क्या 'डेडलाइन’ तक सब 'नॉर्मल’ कर देगी सरकार ?
नोटबंदी का समय जैसे-जैसे आगे गुजर रहा है, लोगों की परेशानी उस अनुपात में कम नहीं हो पा रही है। इसके पीछे कुछ लोग सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं तो कुछ लोग बैंकों में चल रही मिलीभगत को इसका कारण मान रहे हैं, लेकिन धरातल पर जो स्थिति दिख रही है, उसमें तो बैंक अधिकारियों, कर्मचारियों व दलालों की सांठगांठ अधिक नजर आ रही है। जिस प्रकार कई बैंकों के मैनेजर व कर्मचारी पकड़े जा रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि सरकार अपने वादे के मुताबिक काम करने के लिए आतुर है, लेकिन असली परेशानी बैंकों में चल रहा गड़बड़झाला है, लिहाजा आम लोग परेशानी से जूझ रहे हैं।
हैरानी इस बात पर होती है कि सरकार की सख्ती के बाद भी बैंक उस पटरी पर चलने को बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं। इसका जो निचोड़ सामने आता है, उससे तो यही बात स्पष्ट होती है कि अगर, बैंक लिमिट के मुताबिक भी पैसा लोगों को दे देते तो निश्चित तौर पर बैंकों व एटीएम बूथों पर कतारें कम नजर आतीं, लेकिन लिमिट से बहुत कम कैश दिया जाना सबसे बड़ा परेशानी का कारण बना हुआ है। आलम यह है कि लोग अपनी ड्यिूटी को छोड़कर कतारों पर लगने के लिए बाध्य हो रहे हैं। बशर्ते, सरकार और रिजर्व बैंक अब अलर्ट दिखाई दे रहे हैं। जिस तरह बैंकों में स्टिंग करने की बात सामने आई है, उससे अब उम्मीद की जानी चाहिए कि बैंक प्रबंधक व कर्मचारी अपनी मनमौजी प्रवृत्ति से बाज आएंगे और आम लोगों को राहत मिल पाएगी। जिस तरह सरकार ने स्थिति सामान्य होने की डेडलाइन दी थी, उसका अब बहुत कम समय बचा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट भी लोगों की समस्याओं पर चिंता जता चुका है, तो ऐसे में सरकार के लिए स्थिति की गंभीरता को समझना बहुत जरूरी होगा। इससे बड़ी बात यह है कि जो बैंक अधिकारी व कर्मचारी गड़बड़झाले में शामिल हैं, सरकार उनसे भी सख्ती से निपटे, तभी एक सख्त संदेश भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों के बीच जाएगा और वे किसी मिलीभगत में शामिल होने से पहले दस बार सोचेंगे। कम ही समय के दौरान जो जालसाजी हुई है, सरकार को इस स्थिति का अनुमान पहले ही लगा लेना चाहिए था, अब वक्त काफी आगे निकल गया है। कम समय में सरकार को अपने निगरानी तंत्र को बहुत अधिक मजबूत करना होगा, जिससे बैंकों में जालसाजों का गैंग किसी भी रूप में घुसने न पाए। सरकार ने जिस तरह दावा किया था कि एटीएम्स को ठीक कर दिया जाएगा, लेकिन अभी 6० फीसदी से अधिक एटीएम खराब स्थिति में दिख रहे हैं।
अधिकांश लोग एटीएम बूथों पर निर्भर हैं, अगर, एटीएम्स भी ठीक हो जाते तो इतनी बड़ी परेशानी से लोगों को नहीं गुजरना पड़ता। एटीएम खराब पड़े हैं और बैंकों से छोटा-छोटा अमाउंट दिया जा रहा है, जिसकी वजह से लोग हर रोज कतारों में खड़ा होने के लिए बाध्य हैं। दूसरी तरफ, विपक्ष भी सरकार की इस कमी को पकड़ने चूक नहीं करना चाहती। चितंबरम से लेकर अन्य नेता, अब नोटबंदी को घोटाले का नाम देने में लगे हैं। ऐसे में सरकार को यह साबित करने में देर नहीं लगानी चाहिए कि यह घोटाला नहीं बल्कि एक परदर्शी कदम है, जिसका धनकुबेरों को नहीं बल्कि आम लोगों को फायदा पहुंचेगा। इससे बड़ी बात यह है कि कैश के फ्लो को तत्काल बढ़ाया जाए, जिससे आम लोगों को सरकार द्बारा दी गई डेडलाइन के तहत राहत मिलनी शुरू हो जाए।
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