उत्तराखंड : बीजेपी सरकार के समक्ष चुनौतियों का अंबार | Uttarakhand: Challenges before BJP government
जिन पांच राज्यों में अभी चुनाव हुए, उनमें उत्तर प्रदेश के बाद उत्तराखंड महत्वपूर्ण राज्य था। नये राज्य में अपेक्षाएं तो होती ही हैं, लेकिन उसी अनुरूप चुनौतियां भी होती हैं। हलिया वर्षों की स्थिति को देखा जाए तो अपेक्षाओं के अनुरूप जो चुनौतियां थीं, उनको उस रूप में लिया ही नहीं गया। लिहाजा, बदलाव के आदी पहाड़ के लोगों ने कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंकने में बिल्कुल भी संकोच नहीं किया। और पहाड़वासियों को नये राज्य का तोहफा देने वाले बीजेपी को एक फिर मौका दिया। यह सोचते हुए कि जिस पार्टी ने उन्हें राज्य का अस्तित्व दिया है, वह ही राज्य को मजबूती देने का काम भी करें। बशर्ते, त्रिवेंद्ग सिंह रावत के नेतृत्व वाली राज्य की नई सरकार इसमें कितना खरा उतर पाती है। कांग्रेस के प्रति जनता में कितना रोष था, यह परिणामों से सहज ही अंदाजा लगता है। यहां तक कि चुनावी सर्वे भी इसको भांपने में नाकामयाब साबित हुए। बीजेपी और कांग्रेस में करारी टक्कर की बात करने वाले विश्ोषज्ञ भी इस बात पर सोचते रहे कि आखिर क्या प्रदेश की जनता कांग्रेस सरकार से इतना पक गई थी? परिणामों से तो यही लगा कि वे बीजेपी की तरफ एकतरफा माइंड बनाकर चल रही थी। और हुआ भी वही कि बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला। कांग्रेस के लिए इससे करारी हार और क्या हो सकती थी कि स्वयं मुख्यमंत्री हरीश रावत तक अपनी दोनों में से एक सीट बचाने में भी कामयाब नहीं हो पाये। पुराने कांग्रेसी दिग्गज होने के बाद भी हरीश रावत शासनकाल में कांग्रेसी राजनीति के कल्चर में बदलाव दिखा नहीं। जोड़-तोड़, सरकार बचाने के लिए लेनदेन का रास्ता जनता के विश्वास को दगा देने वाला साबित हुआ। विकास के नाम पर कांग्रेस प्रदेश की जनता का खास ख्याल नहीं पाई। चाहे वह प्रदेश का नाम बदलने वाला मुद्दा ही क्यों न रहा हो। कांग्रेसी शासनकाल के दौरान राज्य को उत्तरांचल से उत्तरांखड नाम दिये जाने की जिद् से महज राज्य पर आर्थिक दबाब ही बढ़ा। प्रदेश के लिए जरूरी संसाधनों को जुटाने के बजाय कांग्रेस अपनी जिद के अनुरूप काम करती रही। जिस प्रदेश में विकास के अलावा दूसरा कोई मुद्दा नहीं होना चाहिए था, क्या वहां इस तरह की जिद् सही थी।
एकबारीकी देखा जाए तो कांग्रेस के पास जनता को लुभाने के लिए कोई भी ठोस मुद्दा ही नहीं था। मौलिक मुद्दों को लेकर न तो बात हुई और न ही कांग्रेसी शासन ने इस पर कोई गहराई से काम किया। घूस, घोटालों, शराब के ठेकों का आवंटन चलता रहा। सरकार को बचाने के लिए करोड़ों रुपए के लेन-देन की बात होती रही। उत्तराखंड के समक्ष आज रोजगार बढ़ा सवाल है। आज ही नहीं बल्कि यह सवाल पहले से ही जटिल रहा है। मसलन, गांवों तक सड़कें, बिजली, पानी की व्यवस्था होने के बाद भी लोगों का पलायन नहीं रूक रहा है। उनके लिए रोजगार कहां हैं ? क्या सरकार इस क्ष्ोत्र में कोई काम कर पाई? हलिया वर्षों में लोगों के पलायन औसतन घटा नहीं हैं। कई गांव खाली हो गये हैं। सरकार इसके कारणों की तह तक क्यों नहीं जा सकी? सच्चाई तो यही है अगर, इन बारीक मुद्दों को लेकर सरकार ने काम किया होता तो प्रदेश की जनता कांग्रेसी सरकार को शर्मनाक तरीके से उखाड़ नहीं फेंकती।
कांग्रेस की असफलता ही उत्तराखंड में बीजेपी की जीत का मुख्य फैक्टर रहा। ऐसे कारण, जिनको लेकर पहाड़ की जनता लिए बैठी थी, उन्हें पीएम मोदी ने हाथों-हाथ लिया। उनका जनता के बीच इन मुद्दों को रखने का तरीका भी इतना प्रभावशाली था कि प्रदेश की अधिकांश जनता ने कांग्रेस के खाते में वोट देने की बिल्कुल भी गलती नहीं की। पीएम मोदी का वह जुमला, जिसमें उन्होंने कहा-पहाड़ में तो डबल इंजन की सरकार ही चल सकती है। इस जुमले को पहाड़ के लोगों ने हाथों-हाथ लिया। पीएम मोदी राज्य की जनता को यह बताने में कामयाब हुए कि एक इंजन अगर केन्द्ग में है तो दूसरा इंजन राज्य में होना चाहिए। यानि केन्द्ग में अगर, बीजेपी की सरकार है तो राज्य में भी बीजेपी की ही सरकार होनी चाहिए, तभी राज्य की तस्वीर बदल सकती है और पहाड़ों में रहने वाले लोगों के जीवन में तभी मौलिक बदलाव देखने को मिल सकता है। उन्हें उन मूलभूत समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है, जिसके लिए वे पहले भी लड़ते थ्ो और आज भी लड़ रहे हैं। अब इस बात की उम्मीद तो की ही जानी चाहिए कि बीजेपी की जीत का फायदा प्रदेश की जनता को मिले। कम-से-कम केन्द्ग से आर्थिक सहायता मिलने में दिक्कत तो नहीं होगी। और विशेष राज्य का दर्जा देने की कोशिश्ों भी कारगर साबित हो पाएंगी।
ऑल वेदर रोड का मामला हो या फिर पहाड़ों में रेल नेटवर्क को स्थापित करने की बात, ऐसी परियोजनाओं को भी धरातल पर लाने में आसानी होगी। दूर-दराज बसे गांवों तक सड़क नेटवर्क को स्थापित करना भी बीजेपी सरकार के लिए प्राथमिकता में रहेगा, क्योंकि पार्टी वादा कर चुकी है कि 2०19 तक प्रदेश के हर गांव तक सड़क नेटवर्क को स्थापित किया जायेगा। भले ही इसके लिए सरकार के समक्ष कड़ी चुनौती रहेगी, लेकिन 2०19 में होने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर इस नेटवर्क को स्थापित करने का भारी दबाव भी केन्द्ग सरकार के ऊपर रहेगा। ये ऐसे तमाम मुद्दे रहेंगे, जिनके आधार पर ही बीजेपी मतदाताओं के बीच जाकर वोट मांग सकेगी। जहां तक प्रदेश सरकार की बात है, उसे भी बेहद सर्तकता से काम करना होगा। भ्रष्टाचार पुलिस-प्रशासन की जड़ तक घुसता जा रहा है, उसको लेकर भी रावत सरकार से अपेक्षाएं की जानी चाहिए। नये राज्य में इस तरह के कल्चर को बिल्कुल भी बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए। स्वस्थ्य शासनप्रणाली को लेकर सरकार को कारगर कदम उठाने होंगे। लाल फीताशाही से नीचे उतरकर विधायकों व मंत्रियों को सीध्ो आमजनता से संवाद रखना होगा। उनकी समस्याओं को सुनने व उनके निस्तारण को लेकर सर्तकता बरतनी होगी। अफसरशाही पर इस बात के लिए नकेल कसनी होगी कि वे जनता के प्रति जबाबदेह रहें। प्रदेश की अधिकांश जनता आज भी अशिक्षित है।
लिहाजा, शिक्षा के स्तर को किस तरह से बढ़ाया जा सकता है। सरकारी स्कूलों की मनमानी को खत्म कर शिक्षा की गुणवत्ता को कैसे बढ़ाया जा सकता है, सरकार इस तरफ विश्ोष ध्यान दे। सबसे बड़ी बात यह है कि इस तरह की स्वस्थ परिपाटी तब जन्म लेगी, जब ग्रामीणों के बीच जागरूकता को बढ़ावा दिया जायेगा। वे अपने बच्चों की शिक्षा की तरफ ध्यान दें। उनके सपने भी पंख फैलाएं कि हां पढ़ने-लिखने के बाद उनके बच्चों को बेहतर रोजगार मिलेगा। इसके लिए सरकार की कोशिश यह होनी चाहिए कि रोजगार सृजन के लिए व्यापक उपायों पर काम किया जाये, जिससे पहाड़ खुशहाल होगा और पलायन पर भी रोक लग सकेगी। प्रचंड जीत के अहम से ऊपर उठकर सरकार को धरातल की उक्त सभी बारीकियों को करीब से जानना होगा, तभी जनता का भला हो पाएगा। जनता को भी लगेगा कि उसने सरकार चुनने में कोई भी गलती नहीं की है।
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