सुरक्षा को लेकर वैश्विक चिंता
आज दुनिया में सुरक्षा का मामला गंभीर हो गया है। आपसी सौहार्द और शांति के प्रयासों के बीच भी कोई देश न तो अपनी सैन्य शक्ति को कम करना चाहता और न ही हथियारों की होड़ से बाहर रहना चाहता है। यही वजह है कि अधिकांश देश अपने सैन्य सेक्टर में खर्चे को लगातार बढ़ा रहे हैं। बशर्ते, संबंधित देश अपनी सुरक्षा का हवाला देकर इस मुद्दे से बचने की कोशिश करते हों, लेकिन वैश्विक परिपेक्ष्य में यही नीति शांति और सौहार्द बनाए रखने की दिशा में बाधक साबित हो रही है।
अगर, दुनिया के टॉप-फाइव देशों की बात करें तो भारत उस सूची में शामिल है, जो रक्षा क्ष्ोत्र में अपने खर्चे को लगातार बढ़ा रहा है, क्योंकि भारत के समक्ष पाकिस्तान और चीन जैसे देश हैं, जो हमेशा सीमा विवाद उत्पन्न करते रहते हैं। चीन और पाकिस्तान ऐसे देश हैं, जो रक्षा बजट को बढ़ाने पर शुरू से ही जोर देते रहे हैं। और हमेशा सीमा क्ष्ोत्रों में विवाद बढ़ाने की नीति से काम करते रहे हैं, जबकि भारत शांति और सौहार्द के रास्ते पर आगे बढ़ता रहा है। जब विरोधी देश अपनी सैन्य ताकत की घुड़की देते हैं तो निश्चित ही अपनी ताकत में इजाफा करना भी आवश्यक हो जाता है। पिछले कुछ सालों में जिस तरह भारत ने अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाया है, वह इस बात की गंभीरता को दर्शाता है कि अब भारत किसी की अनावश्यक घुड़की पर आने वाला नहीं है। चाहे वह पाकिस्तान हो या चीन।
अगर, सेना पर खर्च होने वाले बजट की बात करें तो भारत इस मामले में दुनिया के पांच देशों में शुमार है। इस सूची में चीन अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है। क्रमश: सूची देख्ों तो टॉप फाइव देशों में अमेरिका पहले, चीन दूसरे, साऊदी अरब तीसरे, रूस चौथ्ो और भारत पांचवें स्थान पर है। स्वीडन की हथियारों की निगरानी करने वाली स्टॉक होम इंटरनेशनल पीस रिसर्च (एसआईपीआरआई) की रिपोर्ट पर नजर डालें तो वैश्विक स्तर पर रक्षा खर्च 2०17 में 1,739 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। दिलचस्प बात यह है कि वैश्विक स्तर पर रक्षा बजट पर जितना भी खर्च किया जा रहा है, उनमें 6० फीसदी खर्च महज इन पांच देशों द्बारा खर्च किया जा रहा है। अगर, वर्ष 2०16 के मुकाबले 2०17 की तुलना करें तो 2०16 के मुकाबले 2०17 में रक्षा खर्च 1.1 फीसदी बढ़ोतरी के साथ 1,739 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। अमेरिका का 2०17 का सैन्य खर्च 61० अरब डॉलर रहा है। वहीं, चीन का सैन्य खर्च अनुमानत: 228 अरब डॉलर है, जो एशिया और ओशियाना क्ष्ोत्र में कुछ रक्षा खर्च का 48 प्रतिशत बैठता है। वैसे तो इस क्ष्ोत्र भारत दूसरे नबंर पर है, लेकिन चीन का खर्च भारत के मुकाबले 3.6 गुना अधिक है। 2०17 में भारत का रक्षा खर्च 63.9 अरब डॉलर रहा है, जो 2०16 की तुलना में 5.5 प्रतिशत अधिक रहा है। ऐसा नहीं है कि अन्य देश अपने रक्षा बजट में इजाफा नहीं कर रहे हैं। उधर, पाकिस्तान, जापान, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया से लेकर ईराक, ईरान जैसे देश भी लगातार अपने रक्षा खर्चों में बढ़ोतरी कर रहे हैं। सभी जानते हैं कि हाल में उत्तर कोरिया ने किस प्रकार मिसाइल परिक्षण के जरिए अमेरिका सहित दुनिया के दूसरे देशों को घड़की दी थी। अब वहां के किंग थोड़ा शांत हुए हैं, जब उन्होंने अपने हथियारों के भंडारण को पूरा कर लिया है। ऐसे में, सवाल उठता है कि क्या हथियारों की नोंक बैठने से कभी शांति और सौहार्द का रास्ता प्रशस्त हो सकता है ? यह बात महज एक देश पर लागू नहीं होती है। सभी देशों को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। अगर, हम आपसी शांति और सौहार्द बढ़ाए जाने की बात करते हैं तो फिर हथियारों की होड़ से पीछे क्यों नहीं हटते हैं ? जब दुनिया में आंतकवाद से संयुक्त रूप से लड़ने की बात हो रही है तो क्या इस परिस्थिति में उन देशों को अपनी नीति में सुधार नहीं करना चाहिए, जो उकसावे की नीति अपनाकर सीमा विवाद बढ़ाते हैं। ऐसे देशों को प्रभाव में लेने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जाने चाहिए, क्योंकि कुछ ही देश ऐसे हैं, जो स्वयं इस होड़ में रहते हैं और दूसरी की भी मजबूरी इस बात के लिए बढ़ा देते हैं, जो निहायत ही चिंताजनक है और शांति और सौहार्द की बात को बेमानी साबित करता है।
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