जर्जर रेल नेटवर्क को सुधारे सरकार
मुजफ्फरनगर ट्रेन हादसे के बाद रेलवे के कई कर्मचारियों व अधिकारियों पर गाज गिरी है। भले ही सरकार और रेलवे यह मानकर चले कि कर्मचारियों व अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने से इतिश्री हो गई है तो यह काफी नहीं है। रेलवे की जो हालत है, उससे तो लगता है कि सरकार पटल पर कम और रेलवे की दशा सुधारने को लेकर हवाबाजी ज्यादा कर रही है। यहां यह सवाल उठना लाजिमी है कि अगर, सरकार ट्रेन की दशा सुधारने की तरफ कोई ठोस कदम उठाती तो निश्चिततौर पर उसके परिणाम भी सामने दिखते।
पिछले तीन वर्षों में जिस तरह एक के बाद एक हादसे होते जा रहे हैं, उससे तो लगता है कि अभी तक सरकार यह भी नहीं देख पाई कि हादसे हो क्यों रहे हैं। ऐसे हादसों से निपटने के लिए क्या सरकार ने कोई कदम उठाए हैं। हादसों के पीछे जिस तरह के कारण सामने आते हैं, उससे तो लगता है कि रेलवे की लापरवाही की वजह से कई मासूम लोग इन हादसों में अपनी जान गंवा रहे हैं। यह देश की बदकिस्मती है कि इन हादसों के बाद तमाम जांच कमेटियां तो बैठा दी जाती हैं, लेकिन उसके परिणामों में कुछ भी ऐसी चीजें सामने नहीं आती हैं, जिससे यह माना जाए कि हां हादसों के पीछे बड़े ठोस कारण थ्ो। अगर, छोटी-सी लापरवाहियों के चलते इस तरह के हादसे होते हैं तो निश्चित तौर पर देश के यह बहुत ही चिंताजनक बात है, जब सरकार बुलेट ट्रेन का दम भर रही है। लोग इसीलिए पूछ रहे हैं कि क्या जब आम रेलवे को सुधारने के कड़े इंतजाम नहीं हो पा रहे हैं तो बुलेट ट्रेन के नेटवर्क को कैसे सुधारा जा सकेगा।
केंद्ग में मोदी सरकार आने के बाद रेलवे में कोर्इ बड़ा आमूल-चूल परिवर्तन देखने को नहीं मिला है। जब से मोदी सरकार केंद्र में है, आठ बड़े ट्रेन हादसे हो चुके हैं, लेकिन एक के बाद एक हादसे के बाद भी अगर, सरकार नहीं चेत रही है तो यह बहुत से सवाल खड़े करती है। जिस पर केंद्र सरकार को सोचने की जरूरत है। हादसों पर गौर फरमाएं तो अभी जो हादसा हुआ वह मुजफ्फनगर में खतौली के पास हुआ, जिसमें 32 लोगों के मारे जाने की खबर है, जबकि 2०० यात्री घायल बताए जा रहे हैं। इससे पहले पिछले साल 2० नवंबर को कानपुर के पास पुखरायां में रेल हादसा हुआ था, जिसमें 15० लोगों की मौत हो गई थी और 2०० घायल हुए थे। पिछले साल 25 जुलाई को भदोही में मडुआडीह-इलाहाबाद पैसेंजर ट्रेन से एक स्कूल वैन टकरा गई थी, जिसमें सात बच्चों की जान चली गई थी।
2० मार्च 2०15 को देहरादून से वाराणसी जा रही जनता एक्सप्रेस पटरी से उतर गई थी। इस दुर्घटना में 34 लोग मारे गए थे। साल 2०15 में कौशांबी जिले के सिराथू रेलवे स्टेशन के पास मुरी एक्सप्रेस दुर्घटना का शिकार हो गई थी, इसमें 25 यात्री मारे गए थे और 3०० घायल हो गए थे। वर्ष 2०15 में ही मध्य प्रदेश के हरदा के पास 1० मिनट के अंदर दो ट्रेनें दुर्घटनाग्रस्त हो गईं। जिसमें इटारसी-मुंबई रेलवे ट्रैक पर मुंबई-वाराणसी कामायनी एक्सप्रेस और पटना-मुंबई जनता एक्सप्रेस पटरी से उतर गईं। पटरी धंसने से यह हादसा हुआ था। इस दुर्घटना में 31 मौतें हुई थीं। 26 मई 2०14 को संत कबीर नगर के चुरेन रेलवे स्टेशन के पास गोरखधाम एक्सप्रेस और मालगाड़ी में भिड़ंत हुई थी, इस दुर्घटना में 22 लोगों की मौत हुई थी। 2०14 में महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में ट्रेन का इंजन और 6 डिब्बे पटरी से उतर गए थे। इस हादसे में 2० लोगों की मौत हुई थी और 124 घायल हो गए थे।
उत्कल एक्सप्रेस हादसे’ सहित पिछले पांच सालों में देश में 586 रेल दुर्घटनाएं चुकी हैं। इन 586 रेल हादसों में से करीब 53 फीसदी घटनाएं ट्रेन के पटरी से उतरने के कारण हुई हैं। ऐसे में, सवाल उठता है कि आखिर कब तक ट्रेन पटरी से उतरती रहेगी। सरकार को कोशिश चाहिए कि बुलेट ट्रेन को चलाने से पहले आम रेलवे के ट्रैक को सुधारा जाए, तभी यह माना जा सकता है कि मोदी सरकार में वास्तव में काया पलट हो रहा है।
केंद्ग में मोदी सरकार आने के बाद रेलवे में कोर्इ बड़ा आमूल-चूल परिवर्तन देखने को नहीं मिला है। जब से मोदी सरकार केंद्र में है, आठ बड़े ट्रेन हादसे हो चुके हैं, लेकिन एक के बाद एक हादसे के बाद भी अगर, सरकार नहीं चेत रही है तो यह बहुत से सवाल खड़े करती है। जिस पर केंद्र सरकार को सोचने की जरूरत है। हादसों पर गौर फरमाएं तो अभी जो हादसा हुआ वह मुजफ्फनगर में खतौली के पास हुआ, जिसमें 32 लोगों के मारे जाने की खबर है, जबकि 2०० यात्री घायल बताए जा रहे हैं। इससे पहले पिछले साल 2० नवंबर को कानपुर के पास पुखरायां में रेल हादसा हुआ था, जिसमें 15० लोगों की मौत हो गई थी और 2०० घायल हुए थे। पिछले साल 25 जुलाई को भदोही में मडुआडीह-इलाहाबाद पैसेंजर ट्रेन से एक स्कूल वैन टकरा गई थी, जिसमें सात बच्चों की जान चली गई थी।
2० मार्च 2०15 को देहरादून से वाराणसी जा रही जनता एक्सप्रेस पटरी से उतर गई थी। इस दुर्घटना में 34 लोग मारे गए थे। साल 2०15 में कौशांबी जिले के सिराथू रेलवे स्टेशन के पास मुरी एक्सप्रेस दुर्घटना का शिकार हो गई थी, इसमें 25 यात्री मारे गए थे और 3०० घायल हो गए थे। वर्ष 2०15 में ही मध्य प्रदेश के हरदा के पास 1० मिनट के अंदर दो ट्रेनें दुर्घटनाग्रस्त हो गईं। जिसमें इटारसी-मुंबई रेलवे ट्रैक पर मुंबई-वाराणसी कामायनी एक्सप्रेस और पटना-मुंबई जनता एक्सप्रेस पटरी से उतर गईं। पटरी धंसने से यह हादसा हुआ था। इस दुर्घटना में 31 मौतें हुई थीं। 26 मई 2०14 को संत कबीर नगर के चुरेन रेलवे स्टेशन के पास गोरखधाम एक्सप्रेस और मालगाड़ी में भिड़ंत हुई थी, इस दुर्घटना में 22 लोगों की मौत हुई थी। 2०14 में महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में ट्रेन का इंजन और 6 डिब्बे पटरी से उतर गए थे। इस हादसे में 2० लोगों की मौत हुई थी और 124 घायल हो गए थे।
उत्कल एक्सप्रेस हादसे’ सहित पिछले पांच सालों में देश में 586 रेल दुर्घटनाएं चुकी हैं। इन 586 रेल हादसों में से करीब 53 फीसदी घटनाएं ट्रेन के पटरी से उतरने के कारण हुई हैं। ऐसे में, सवाल उठता है कि आखिर कब तक ट्रेन पटरी से उतरती रहेगी। सरकार को कोशिश चाहिए कि बुलेट ट्रेन को चलाने से पहले आम रेलवे के ट्रैक को सुधारा जाए, तभी यह माना जा सकता है कि मोदी सरकार में वास्तव में काया पलट हो रहा है।
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