हाथ मिलाने से नहीं, जनता का विश्वास जीतने से रूकेगा विजयरथ


   भारतीय जनता पार्टी के विजय रथ को रोकने का बीएसपी हर संभव प्रयास करने का मन बना चुकी है। यहां तक कि उन्हें अब बीजेपी का विजय रथ रोकने के लिए किसी से भी हाथ मिलाना गंवारा नहीं है। शुक्रवार को डा. भीम राव अंबेडकर की 126वीं जन्म तिथि पर मायावती ने इस बात की घोषणा भी कर दी। मायावती के ऐलान से कहीं-न-कहीं इस बात के जरूत संकेत मिलते हैं कि आने वाले समय में देश की राजनीति अवश्य करवट लेगी, लेकिन वह करवट किस रूप में होगी, फिलहाल इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है, क्योंकि बीजेपी कहें या फिर मोदी, की ऐसी हवा चल रही है, उसमें अन्य पार्टियां कहीं भी नजर नहीं आ रही हैं। अब यहां यह सवाल उठता है कि क्या विपक्षी पार्टियों की तैयारी रंग ला पायेगी ? इस नजरिये से देखा जाए तो 2०19 का लोकसभा चुनाव काफी महत्वपूर्ण रहेगा। 
  एंटी बीजेपी पार्टियों का भी यही मकसद होगा कि वे मिशन-2०19 में बीजेपी के खिलाफ कोई-न-कोई ऐसा मंच तैयार करें, जिससे बीजेपी के विजयरथ का ध्वस्त किया जा सके। मायावती बीजेपी की घोर विरोधी रहीं हैं। भले ही वह यूपी में एक बार बीजेपी से हाथ मिला चुकी हैं, लेकिन आपसी खींचतान के चलते दोनों पार्टियों के बीच की नजदीकी फिर से दूरी में बदल गई। अभी हलिया चुनावों में जिस तरह की स्थिति देखने को मिली है, उसने तो बीजेपी और बसपा के बीच की स्थिति को और भी खराब कर दिया है। खासकर, ईवीएम मशीनों के साथ छेड़छाड़ का सबसे पहला मुद्दा मायावती ने ही उठाया। यूपी में जिस तरह के परिणाम सामने आए, उनमें कहीं भी ऐसा नहीं लगा था कि बीजेपी की हवा इतनी गहरी होगी। जिस प्रकार बीजेपी के खाते में सीटें गईं, उससे तो मायावती आग बबूला हो गईं। उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि उन्हें महज 19 सीटों पर ही संतोष करना पड़ेगा। स्वयं को राष्ट्रीय पार्टी बताने की हैसियत रखने वाली मायावती के समक्ष अब राज्यसभा में भी अपना स्थान बरकरार रखने के लिए सोचना पड़ रहा है। चुनाव परिणामों के तत्काल बाद ही मायावती ने ईवीएम के तहत वोटिंग पर सवाल खड़े किये थ्ो। वह अब यह मानने को तैयार हो गईं हैं कि उन्हें बीजेपी और ईवीएम से छेड़छाड़ के खिलाफ संघर्ष के लिए बीजेपी विरोधी दलों की मदद लेने में कोई आपत्ति नहीं है। मायावती ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश की 4०3 में से 25० सीटों पर ईवीएम से छेड़छाड़ की। 
  लोक सभा चुनाव के बाद भी एंटी बीजेपी दल एक साथ आए थ्ो, लेकिन उन्हें बहुत अधिक सफलता नहीं मिली। हालांकि, तब बसपा ने इस संबंध में कोई घोषणा नहीं की थी। ऐसे में अब मायावती इस नतीजे पर पहुंच ही गई हैं कि उनकी साख तभी बच सकती है, जब वह किसी न किसी पार्टी से हाथ मिलाएंगी। अपनी हठ को छोड़कर अन्य पार्टियों के साथ कदमताल करेंगी। कुल मिलाकर अभी से भविष्य का आंकलन नहीं किया जा सकता है, क्योंकि जनता से भारी जनसमर्थन मिलने की वजह से बीजेपी जीतोड़ काम करने की जुगत में लगी हुई है, ऐसे में एंटी बीजेपी दलों के समक्ष आगे भी चुनौती आसान नहीं होगी। यहां इतना जानना जरूरी है कि महज, हाथ मिलाने से नहीं, बल्कि जनता का विश्वास जीतने से ही बीजेपी के विजयरथ को रोका जा सकता है।

 

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