विपरीत परिस्थितियों को मात देने का माद् ा रखती थीं 'अम्मा’
'अम्मा’ के नाम से मशहूर जयललिता का जाना तमिलनाडु ही नहीं पूरे देश के लिए एक झटका है। अपनी कदवर छवि के चलते वह प्रदेश ही नहीं राष्ट्रीय राजनीति की भी धूरी थीं, जिस प्रकार उन्होंने अभिनय के बाद राजनीति के शिखर को छुआ, वह अपने-आप में उनकी कदवर छवि के साथ-साथ उनके संघर्ष और लगनशीलता को भी प्रदर्शित करता है। यह सभी को पता होगा कि राजनीति में आने से पहले जयललिता एक लोकप्रिय अभिनेत्री भी थीं और उन्होंने तमिल, तेलुगू, कन्नड़ की फिल्मों के अलावा एक हिदी फिल्म 'इज्जत’ में भी काम किया।
24 फरवरी, 1948 को तमिल परिवार में जन्मी जयललिता ने बचपन से ही संघर्ष किया और मां की इच्छा के अनुसार फिल्मी दुनिया में कदम रखा। जिस तरह उन्होंने अभिनय के रूप में एक मुकाम को छुआ, उसी प्रकार राजनीति में भी तमाम उतार-चढ़ाव के बाद भी वह परिस्थितियों को मात देने में हमेशा सफल रहीं। चाहे पारिवारिक रूप से हो या फिर राजनीति का मैदान, उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा था, लेकिन उनमें हर समस्या से ऊपर उठने का माद्दा था। इसी का नतीजा रहा कि उन्होंने इस बार भी तमाम सर्वेक्षणों को धता बताते हुए तमिलनाडु में अपना परचम लहराया। उनकी कभी भी हार नहीं मानने की सोच ही उन्हें हमेशा एक अलग कतार में खड़े रखी थी। लिहाजा, वह सख्त के साथ सख्त तो और नरम के साथ नरमी से भी पेश आती थीं। तमिलनाडु में आम लोग उन्हें भगवान की तरह पूजते थ्ो, क्योंकि उन्होंने आम लोगों के लिए भी कई ऐसे कदम उठाये, जिसने हमेशा आम लोगों में उनकी स्वीकार्यता को बनाये रखा। प्रदेश के मुखिया के तौर पर कोई निर्याणक फैसला लेना हो या फिर पार्टी स्तर पर कोई राय बनानी हो, तो वह त्वरित फैसले लेने की क्षमता रखतीं थीं, यही वजह थी कि वह न केवल राजनीतिक प्रतिद्बंदियों के बीच एक अलग छवि रखती थीं, बल्कि नौकरशाही में भी उनकी जबरदस्त पैंठ थी।
आय से अधिक संपत्ति के मामले को अपवाद स्वरूप छोड़ दें तो उनका राजनीतिक करियर काफी शानदार रहा। करूणानिधि जैसे कदवर नेता को चुनावी मैदान में धूल चटाकर तमिलनाडु की सत्ता के शिखर पर पहुंचना उनके लिए आसान नहीं था, लेकिन उनकी करिश्माई छवि ने इस सबको आसान कर दिया और करूणानिधि से अधिक कदवर छवि वाली नेता बनकर उभरीं। बचपन में ही गरीबी से रूबरू हुईं जयललिता ने कभी हार नहीं मानी और जीवन के विपरीत परिस्थतियों ने उन्हें मजबूती प्रदान की। विषम परिस्थितियों में भी जयललिता ने खुद को तमिलनाडु की राजनीति और तमिल सिनेमा में स्थापित किया। वर्ष 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद सांत्वना के तौर पर पूरे भारत में कांग्रेस गठबंधन सरकार ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया। जयललिता ने भी भारी अंतर के साथ जीत दर्ज की। इन चुनावों के बाद वह राज्य की मुख्यमंत्री बनाई गईं। तमिलनाडु की अब तक की सबसे कम उम्र में मुख्यमंत्री बनने का खिताब भी जयललिता के ही नाम है।
रामचंद्रन के साथ उनकी नजदीकियों ने उन्हें राजनीति में स्थापित होने में काफी मदद की। वर्ष 1983 में जयललिता की नियुक्ति पार्टी के प्रचार सचिव के रूप में हुई। वर्ष 1984 में जयललिता राज्य सभा सांसद बनीं। पार्टी के संस्थापक रामचंद्रन के बीमार पड़ने के बाद जब वह इलाज कराने के लिए देश से बाहर चले गए तो जयललिता ने पार्टी में उनका स्थान ले लिया। उन्होंने कांग्रेस गठबंधन वाली एआईएडीएमके की अध्यक्षता की। वर्ष 1987 में रामचंद्रन की मृत्यु के पश्चात उनकी पार्टी दो भागों में बंट गई। पार्टी महासचिव होने के नाते वह वर्ष 1989 में तमिलनाडु के बोदिनायकनूर से राज्य विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव मैदान में उतरीं। इन चुनावों में जीतने के बाद वह राज्य विधानसभा की पहली नेता विपक्ष बनीं थी। बहरहाल, यह देखना दिलचस्प होगा कि 'अम्मा’ के जाने के बाद तमिलनाडु की सियासत किस दौर से गुजरती है।
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