सपा : असली गड़बड़ी की नब्ज खोजें मुलायम



 अपने चाचा व हाल ही में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए शिवपाल यादव को कैबिनेट से बर्खास्त कर सीएम अखिलेश यादव ने बड़ा फैसला ले ही लिया। मीटिंग से पूर्व इस तरह के कयास बिल्कुल भी नहीं लगाए जा रहे थ्ो, बल्कि यही माना जा रहा था कि अखिलेश नई पार्टी का ऐलान कर चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। जिस प्रकार सीएम अखिलेश के भरोसमंद माने जाने वाले प्रोफेसर रामगोपाल यादव चुनाव आयोग के कार्यालय गए, नई पार्टी बनाए जाने की संभावनाएं तभी व्यक्त की जाने लगी थी। 
  रविवार को मीटिंग से पहले भी ऐसे कयास थ्ो कि सीएम प्रोगेसिव समाजवादी पार्टी(पीएसपी) का ऐलान कर सकते हैं और पार्टी का चुनाव चिन्ह मोटर साइकिल हो सकती है, लेकिन जिस तरह अखिलेश ने अपने चाचा शिवपाल सहित कई अन्य मंत्रियों को कैबिनेट से बर्खास्त किया, उससे यही साबित होता है कि बतौर सीएम अखिलेश किसी भी कोण से समझौता करने के मूड में नहीं हैं, क्योंकि पिछले कई दिनों से पार्टी के अंदर-बाहर जो स्थिति बन रही थी, वह सरकार के साथ-साथ पार्टी की छवि को भी खराब कर रही थी। और इसका सीधा असर आगामी विधानसभा चुनावों में देखने को मिलता। प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद शिवपाल और सीएम के तौर पर अखिलेश द्बारा लिए गए फैसलों के कई निहतार्थ भी निकलते हैं। इसमें परिवार की लड़ाई तो शामिल है ही, बल्कि राजनीतिक विरासत को लेकर प्रतिद्बंद्बिता भी साफ झलकती है, क्योंकि, दोनों ने पार्टी और सरकार के अंदर एक-दूसरे के समर्थकों को किनारे करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। शिवपाल को सरकार से बर्खास्त किये जाने के बाद सपा मुखिया मुलायम सिंह के समक्ष समस्या और भी गहरी हो गई है। दूसरा, जिस प्रकार अमर सिंह को लेकर मीटिंग में अखिलेश का रूख देखने को मिला, इससे ऐसा कतई नहीं लगता है कि प्रदेश के सबसे बड़े राजनीतिक घराने के बीच चल रहा घमासान अभी समा’ होने वाला है। निगाहे भले ही सोमवार यानि आज होने वाली मीटिंग पर टिक जाती हैं, लेकिन अपने चाचा को कैबिनेट से बर्खास्त करने वाले अखिलेश की छवि अवश्य मजबूत दिखती है, जो उन्हें आगामी चुनावों में फायदा देगी। जिस प्रकार अधिकांश विधायकों ने सीएम के फैसलों के प्रति अपना समर्थन जाहिर किया, उससे सरकार के साथ-साथ पार्टी के अंदर भी अखिलेश की अच्छी छवि भी स्पष्ट होती है। बशर्ते, पिछली बार की तरह मुलायम सिंह के दबाब में आकर अखिलेश अपने फैसलों को वापस लेने की गलती ना करें। 
  अगर, पार्टी को आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर संजीदगी दिखानी है तो ख्ोमेबाजी से काम नहीं चलेगा, बल्कि आपसी मतभ्ोद भुलाकर एकजुटता तो दिखानी ही होगी। तभी पार्टी की नैया पार लग सकती है। पर वर्तमान हालातों को कैसे आपसी सहमति में तब्दील किया जाएगा, यह देखने वाली बात होगी। ऐसे में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह का फैसला काफी अहम होगा। राजनीतिक तौर पर भले ही सहमति बनाने की कोशिश कामयाब हो जाए, लेकिन पारिवारिक राजनीतिक प्रतिद्बंद्बिता दूर करने की डगर अवश्य चुनौतीपूर्ण होगी। मुलायम सिंह इस चुनौती से कैसे निपटते हैं, यह देखना वाकई दिलचस्प होगा। 
  अब जब हालात ऐसे पैदा हो ही गए हैं तो उन्हें अब यह तय भी कर लेना चाहिए कि आखिर उनकी राजनीतिक विरासत का असली वारिश होगा कौन ? जब पिछली बार सीएम के तौर अखिलेश का चुनाव किया तो उसके बाद उन्हें स्वीकारने की गड़बड़ी कहां से हुई है, उस समस्या का समाधान भी खोजा जाना जरूरी लगता है, तभी पार्टी का हित भी है और परिवार का भी। 


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