दबी सांस को ऑक्सीजन



     कर्नाटक का चुनाव परिणाम सर्वेक्षण के अनुसार ही आया। अब सरकार बनाने को लेकर तैयारियां तेज हो गईं हैं। पूरी हलचल को अलग कर दें तो यह चुनाव बीएसपी को भी संजीविनी देने का काम कर गया। बशर्ते, एक सीट पार्टी की झोली में गई हो, लेकिन इससे पार्टी में कुछ सांस जरूर आई है। कभी यूपी की दमदार मुख्यमंत्रियों में शामिल रही मायावती के नेतृत्व वाली बसपा यूपी में ही बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाईं थी, अगर ऐसे में कर्नाटक जैसे राज्य में एक सीट भी पार्टी के खाते में आई तो इसको पार्टी सकारात्मक रूप में ले सकती है।

  यह इसीलिए भी कहा जा सकता है कि क्योंकि इस दौर में पार्टी अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। बीजेपी कहें या फिर मोदी लहर, में जिस प्रकार कांग्रेस से लेकर बसपा जैसी पार्टियों को नुकसान हुआ है, उसमें शून्य से थोड़ा ऊपर रेस में भी बने रहने का मतलब है दबी सांस को ऑक्सीजन मिल जाना। विधानसभा चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन से पहले लोकसभा चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन पर नजर डालना जरूरी लगता है। नौंवी लोकसभा से लेकर 15वीं लोकसभा तक बीएसपी का ग्रॉफ देख्ों तो पार्टी ने लोकसभा में कुछ सीटें अवश्य निकाली। चार बार तो दहाई के आकड़े को भी पार किया, लेकिन 16वीं लोकसभा में पार्टी की पिछली सफलताएं काफूर हो गईं। पार्टी खाता भी नहीं खोल पाई। ऐसे में, क्या अंदाजा लगाया जा सकता है। नौवीं लोकसभा में चार, दसवीं में तीन, ग्यारहवीं में 11, 12वीं लोकसभा में पांच, 13वीं लोकसभा में 14, 14वीं लोकसभा में 19 और 15वीं लोकसभा में यह आकड़ा 21 सीटों तक पहुंच गया यानि कि लोकसभा चुनावों के दौरान पार्टी का प्रदर्शन लगातार सुधरता गया, लेकिन 16वीं लोकसभा चुनावों में पार्टी की सीटों का आंकड़ा शून्य हो गया। इन सब परिस्थितियों के बाद भी पार्टी के अपने सबसे बड़े गढ़ उत्तर-प्रदेश और इसके पड़ोसी राज्य उत्तराखंड से कुछ उम्मीदें अवश्य थीं, लेकिन उत्तराखंड को छोड़ भी दिया जाए तो देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर-प्रदेश में भी पार्टी की उम्मीदें धरीं की धरीं रह गईं। 
  2००7 में 15वीं विधानसभा के लिए हुए चुनावों में 4०3 विधानसभा सीटों में से 2०6 सीटें निकालकर सरकार बनाने वाली मायावती की पार्टी इसके एक दशक बाद यानि 2०17 में हुए चुनावों में महज 19 सीटों पर सिमट कर रह गई। 14वीं विधानसभा में 98 तो 16वीं विधानसभा चुनावों में 8० सीटें पार्टी ने निकाली थी, लेकिन 2०17 में 17वीं विधानसभा के लिए हुए चुनावों में ये सीटें घटकर 19 हो गईं। ऐसा नहीं है कि पार्टी लोकसभा और यूपी विधानसभा तक ही सीमित रही है, बल्कि देश के अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी पार्टी अपना खाता खोल चुकी है। पार्टी बिहार, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हिमाचल और जम्मू-एंड-कश्मीर तक अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है।
  यूपी के बाद सबसे अधिक बार पार्टी मध्यप्रदेश विधानसभा में कुछ-न-कुछ सीटें जीतने में कामयाब रही है। एमपी में 199० में हुए नौवीं विधानसभा चुनावों में पार्टी ने 2 सीटें निकाली थीं। वहीं, 1993 में हुए 1०वीं विधानसभा के चुनावों में भी 2, 1998 में 11वीं विधानसभा चुनावों में पार्टी ने 11 सीटें अपनी झोली में डाली थीं। 2००3 में 12वीं विधानसभा चुनावों में फिर पार्टी खिसकर 2 सीटों पर अटक गई। 2००8 में 13वीं विधानसभा के लिए हुए चुनावों में 2 से बढ़कर सीटें 7 सीटों पर पहुंच गईं। 2०13 में हुए 14वीं विधानसभा चुनाव में फिर से सीटें घटकर 4 पर अटक गईं। उत्तराखंड में इस बार हुए चुनावों में पार्टी एक भी सीट नहीं निकाल पाई, लेकिन इससे पहले पार्टी ने 2००2 में पहली विधानसभा के लिए हुए चुनावों में 7, 2००7 में दूसरे विधानसभा के लिए हुए चुनावों में 8, 2०12 में तीसरी विधानसभा के लिए हुए चुनावों में 3 सीटें हासिल की थीं।
 राजस्थान विधानसभा में भी पार्टी अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही है। राज्य में 1998 में 11वीं विधानसभा के लिए हुए चुनावों में 2, 2००3 में 12वीं विधानसभा के लिए हुए चुनावों में भी 2, 2००8 में 13वीं विधानसभा के लिए हुए चुनावों में 6, 2०13 में 14 विधानसभा के लिए हुए चुनावों में 3 सीटें निकाली थीं। पंजाब में भी पार्टी की उपस्थिति रही है। यहां 1०वीं विधानसभा के लिए 1992 में हुए चुनावों में 9, 1997 में 11वीं विधानसभा के लिए हुए चुनावों में पार्टी ने 1 सीट जीती थी। बिहार में 1995 में 1०वीं विधानसभा के लिए हुए चुनावों में 2, वर्ष-2००० में हुए 12वीं विधानसभा चुनावों में 5, फरवरी-2००5 में हुए 13वीं विधानसभा चुनावों में 2, अक्टूबर-2००5 में ही 14वीं विधानसभा चुनावों में 4 सीटें पार्टी ने जीतीं। वहीं, छत्तीसगढ़ में 2००3 में दूसरी विधानसभा के लिए हुए चुनावों में 2, 2००8 में हुए तीसरी विधानसभा चुनावों में भी 2, 2०13 में चौथी विधानसभा के लिए हुए चुनावों 1 सीट पार्टी ने निकाली थी।
 दिल्ली विधानसभा में पार्टी 2००8 में चौथी विधानसभा के लिए हुए चुनावों में 2 सीटें जीती थी। हरियाणा में 1०वीं से लेकर 13वीं विधानसभा चुनावों तक पार्टी लगातार 1-1 सीट निकालने में सफल रही है। हिमाचल प्रदेश में वर्ष-2००7 में 11वीं विधानसभा के लिए हुए चुनावों में पार्टी 1 सीट जीती थी। अगर, जम्मू-एंड-कश्मीर की बात करें तो पार्टी ने 1996 में नौंवी विधानसभा के लिए हुए चुनावों में 4 और 2००2 में 1०वीं विधानसभा के लिए हुए चुनावों में 1 सीट निकाली थी। वहीं, झारखंड में भी पार्टी 2०14 में चौथी विधानसभा के लिए हुए चुनावों में 1 सीट निकालने में कामयाब रही, लेकिन हलिया चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन जिस प्रकार अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंचा, खासकर, उन राज्यों में, जिनमें पार्टी की पकड़ मजबूत हो रही थी। इस असफलता के बाद तो लगने लगा था कि पार्टी का अस्तित्व खतरे में है। अगर, अस्तित्व के खतरे की घंटी के बीच अपने गढ़ यूपी के बजाय किसी दूसरे राज्य में एक सीट भी निकल आती है तो निश्चित ही पार्टी के लिए इसके मायने अलग      ही होंगे। 
  वैसे भी, कर्नाटक विधानसभा में बसपा उम्मीदवार एन. महेश ने कोल्लेगला जैसी सीट निकाली है, जिस पर वह लंबे समय से वह संघर्ष कर रहे थ्ो और पिछली बार वह दूसरे स्थान पर रहे थ्ो। यहां का रोचक तथ्य यह भी है कि यहां 1989 के बाद कोई भी उम्मीदवार दोबारा नहीं जीता है। बसपा के कर्नाटक अध्यक्ष एन. महेश ने अपने निकटतक प्रतिद्बंदी कांग्रेस के उम्मीदवार एआर कृष्णमूर्ति को हराया। एन. महेश को 71792 वोट मिले, वहीं कांग्रेस उम्मीदवार को 52338 वोट मिले, जबकि बीजेपी उम्मीद नंजूडा स्वामी को 3969० वोट मिले। यहां बता दें कि बीएसपी ने राज्य की प्रमुख पार्टी जनता दल सेक्युलर-जीडीएस के साथ गठबंधन किया था। राज्य की 224 सीटों में से 18 सीटों पर बीएसपी ने अपने प्रत्याशी उतारे थ्ो। 18 उम्मीदवारों में से एन. महेश समेत 11 दलित थ्ो। इससे पहले बीएसपी कर्नाटक में पिछली बार 1994 में बीदर से जीती थी। अगर, बड़े गैप के बाद पार्टी को फिर से एक सीट मिली है तो इससे पार्टी घुटन से कुछ तो बाहर निकली होगी।






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