क्या कतारों में ही जाया होता रहेगा समय ?
नोटबंदी के बाद दिख रही परेशानी कब खत्म होगी, इसका किसी को भी अंदाजा नहीं है। लोग अपने-अपने हिसाब से अनुमान लगा रहे हैं। सरकार का दावा था कि 5० दिन में स्थिति सामान्य कर देंगे। नोटबंदी को एक माह से भी अधिक समय हो गया है, लेकिन स्थिति में बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है। जिस तेवर के साथ सरकार ने नोटबंदी का ऐलान किया था, उसी अनुरूप इंतजाम भी किये जाने चाहिए थ्ो। आम लोग जहां बैंकों व एटीएम बूथों पर लाइन लगाए खड़े रहे हैं, वहीं जनप्रतिनिधि संसद नहीं चलने दे रहे हैं। कुल मिलाकर पूरा शीतकालीन सत्र विरोध की भ्ोंट चढ़ने को है। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवानी के बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी चिंता जता चुके हैं।
उन्होंने सुझाव दिया कि सांसदों को डिबेट में भाग लेना चाहिए। जनता ने उन्हें इसीलिए संसद नहीं भ्ोजा है कि वे अपने मूल फर्ज से पीछे हटें। वे बहस करें, विचारों से सहमत व असहमत होना उनका अधिकार है। जब आप चर्चा ही नहीं करोगे तो इसका कोई औचित्य नहीं बनता है, क्योंकि असल बात तो यह है कि इससे नेताओं को कोई नुकसान नहीं हो रहा है, बल्कि आम जनता को ही नुकसान हो रहा है। शुक्रवार को देश की सर्वोच्च अदालत भी केन्द्र से यह पूछने के लिए बाध्य हो गई कि आखिरकार स्थिति में कब सुधार होगा। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं और सरकार से नोटबंदी के चलते हो रही असुविधा को खत्म करने के लिए सलाह भी मांगी। कोर्ट ने साथ ही सरकार से पूछा कि स्थिति सामान्य होने में कितना वक्त लगेगा? हालांकि इस मामले में अगली सुनवाई आगामी 14 दिसंबर को होगी। स्थिति कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सरकार कुछ कह रही है और स्थिति कुछ और है।
यही बात सर्वोच्च अदालत ने भी पूछी। क्या सरकार को इस गैप को जल्द खत्म करने की जरूरत नहीं है ? जब सरकार स’ाह में 24 हजार निकासी की लिमिट बता रही है तो बैंक उससे क्यों बच रहे हैं? बैंक कैश को रोना रोते हुए कभी दो हजार तो कभी चार हजार रुपये थमा रहे हैं। अगर, आरबीआई की तरफ से रुपयों का प्रकाशन पर्या’ तौर पर किया जा रहा है तो वह रुपया जा कहां रहा है? बैंक किस स्तर पर धांधली कर रहे हैं। आम लोग परेशान हैं और बैंक कर्मचारी और अधिकारी धांधली पर उतरे हुए हैं। सरकार इस पर क्यों लगाम नहीं लगा रही है? जैसा कि अदालत का भी कहना था कि या तो सरकार लिमिट घटा दे, या फिर जो लिमिट बनाई गई है, उसे पूर्ण किया जाए। भले ही सरकार और आरबीआई अपनी तरफ से कोशिश कर रहे हों, लेकिन जिस प्रकार की धांधली नोटबंदी के बाद बैंकों में दिखी है, वह वाकई चिंताजनक है।
लोग कैश के लिए तरस रहे हैं। खाना-पीना, ड्यिूटी छोड़कर कतारों में खड़े होने को बाध्य हैं, ऐसे में बैंक वाले अपने चहेतों, प्रभावशाली लोगों को कैश देने के साथ-साथ कमीशनखोरी में जुटे हुए हैं। क्या सरकार इसको लेकर गंभीर है? क्या वह बैंक कर्मचारियों व अधिकारियों की मनमर्जी पर नकेल कसने के लिए कुछ कर रही है या फिर जो स्थिति चल रही है, वह आगे भी चलती रहेगी और आम आदमी का समय बस कतारों में ही जाया होता रहेगा।
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