एनजीटी के आदेश को सख्ती से लें सरकारें
पवित्र गंगा को साफ-सुथरा करने को लेकर लंबे समय से मुहिम चल रही है। केंद्र सरकार भी इस पहल के साथ व्यापक तौर पर काम करने में लगी हुई है, लेकिन ऐसे लोग भी कम नहीं हैं, जो सरकार की मुहिम को पलीता लगा देते हैं। इसका परिणाम यह रहता है कि जितनी तेजी से मुहिम के सार्थक परिणाम सामने दिखने चाहिए, वे दिख नहीं पाते हैं, लेकिन अब ऐसा लगता है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(एनजीटी) के आदेश से इस मामले में सार्थक परिणाम देखने को अवश्य मिलें।
असल में, एनजीटी ने जिस लहजे में यह कहा है कि हरिद्बार से उन्नाव के बीच बह रही गंगा में कचरा फेंकने पर 5० हजार रुपए का जुर्माना देना पड़ेगा, उससे लोगों में यह खौफ अवश्य रहेगा कि पवित्र गंगा में कचरा बहाना अब आसान नहीं होगा। एनजीटी ने नदी के आसपास के 1०० मीटर के दायरे को 'नो डिवेलपमेंट जोन’ घोषित कर दिया है, यानि इसके आसपास कोई निर्माण कार्य नहीं किया जा सकता। इस मामले में यूपी और उत्तराखंड, दोनों ही राज्यों की सरकारों को सक्रियता दिखानी होगी। एनजीटी और सरकारें समय-समय पर यह कहती रही हैं कि गंगा के आसपास गंदगी नहीं फैलाई जाए, लेकिन ऐसे में सवाल उठता है क्या लोगों को भी यह समझने की जरूरत नहीं है कि जिस गंगा को हम सबसे अधिक पवित्र मानते हैं, उसमें हम कचरा न फेंके? क्या गंगा की सफाई में हम इतना भर योगदान न कर सकते कि उसमें किसी प्रकार का कचरा न बहाया जाए? निश्चित तौर पर तब हमारी आस्था के सार्थक परिणाम दिख्ोंगे।
एनजीटी ने जिस प्रकार सख्ती दिखाई है, अब उसी अनुरूप उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की सरकारों को तत्काल नदियों के घाटों में होने वाले धार्मिक क्रियाकलापों के लिए जितनी जल्दी हो दिशा-निर्देश बना देने चाहिए, जिससे एक व्यवस्था के तहत धार्मिक क्रिया-कलापों को संपन्न कराया जा सके। दूसरा, जो उत्तर प्रदेश सरकार के लिए महत्वपूर्ण है, वह है नदी के आसपास चल रहे चमड़े के कारखानों को एनजीटी द्बारा दिए गए समयवाधि में दूसरी जगह शिफ्ट किया जाए। यहां बता दें कि एनजीटी ने इसके लिए छह स’ाह का समय दिया है। जाहिर है यह एनजीटी ने सख्त निर्णय है। क्या एनजीटी के दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन होगा? यह सख्त निर्णय के साथ एक बड़ा सवाल भी है। अक्सर, नियम-कानून बना तो दिए जाते हैं। कई मामलों में पहले भी एनजीटी सख्त निर्देश देती रही है, लेकिन धरातल पर शासन व प्रशासन स्तर पर कड़े कदम नहीं उठाए गए। नतीजा यह हो रहा है कि कंक्रीट के जंगलों के बीच से हरियाली काफूर हो रही है।
इसके लिए जरूरी है कि अगर, एनजीटी पर्यावरण व गंगा की पवित्रता को लेकर सख्त है तो निश्चित तौर पर उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की सरकार को भी सख्ती दिखानी होगी, तभी लोग गंगा को प्रदूषित करने हिम्मत कम दिखा पाएंगे। सरकारों को इसके एक अन्य पहलू पर भी काम करना चाहिए। वह पहलू है व्यापक प्रचार-प्रसार। लोगों में जागरूकता जरूरी है कि जिस गंगा के प्रति उनमें जितनी आस्था, वह आस्था उसकी सफाई में लगाई जाएगी। तभी पवित्र गंगा की धारा शहरों में भी उसकी अविरल और निर्मल धारा की तरह लगेगी, जिस प्रकार वह गंगोत्री से उतरते वक्त लगती है।
इसके लिए जरूरी है कि अगर, एनजीटी पर्यावरण व गंगा की पवित्रता को लेकर सख्त है तो निश्चित तौर पर उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की सरकार को भी सख्ती दिखानी होगी, तभी लोग गंगा को प्रदूषित करने हिम्मत कम दिखा पाएंगे। सरकारों को इसके एक अन्य पहलू पर भी काम करना चाहिए। वह पहलू है व्यापक प्रचार-प्रसार। लोगों में जागरूकता जरूरी है कि जिस गंगा के प्रति उनमें जितनी आस्था, वह आस्था उसकी सफाई में लगाई जाएगी। तभी पवित्र गंगा की धारा शहरों में भी उसकी अविरल और निर्मल धारा की तरह लगेगी, जिस प्रकार वह गंगोत्री से उतरते वक्त लगती है।
Post a Comment