसंकट तो है, लेकिन सुलह के अलावा उन्हें अपनी राजनीतिक विरासत की कमान किसे देनी है, यह स्थिति भी साफ करनी चाहिए। यह बात स्पष्ट है कि अखिलेश को सीएम बनाकर उन्होंने इसके संकेत दे दिये थ्ो, लेकिन जिस तरह की प्रतिद्बंद्बिता दिख रही है, उसमें खुले तौर पर इस बात की जरूरत अवश्य है कि वह सभी रास्तों को स्पष्ट करें,जिससे भविष्य में परिवार के अंदर ही राजनीतिक प्रतिद्बंद्बिता न दिखने पाए। यह मुलायम सिंह यादव के बड़े राजनीतिक कुनवे के साथ-साथ पार्टी के लिए बेहतर होगा।
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