विकास की दौड़ में कब शामिल होगा किसान ?
मध्यप्रदेश के बाद महाराष्ट्र में भी किसान आंदोलन ने आग पकड़ ली है। यहां ठाणे-बदलापुर हाइवे पर किसानों का आंदोलन हिसक हो गया। किसान अपनी जमीन के अधिग्रहण को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। किसानों का आरोप है कि रक्षा मंत्रालय ने उनकी जमीन का अधिग्रहण कर लिया और उसके लिए गांववालों की मंजूरी नहीं ली गई है। सरकार यह अधिग्रहण जोर-जबरदस्ती कर रही है, इससे पहले किसानों ने शांतिपूर्वक तरीके से विरोध प्रदर्शन किया, लेकिन गुरुवार को यह आंदोलन हिसक हो गया।
हिसक आंदोलन को शांत करवाने के लिए मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने किसानों का 3० हजार करोड़ का कर्ज माफ करने की घोषणा की थी, इसका असर तो बाद में समझ आएगा, लेकिन इन स्थितियों में कई सवाल खड़े होते हैं। पहला तो यह कि क्या किसानों को बेहाल करना सरकारों की नियति बन गई है? अगर, ऐसा नहीं है तो देश का किसान इतना क्यों कराहता ? क्यों अपने दर्द को सड़क पर आकर बयां करता ? सरकारों की मनमर्जी से भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया महज महाराष्ट्र में सामने नहीं आई है, देश के अधिकांश हिस्सों में इस तरह की घटनाएं हुईं हैं। नोएडा-ग्रेटर नोएडा में भी इसके कई उदाहरण सामने आ चुके हैं। किसान लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन सरकारें बिल्डरों से मिलीभगत कर मोटा पैसा अर्जित कर रही हैं, जबकि किसानों से या तो सस्ते में जमीन ले ली जाती है या फिर उसकी जमीन का जबरदस्ती अधिग्रहण कर लिया जाता है।
देश में इस तरह की परंपरा अच्छी नहीं है, क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है। अगर, केंद्र सरकार यह बोलने लगे कि देश विकास की राह में आगे बढ़ रहा है तो तनिक यह अवश्य सोचना पड़ेगा कि अगर, हम विकास की अंधी दौड़ में शामिल हैं तो हमारा अन्नदाता क्यों कराह रहा है। उसकी पीड़ा सरकार के नुमांइदों तक क्यों नहीं पहुंच रही है? इसके बाद भी आप कहते हैं कि नहीं हम दुनिया में तेजी से उभरते हुए देश हैं, हमारी अर्थव्यवस्था तेजी से ग्रो कर रही हैं, इसके मायने तब तक अच्छे नहीं समझे जा सकते हैं, जब तक देश के किसान को उसकी मेहनत का उचित दाम नहीं मिलेगा। चुनावी महासंग्राम में जिस तरह किसानों के मामले में नेता गला फाड़-फाड़कर यह चिल्लाते हैं कि हम किसानों को फायदा देंगे, उनकी जमीनों का मनमर्जी से अधिग्रहण नहीं करेंगे, लेकिन आजादी के बाद जो स्थिति अभी किसानों की है, वह पहले इतनी खराब नहीं थी।
पीएम नरेन्द्र मोदी ने भी जिस तरह अपने चुनावी दौरों में किसानों को लेकर बड़े-बड़े वादे किए थ्ो, उन वादों का क्या हुआ ? मध्यप्रदेश से लेकर महाराष्ट्र में किसान सड़कों में पुलिस की गोलियां और लाठियां खाने को मजबूर हैं, लेकिन राज्य सरकारें क्या कर रही हैं ? केंद्र सरकार क्या कर रही है। यहां तक कि केंद्र सरकार किसानों को उसकी फसल का उचित समर्थन मूल्य तक देने के लिए राजी नहीं हुई है। ऐसे में किसान, रोएगा, चिल्लाएगा नहीं तो और क्या करेगा। अगर, सरकार यह मानती है कि भारत तेजी से विकास कर रहा है तो उसे उस विकास में देश के किसान को भी शामिल करना होगा, तभी विकास के मायने समझ में आएंगे।
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