किसी परिस्थितिजन्य कदम का विरोध क्यों ?
भारतीय सेना ने कश्मीर में एक व्यक्ति को मानव ढाल के तौर पर इस्तेमाल करने वाले मेजर नितिन गोगोई को सम्मानित किया है। जब मेजर ने एक युवक को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया, तब भी वह काफी चर्चा में आये थ्ो। ज्यादातर लोगों ने उन्हें आलोचना का शिकार ही बनाया। कहा गया कि उन्होंने मानवाधिकारों का हनन किया है। ऐसी कोशिश्ों नहीं की जानी चाहिए। व्यापक आलोचना के बाद जब सेना ने उन्हें सम्मानित किया है तो उसके मायने साफ तौर पर दिखाए देते हैं। जैसा कि सेना प्रमुख बिपिन रावत ने भी इस बात को स्वीकार किया कि जिन विपरीत परिस्थितियों में सेना के जवान कश्मीर घाटी में काम करते हैं, ऐसे में, उनका प्रोत्साहन बहुत जरूरी है।
इससे साफ जाहिर भी होता है कि सेना की तरफ से मामले में जो जांच चल रही है, उसके तहत भी कोई सख्त कार्रवाई मेजर के खिलाफ नहीं की जाएगी। अगर, परिस्थितियों के परिपेक्ष्य में देखा जाए तो सेना के जवानों को आक्रोशित भीड़ को शांत करने के लिए कोई न कोई ऐसा कदम उठाना ही था। अगर, मेजर के तात्कालिक फैसले से सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं तो उनकी आलोचना जायज नहीं मानी जा सकती है। जैसा कि उन्होंने स्वयं माना है कि अगर, वह फायरिंग का आदेश दे देते तो कम-से-कम 12 लोगों की जान जा सकती थी, ऐसे में उन्हें आक्रोशित भीड़ को शांत करने के लिए युवक को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल करना ही उचित लगा। उसके बाद की स्थितियां सबके सामने हैं। मानवाधिकार संगठनों द्बारा भले ही इसे मानवाधिकारों का हनन माना गया हो, लेकिन सेना प्रमुख ने इसे मेजर का बेहतर कदम बताया। कश्मीर घाटी में सेना के जवानों के लिए काम करना आसान नहीं है। वहां सबसे बड़ी समस्या है उग्रवादियों और आमजन के बीच पहचान कर पाना। ऐसे में, सेना के लिए वहां शांति बहाल करना काफी चुनौतीपूर्ण है। सेना जिन आम लोगों की सुरक्षा के लिए वहां तैनात है और उन्हीं में से बहुत से लोग सेना पर ही पत्थरबाजी करने लगें तो निश्चित तौर पर चुनौती और भी बढ़ जाती है। लिहाजा, सेना के सामने भ्रम की स्थिति पैदा होने लगती है। जिस तरह वहां सेना का विरोध हो रहा है।
पाकिस्तानी घुसपैठी जनता को ढाल बनाकर सेना पर हमला कर रहे हैं और कश्मीर घाटी की जनता ही पत्थरबाजी पर उतर आई हो, ऐसे में शांति की कामना नहीं की जा सकती है और हर वक्त सेना भी फायरिंग या फिर किसी भी प्रकार के हमले नहीं कर सकती है, क्योंकि ऐसे हमलों में अक्सर आम व निर्दोष लोग ही मारे जाते हैं। ऐसे में, अगर सेना के किसी अधिकारी ने प्रयोग के तौर आक्रोश को मानव ढाल की तरकीब निकाली है तो उसको गलत नहीं माना जा सकता है, जबकि उसके बेहतर परिणाम भी सामने आए हैं। अगर, वहां सेना आम लोगों की सुरक्षा के लिए तैनात है तो जनता को भी सेना का साथ देना चाहिए , न कि घुसपैठियों के बहकावे में आकर सेना के खिलाफ ही अभियान छेड़ना चाहिए। इसमें न सभी तरह से हानि होती है। अगर, सेना के किसी जवान ने बिना फायरिंग के ही किसी प्रयोग से आक्रोश कम कराया तो उसकी तारीफ होनी चाहिए।
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